शतरंज की बिसात पर उभरा नया सितारा लियोन ल्यूक मेंडोंका

अप्रैल के चौथे सप्ताह में जर्मनी में आयोजित ग्रेंके फ्रीस्टाइल चेस ओपन 2025 में एक अन्य युवा भारतीय ने अपने शानदार प्रदर्शन से सनसनी मचा दी है। लियोन ल्यूक मेंडोंका अभी मात्र 19 साल के हैं और उन्होंने टॉप रैंक खिलाड़ियों इयान नेपोमिन्याचची व रिचर्ड रपोर्ट को पराजित किया और अन्य विख्यात ग्रैंडमास्टर्स एलेक्सी सराना, वेसेली सो और मक्सिम वाचिएर-लाग्रावे के साथ बाज़ियां बराबर पर खत्म की। मेंडोंका के लिए यह बहुत बड़ी उपलब्धि है; क्योंकि यह सभी खिलाड़ी अलग-अलग फॉर्मेट में या तो विश्व चैंपियन रह चुके हैं या क्लासिकल फॉर्मेट में विश्व चैंपियन को चुनौती दे चुके हैं।
जर्मनी के कार्लसरुबे शहर में आयोजित इस प्रतियोगिता में विश्व के 297 खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया और मेंडोंका का स्थान 10वां रहा, जो सराहनीय है, विशेषकर इसलिए कि 31 खिलाड़ियों की रेटिंग उनसे बेहतर थी। हमेशा मुस्कुराने वाले मेंडोंका गोवा के रहने वाले हैं, वायलिन भी बहुत अच्छा बजाते हैं, हवाई शर्ट्स पहनने के शौकीन हैं और मिखाइल ताल व रशीद नजमुद्दीन की तरह आक्रमक शतरंज खेलते हैं। यह दिलचस्प है कि तमिलनाडु से बाहर का भी एक भारतीय युवा विश्व मंच पर अपनी मज़बूत उपस्थिति दर्ज करा रहा है। मेंडोंका 2020 में भारत के 67वें ग्रैंडमास्टर बने थे। गुकेश, अर्जुन एरागेसी, प्रज्ञानंद आदि की मौजूदगी के कारण अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा प्रदर्शित करने के अवसर उन्हें कम ही मिले हैं। गुकेश या प्रज्ञानंद का ताल्लुक शतरंज-प्रेमी शहर चेन्नै से है, जबकि मेंडोंका का संबंध फुटबॉल के दीवाने गोवा में छोटे से कस्बे सलिगाओ से है, जहां उन्होंने पहली बार हाथी घोड़े की चाल सीखी। लेकिन अंतर्राष्ट्रीय मंच पर उनका चमकना इस बात की भी दलील है कि शतरंज भारत में अपने परम्परागत केंद्रों से भी बाहर तेज़ी से फैल रहा है। मेंडोंका से पहले गोवा में केवल एक ही ग्रैंडमास्टर हुए हैं- अनुराग अनुराग महमल। 
मेंडोंका बताते हैं, ‘जब मैंने छह साल की आयु में शतरंज खेलना शुरू किया तो गोवा में चेन्नै की तरह शतरंज की संस्कृति न थी। मेरी पहली बड़ी उपलब्धि 2014 में आयी जब 8 साल की आयु में मैंने वर्ल्ड यूथ चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता। तब मेरे पेरेंट्स को कुछ बड़े फैसले करने पड़े। मेरे पिता ने अपना जॉब छोड़ दिया ताकि मेरे साथ प्रतियोगिताओं में ट्रेवल कर सकें। यह आसान निर्णय न था।’ आजकल शतरंज में फ्रीस्टाइल फॉर्मेट बहुत पॉपुलर होता जा रहा है। यह इस खेल का आधुनिक रूप है, जिसमें खिलाड़ी को अंतर्ज्ञानी और तेजतर्रार होना पड़ता है। इयान पर अपनी जीत के बाद मेंडोंका ने कहा, ‘यह फॉर्मेट सर्वश्रेष्ठ है, शतरंज का भविष्य है। इसमें खिलाड़ियों को अपने कौशल व प्रतिभा पर फोकस करना होता है बजाय ओपनिंग लाइंस को रटने के।’ फ्रीस्टाइल शतरंज में जब खेल की शुरुआत होती है तो प्यादे तो दूसरी पंक्ति में ही होते हैं, लेकिन पहली पंक्ति के मोहरे परम्परागत शतरंज के विपरीत अलग-अलग और हर बार नये अंदाज़ में रखे जाते हैं। शेष खेल परम्परा के अनुसार ही खेला जाता है। 
