प्रसिद्ध सम्राटों की न्याय व्यवस्था

बच्चों आप इतिहास पढ़ते हैं चाहे कोई भी कक्षा क्यों न हो। आपको अनेक भारतीय और विदेशी शासकों का परिचय मिलता है। उनके व्यक्तिगत जीवन, विषयों, उनके धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक कार्यों संबंधी जानकारी प्राप्त होती है। तो यहां प्रस्तुत हैं प्रसिद्ध सम्राटों की न्याय-व्यवस्था।
महमूद गजनवी : जी हां, सोमनाथ मन्दिर को लूटने वाला। बेशक महमूद गजनवी एक महान लुटेरा था। चाहे उसे खून की नदियां बहाने का शौक था परंतु न्याय के क्षेत्रा में एकदम अलग था। वह न्यायप्रिय शासक था। उसने अपनी अंतिम सांस तक सभी के साथ एक जैसा व्यवहार किया। अमीर-गरीब अधिकारी, मंत्री या राज दरबार का कोई व्यक्ति न्याय से नहीं बच सकता था। एक बार महमूद गजनवी को पता चला कि उसके भतीजे ने एक गरीब स्त्री पर आंख उठाई है और उसे तंग किया है तो गजनवी ने पूर्ण जांच पड़ताल कर अपने भतीजे का सिर धड़ से अलग करवा दिया था।
गयासुद्दीन बलबन : दिल्ली का एक महान् सम्राट था। वह भी बहुत न्याय प्रेमी था। प्रजा के संग एक जैसा व्यवहार करता था। किसी को भी, चाहे वह बड़ा अधिकारी ही क्यों न हो, दोषी सिद्ध होने पर कड़े से कड़ा दंड दिया जाता था। एक बार बदायूं के जागीरदार ने अपने नौकर को जान से मार डाला। बलबन की आज्ञा अनुसार उसे 500 कोड़े मारे गए। एक बार अवध के सूबेदार हैवत खां ने अपने एक दास की पत्नी को छेड़ दिया। उसे बीस हजार मोहरें दास की पत्नी को देकर जान छुड़ानी पड़ी।
अलाऊदीन खिलजी : एक बार अलाऊदीन खिलजी ने एक काजी को मृत्यु दंड सिर्फ इसलिए दिया क्योंकि वो कचहरी में शराब पीता पकड़ा गया था। एक बार उसने प्रसिद्ध अधिकारी मालिक मकबूल को दस कोड़े मरवाए क्योंकि उसने अवैध रूप से अनाज के मूल्य में वृद्धि की थी।
मोहम्मद तुगलक : पढ़ा-लिखा मूर्ख बादशाह था लेकिन वह फिर भी सभी धर्मों के लोगों को एक जैसा समझता था। एक बार उसने खुद अपने विरूद्ध फैसला होने पर इक्कीस कोड़े खाए थे। यह बात उसके न्याय प्रिय होने की सूचक है।
फिरोज तुगलक, सिकन्दर लोधी, महमूद गावां भी न्याय करने में एक समान थे। शेरशाह सूरी तो खुद कहा करता था, ‘न्याय सबसे उत्तम धार्मिक संस्कार है।’ आवास और शुजात खां जैसे बड़े-बड़े अधिकारी भी अपराधी होने पर दंड से न बचे। एक बार शेर शाह ने अपने पुत्र आदिल की इतनी पिटाई की थी कि उसके पुत्रा का खून बहने लगा था। उसके पुत्र का कसूर था आगरा के एक नागरिक की पत्नी को बुरी नज़र से देखना। फांसी की सजा भी शेरशाह के काल में लागू थी।
जहांगीर के आगरे के किले में सोन की जंजीर से लटकी 60 घंटियां थी। इन्हें बजाकर कोई भी दीन दुखी किसी भी वक्त न्याय की मांग कर सकता था। शाहजहां भी न्याय का गुलाम था। उसने तो बुधवार का दिन ही न्याय के लिए निश्चित कर रखा था। प्रत्येक अधिकारी पर कड़ी नज़र होती थी। उसके दरबार में जहरीले सांपों की टोकरियां होती थीं। जहरीले सांपों द्वारा अधिकारियों को डरा कर उनसे जुर्म कबूल करवाया जाता था। (उर्वशी)

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