बच्चों की पिटाई समस्या का हल नहीं
बच्चा सुनता नहीं है, कहना नहीं मानता। हर बात के लिए रोता है। जो भी लेना होता है तो जिद करने लगता है। अपनी बात मनवाने के लिए खाना छोड़ देता है। बात नहीं करता। पढ़ाई से दूर हो जाता है। ये शिकायतें हर मां-बाप की होती हैं। इसका परिणाम क्या होता है? सिर्फ यही न कि अभिभावक अपने बच्चों को छोटी सी जिद पर उन्हें डांट देते हैं या पीट देते हैं। सोचते हैं कि सब साल्व हो गया। दरअसल ऐसा समय और संयम की कमी के कारण होता हे। अक्सर बच्चों की परेशानी समझने की जगह अभिभावक उन्हें दोष देने लगते हैं। दरअसल वे बच्चे हैं, नासमझ हैं। जब वे नासमझ हैं तो गलतियां तो करेंगे ही। कभी-कभी नहीं बल्कि कुछ बच्चे रोज़ाना गलती करेंगे लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उन्हें पीटेंगे तो गलतियां सुधर जाएंगी। आमतौर पर यह देखा जाता है कि बच्चों को कई बार पता ही नहीं होता कि उनके पेरेंट्स ने आखिर उन्हें मारा क्यों? जब पता ही नहीं तो वे गलती सुधारेंगे कैसे? सभी जानते हैं कि आज के समय में उन पेरेंट्स की संख्या ज्यादा है जो दोनों ही कामकाजी हैं। घर से ज्यादा टेंशन उन्हें अपने आफिस और अपने काम की होती है, सहयोगियों की होती है।
ऐसे पेरेंट्स जब घर पहुंचते हैं और उस समय बच्चे कुछ शोर कर रहे हों या फिर खेल आपस में लड़ रहे हों या फिर आपकी दी गई आवाज को तुरंत फालो न करें या फिर घर में कुछ टूट फूट हो जाए तो आप बिना देर किए उनके पास पहुंचते हैं और गाल पर तमाचा जड़ देते हैं। फिर गुस्से में चीखकर कहते हैं कि बंद करो शोर और पढ़ने बैठ जाओ। क्या ऐसा बच्चा सही रूप में पढ़ सकता है? क्या आप अपने बॉस की डांट के तुरंत बाद मन लगाकर काम कर पाते हैं? शायद नहीं।
फिर बच्चे ऐसा कैसे कर सकते हैं? आपने पीटा और स्टडीरूम में जाने को कह दिया। इसके बाद क्या हुआ? आपने देखा ही नहीं। वो आक्रोशित होता है। आपके प्रति गुस्सा होता है और फिर जो कुछ भी उसने कुछ घंटे पहले स्कूल में पढ़ा होगा, वो भी याद नहीं रहता?
दरअसल पिटाई किसी समस्या का हल नहीं है। यदि ऐसा होता तो दुनिया में न कोई बच्चा जिद्दी होता और न कोई अपराधी। कुछ बच्चे अपवाद हो सकते हैं लेकिन प्यार वो भाषा है जिसका सबसे ज्यादा प्रभाव बच्चों पर ही पड़ता है। (उर्वशी)