इस प्रतियोगिता में मेंडोंका ने जो बाज़ियां खेलीं उनकी समीक्षा करने से इस खिलाड़ी की प्रतिभा का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। इयान के रेटिंग पॉइंट्स मेंडोंका से 114 अधिक थे, फिर भी इयान को मात्र 36 चालों बाद रिजाइन करना पड़ा। अगले चक्र में मेंडोंका का मुकाबला रिचर्ड से हुआ जो उनसे 79 रेटिंग पॉइंट्स आगे थे और उन पर भी 35 चालों में जीत दर्ज कर ली गई। अपने 9 गेम्स में मेंडोंका ने केवल एक बाज़ी हारी। मेंडोंका की पहली बार शतरंज खेलने की प्रेरणा विश्व के सर्वकालिक सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी नॉर्वे के मैग्नस कार्लसन जैसी ही थी। दोनों ही अपनी बड़ी बहनों को हराना चाहते थे। मेंडोंका की बहन बेवर्ली को शतरंज सेट तोहफे में मिला था, तब उसे कोचिंग के लिए क्लास में भेज दिया गया। वह तब मेंडोंका को भी शतरंज सिखातीं, जो उस समय चार या पांच साल के थे। वह जो क्लास में सीखतीं अपने भाई को घर पर सिखातीं। इस तरह मेंडोंका की शतरंज शुरू हुई। बहन तो जल्द ही दूसरी दिशा में चली गई, लेकिन मेंडोंका की दिलचस्पी शतरंज में इतनी अधिक हो गई कि वह अक्सर अपने विरुद्ध ही शतरंज खेलते रहते। 
शतरंज खिलाड़ी, विशेषकर किशोर प्रतिभाएं, एक ही खेल के दीवाने होते हैं, अन्य खेलों की कीमत पर। लेकिन मेंडोंका वायलिन इतना अच्छा बजाते हैं कि जब कोविड-19 महामारी की पहली लहर में वह बुडापेस्ट में फंस गये थे तो उन्होंने वहां एक चर्च के कोयर को ज्वाइन कर लिया। बुडापेस्ट में एक व्यक्ति को शतरंज सिखाने के बदले में मेंडोंका को उससे सेकंड हैंड वायलिन मिला था। वैसे गोवा में संगीत सीखना संस्कृतिक परम्परा है। इसलिए बचपन में मेंडोंका ने भी वायलिन सीखा था। बहरहाल जब वह अच्छी शतरंज खेलने लगे तो गोवा में उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती अच्छी कोचिंग प्राप्त करना था। पिता पुत्र अच्छी कोचिंग की तलाश में निकल पड़े। कुछ दिन नागपुर में कोच आकाश ठाकुर के साथ रहे, फिर मध्य प्रदेश में राजेश बहादुर से सीखा और पुणे में शशिकांत कोतवाल की शरण में गये। अंत में आरबी रमेश से सीखा जो प्रज्ञानंद के भी कोच रहे। अब मेंडोंका विष्णु प्रसन्ना के साथ हैं, जिन्होंने गुकेश के करियर को दिशा दी है। वह वेस्टब्रिज आनंद चेस अकादमी का भी हिस्सा हैं।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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