भगवान दादा का झुग्गी से झुग्गी तक का स़फर
‘कभी काली रतियां कभी दिन सुहाने/किस्मत की बातें तो किस्मत ही जाने/ओ बेटा जी ओ बेटा जी/अरे ओ बाबूजी/किस्मत की हवा कभी नरम कभी गरम।’ फिल्म ‘अलबेला’ के इस क्लासिक गीत का इस्तेमाल 2022 की फिल्म ‘लूडो’ में भी किया गया था, जिसे हाल ही में मैंने देखा तो भगवान दादा की याद आ गई, जिन पर यह गीत मूलतरू फिल्माया गया था। हैरत की बात तो यह है कि भगवान दादा का जीवन भी इसी गीत की तरह ही रहा। वह फर्श से उठे, अर्श तक पहुंचे और फिर फर्श पर ही आ गिरे। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि भगवान दादा का जन्म झुग्गी में हुआ, उन्होंने 298 फिल्मों में बतौर एक्टर काम किया, 34 फिल्मों का निर्देशन किया, भारतीय सिनेमा के पहले डांसिंग-एक्शन हीरो बने, दिलीप कुमार व राज कपूर जैसे कलाकारों को एक्टिंग के गुर सिखाये, जिस बंगले में बाद में राजेंद्र कुमार व राजेश खन्ना सुपर स्टार बने उसके पहले स्टार मालिक वह ही थे और फिर उनका अंतिम समय इतना कठिन व दर्दनाक हालात में बीता कि उनकी मौत झुग्गी में ही हुई?
भगवान दादा की ख्याति का राज़ यह था कि वह इस अंदाज़ से डांस करते थे कि हर कोई उन्हें आसानी से कॉपी कर सकता था। उनकी नृत्य प्रतिभा से राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन व गोविंदा जैसे कलाकार भी प्रभावित थे। भगवान दादा के पिता एक टेक्सटाइल कंपनी में मज़दूर थे और एक झुग्गी में रहते थे। भगवान दादा भी मजदूरी ही करते थे, लेकिन किस्मत से उन्हें फिल्मी दुनिया में कदम रखने का अवसर मिल गया और वह एक निर्देशक के सहायक हो गये व पर्दे पर छोटी छोटी भूमिकाएं भी निभाने लगे। इन्हीं भूमिकाओं से उनकी पहचान बनी। वह स्टंट भूमिकाएं भी निभाते थे। लेकिन फिल्मों से इतना संपर्क बनने के बाद यह स्वाभाविक था कि वह सितारा बनने का सपना देखने लगे। उन्हें साल 1951 में आयी फिल्म ‘अलबेला’ में हीरो बनने का अवसर मिला। इस फिल्म का गीत ‘शोला जो भड़के’ फिल्म की तरह ही ज़बरदस्त हिट रहा और इसमें भगवान दादा का विशिष्ट डांस स्टाइल छा गया। वह स्टार बन गये। भगवान दादा की छवि एक्शन हीरो की बन गई। वह इस इमेज से बाहर निकलकर कम बजट की आर्ट फिल्में करना चाहते थे ताकि उनकी अभिनय प्रतिभा का भी लोग लोहा मानें। इसलिए उन्होंने अपना प्रोडक्शन हाउस खोला। वह इतने सफल हुए कि उन्होंने एक सी-फेसिंग बंगला खरीदा। उनके पास सात गाड़ियां थीं (सप्ताह में हर दिन के लिए एक गाड़ी) और नौकरों की लम्बी कतार। उनके पास ऐशोआराम की हर चीज़ थी। (बाद में यही बंगला राजेंद्र कुमार व राजेश खन्ना के पास आया, यानी इस बंगले ने तीन कलाकारों को सूरज बनते व डूबते हुए देखा)।
भगवान दादा वास्तव में सुपर स्टार बन चुके थे। लेकिन किस्मत के खेल निराले होते हैं। उनकी किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। उन्होंने एक आर्ट फिल्म ‘हंसा’ बनाने में अपनी सारी कमाई झोंक दी। फिल्म बुरी तरह से फ्लॉप हो गई। फिर क्या था- एक-एक करके हर चीज़ बिकती चली गई बंगला, गाड़ियां, स्टूडियो। सबकुछ चला गया। भगवान दादा अकेले रह गये। फिल्मी दुनिया का उसूल है- चढ़ते सूरज को सलाम है, डूबते सूरज की तरफ कोई देखता भी नहीं। भगवान दादा के कंगाल होते ही, बॉलीवुड के लोगों ने उनका साथ छोड़ दिया। सिर्फ 1-2 लोग ही उनके साथ रहे, वह भी शरमाहुजूरी। वह अपनी बचपन की झुग्गी में लौटकर रहने लगे। उन्हें फिल्मों में एक-दो सीन का काम अवश्य मिल जाता था, लेकिन वह मुंबई जैसे महंगे शहर में आराम से रहने के लिए पर्याप्त न था। आखिरी दिनों में वह एक छोटे से कमरे में अकेले रहते थे। फिल्मोद्योग के चमकते सितारे को लोग भूल चुके थे। हां, अंतिम दिनों में दिलीप कुमार ने उनकी कुछ मदद अवश्य की थी, जिससे उनका कुछ इलाज भी हुआ। लेकिन 4 फरवरी, 2002 को उन्हें दिल का दौरा पड़ा और उनका निधन हो गया।
भगवान दादा का जन्म 1 अगस्त 1913 को भगवान अभाजी पलव के रूप में एक मराठी परिवार में अमरावती में हुआ था। चूंकि उनके पिता मुंबई की एक टेक्सटाइल मिल में मज़दूर थे, इसलिए वह एक झुग्गी में रहते थे। उन्होंने मूक फिल्मों में काम करना शुरू किया और फिर 65,000 के मामूली बजट पर फिल्में बनाने लगे जिसमें कास्टियूम डिज़ाइन से कलाकारों के खाने का तक का सारा इंतजाम वह स्वयं किया करते थे। उन्हें कुश्ती का शौक था इसलिए एक्शन हीरो बने। उन्होंने 1942 में जागृति पिक्चर्स की स्थापना की और निर्माता बन गये।
फिर 1947 में चेम्बूर में उन्होंने अपना जागृति स्टूडियो बनाया। राज कपूर के कहने पर उन्होंने सामाजिक फिल्म ‘अलबेला’ बनायी थी, जिससे वह स्टार बने। जब उनके बुरे दिन आये तो वह कोई भी रोल कर लिया करते थे। वैसे ‘झनक झनक पायल बाजे’ (1955), ‘चोरी चोरी’ (1956) व ‘गेटवे ऑफ इंडिया’ (1957) में उनकी भूमिकाओं को छोड़कर कोई भी ऐसी नहीं है जिसे याद रखा जाये। हां, उनका डांस व कुछ गाने, विशेषकर ‘शोला जो भड़के’ व ‘ओ बेटा जी’ अवश्य कालजयी हैं।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर