समुद्र में शोर करने वाले खतरनाक और शरारती जीव

सिंगिंश फिश : 25 से 35 सेंटीमीटर लंबी गायिका मछली (सिंगिंग फिश) मस्ती से तेज़ आवाज में गाना गाती और अठखेलियां करती है।
टोड : टोड मछली की आवाज सौ डेसीबल से भी अधिक मापी गई है। यह जहाजों की आवाज की नकल करती है। इससे कई बार नाविकों को भ्रम हो जाता है कि आसपास कोई जहाज है।
पॉरप्वायज डाल्फिन : यह बहुत अक्लमंद और शरारती होती है। एक प्रयोग में एक समुद्र तटीय तालाब को दो भागों में बांटकर दोनों के मध्य शीशे की अलग-अलग दीवारें खड़ी की गईं। इनमें से एक शीशे की दीवार का दरवाजा बंद और एक का खुला रखा गया। दोनों भागों में पॉरप्वायज डाल्फिन के खाने के लिए छोटी जीवित मछलियां डाली गईं। अपना भोजन प्राप्त करने के लिए डाल्फिनों ने बंद दरवाजे पर टक्करें नहीं मारी बल्कि खुले दरवाजे वाले भाग में आती-जाती खाती-खेलती रहीं।
दरियाई डाल्फिन : यह अंधे होते हैं। यह 15 से 60 किलो हर्ट्ज की तरंगों से अपने शिकार या शत्रु का पता लगा लेते हैं। यह 20 से 50 ध्वनि स्पंदन प्रति सेकेंड करते हैं।
नरभाल : व्हाइट व्हेल (सफेद डाल्फिन) परिवार का अंग है नरभाल। ये अण्डे नहीं देते बल्कि बच्चों को जन्म देते हैं। इनके शरीर में गलफड़ों के स्थान पर फेफड़े होते हैं। अब लगभग लुप्तप्राय इस जीव की आवाज काफी दूर से सुनी जा सकती है। ये 15-25 किलोहर्ट्ज की आवृत्ति वाली किट-किट जैसी ध्वनि करते हैं। ये घोर गर्जन के साथ हंसते भी हैं।
व्हेल : व्हेल मुख्य रूप से अमरीकी तटीय समुद्र में पाये जाते हैं। यूं तो व्हेल भांति-भांति की आवाज निकालते है परंतु अधिकतर ये कराहने जैसी तेज आवाज (190 डेसीबल तक) निकालते हैं। अमरीका में व्हेलों के अवैध शिकार की रोक के लिए बहुत सा समुद्री क्षेत्र संरक्षित क्षेत्र घोषित है। यहां की गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए गुप्त कैमरे लगाए गये हैं।
नीली व्हेल : इसे नील दैत्य भी कहा गया है। इन्हें दैत्य शायद इनके भारी भरकम शरीर के कारण कहा गया हैं एक पूर्ण व्यस्क नर व्हेल का वजन 150 टन तक पाया गया है। यह इतने शाक्तिशाली होते हैं कि एक सामान्य जहाज सी शक्ति रखते हैं और इन्होंने अनेक जहाज पलटा दिए हैं। जहाजी नीली व्हेल से बड़ा खौफ खाते हैं। इसका दूध संसार का सबसे पौष्टिक भोजन है। इसे पीकर व्हेल के बालक 75 ग्राम प्रति मिनट (जी हां! प्रति मिनट) बढ़ते रेकॉर्ड किए गये हैं। व्हेल भी प्राय: तीव्र गर्जन करती है।
इनके अतिरिक्त कई अन्य मछलियां और जलीय जीव मौज-मस्ती के समय, शिकार पर झपटते हुए या फिर संकट के समय आवाजें निकालते हैं। जब तक मछलियों की तेज आवाजों की पहचान न की जा सकी थी, तब तक समुद्री यात्र उन आवाजों को किसी अन्य जहाज या फिर नावों की आवाजों का भ्रम पालते रहे।
ऐसी आवाजें सुनकर वे प्राय: एक स्थान पर रूकने या आवाज की दिशा से विपरीत दिशा में जाने का प्रयत्न करते थे। इससे इन्हें हानि थी क्योंकि या तो रूककर समय नष्ट करना होता था या फिर विपरीत दिशा से घूमकर निकलने की कोशिश करनी पड़ती थी। नीली व्हेल को समुद्री दैत्य कहा गया।
मछलियों पर शोध 20वीं शताब्दी में ही हुए और जलजीवन के अनेक रहस्यों से पर्दा उठा। इनमें यह तथ्य भी सामने आए कि मनुष्य की तरह जल जीव भी खुश होते हैं। शरारतें और अठखेलियां करते हैं। वे संकट में डरते हैं तो कष्ट का भी अनुभव करते हैं। (उर्वशी)

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