बेरोज़गारी दूर करने के अचूक सुझाव
बेरोज़गारी से बचने के लिए पहला सुझाव तो यह है कि आदमी को पढ़ने-लिखने के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए। शिक्षा और विशेष रूप से भारतीय शिक्षा... मनुष्य के अति मूल्यवान समय को बड़ी ही खूबसूरती से नष्ट करती है। बंदे के कीमती 20-22 साल घिसेपिटे-आउटडेटेड पाठ्यक्रमों को रटने में व्यर्थ चले जाते हैं।
रट्टाफिकेशन के द्वारा मस्तिष्क में भरे किताबी ज्ञान के कारण जीवन के वास्तविक अनुभवों को संग्रह करने के लिए न तो वहां जगह ही बचती है और न ऐसा करने के लिए समय।
शिक्षा का योग्यता से वैसे भी कोई संबंध नहीं है। प्राचीनकाल मध्यकाल के संतों महात्माओं-बादशाहों के पास कौन सी डिग्रियां थी। आधुनिक काल में भी महान राजनेताओं, फिल्म अभिनेता-अभिनेत्रियों, क्रिकेटरों, मिस इंडियाओं, विश्व सुंदरियों आदि को कभी इस चीज की ज़रूरत महसूस नहीं हुई।
अपनी शिक्षा पद्धति के विषय में एक राज़ की बात और बताता चलूं। हमारे मेधावी छात्र बहुत अधिक पढ़-लिख कर अफसर, डाक्टर, इंजीनियर बनते हैं जो सारा जीवन नौकरियां करके घर चलाते हैं.... ठीक-ठीक पढ़ लिख लेने वाले बिजनेसमैन बनते हैं जो अफसरों, डाक्टरों, इंजीनियरों को नौकरी पर रखते हैं... फेल-फाल होते रहने वाले नेता बनते हैं जो बिजनेसमैनों से चंदे वसूलते हैं। स्कूल का मुंह तक न देख पाने वाले बाबा बनते हैं जो चरण वंदना करवाते दिखते हैं।
शिक्षा और रोज़गार में वैसे भी कोई रिश्तेदारी नहीं है। आप ने अक्सर सुना होगा हमारे महा विद्यालय और विश्व विद्यालय प्रति वर्ष बेरोज़गारों की एक बड़ी फौज खड़ी करते हैं। वैसे भी साल भर की मेहनत की परीक्षा तीन घंटे में लेने वाली और उस परीक्षा का मूल्यांकन तीन मिनट में करने वाली शिक्षा पद्धति से और उम्मीद भी क्या की जा सकती है?
दरअसल, आज के दौर में कुछ ऐसे रोज़गारों की ज़रूरत है जो सही अर्र्थों में बेरोज़गारी को दूर कर सकें। अपने यहां नेतागिरी को सबसे प्रतिष्ठित रोज़गार माना जाता है, परन्तु अब इस धंधे में पैर जमाना आसान नहीं रह गया है। इस क्षेत्र में पदार्पण करने के लिए अत्यंत उच्च कोटि की योग्यता अनिवार्य है। जैसें,
धनबल छलबल बाहुबल, लालच भ्रष्टाचार...।
इतने सद्गुण जब मिलें, लीडर ले अवतार...।
उपयुक्त समस्त योग्यताएं एक ही व्यक्ति में मिलना अद्भुत संयोग ही होता है। अत: नेता बनना अब हम-तुम जैसों के बस की बात नहीं रहीं। अलबत्ता इनमें से दो-एक योग्यताएं भी हों तो छुटभैये नेता बनकर या किसी बड़े नेता के चमचे बनकर अपना दाल-फुल्का चलाया जा सकता है।
इसी प्रकार धर्म गुरु बनना भी एक अच्छा रोज़गार है लेकिन आज कल इस फील्ड में भी बहुत कम्पीटीशन है। तगड़े पुलिटिकल लिंक के बिना इस्टेब्लिश होना मुश्किल हो गया है। वैसे यहां भी किसी बड़े बाबा के चेले बनकर अच्छा माल बनाया जा सकता है।
खानदानी वैद्य बनना भी करियर का एक अच्छा विकल्प हो सकता है। नब्बे प्रतिशत गुप्त और दस प्रतिशत प्रकट रोगों का इलाज करके मोटा धन-यश कमाया जा सकता है। परन्तु अब इसमें खतरा बहुत बढ़ गया है। क्वालिफाइड डाक्टरों को नित्य जन कोप का भाजन बनते देख कर इस ताल में उतरने की सलाह मैं काम ही तैराकों को देता हूं।
पर आप चिंता न करें... दो रोज़गार ऐसे भी हैं... जो अब तक नितांत निरापद हैं... इन्हें आज तक कभी जांच की आंच नहीं सहनी पड़ी। साथ ही इनमें ग्रोथ की संभावनाएं भी बहुत हैं।
पहला है- ज्योतिष... आप एक ज्योतिष केंद्र खोल सकते हैं जिसके बोर्ड पर एक ओर हाथ और दूसरी ओर कुंडली बनी हुई हो... साथ लिखा हो... पचास साल का अनुभव... स्पेशलिस्ट इन हैंड, फेस,स्नैप रीडिंग...
माताओं-बहनों को प्राथमिकता... केंद्र की दीवारों पर तख्तियां टंगी हों... व्यर्थ मत भटकें... हमारी पूजा का तुरंत असर शुरू... दुआ से तकदीर बदलें... कोशिश से बंद दरवाजे खुल सकते हैं।
दूसरा है... तंत्र-मंत्र... अर्थात आप एक तांत्रिक बन जाएं.... नाम रख लें... कोई भी बाबा झुमरी तलैया वाले।
यहां जितने करियर ऑप्शन की चर्चा की गयी है... मज़े की बात यह है कि किसी विश्व विद्यालय या महा विद्यालय में इनके प्रशिक्षण या डिग्री की व्यवस्था नहीं हैं... सो यहां बेरोज़गारों की भीड़ लगने का सवाल ही पैदा नहीं होता... समस्याएं सदाबहार और विशेषज्ञ बेहद कम... ऐसी संभावनाएं किस क्षेत्र में हैं।
वैसे मेरे पास और भी करियर ऑप्शन हैं... पर आज बस इतना ही... सब एक झटके में बता दिया तो कल मुझे कौन पूछेगा... यह तो बस एक काउंसलिंग सैमीनार टाइप प्रमोशनल स्पीच मात्र थी... शेष फिर कभी।
-मो. 62396.01641