पढ़ने से मिला धन

सैकड़ाें साल पुरानी बात है। प्राग में फ्रैंक नाम का आदमी रहता था। वह एक अमीर के पास नौकर था। अमीर उसे इतना कम वेतन देता था कि फ्रैंक और उसकी पत्नी का खर्चा बड़ी मुश्किल से चल पाता था। घर में हर तरफ गरीबी पसरी रहती थी। उनके पास फटे-पुराने कपड़े, बिस्तर और टूटा-फूटा फर्नीचर था। बहुत साधारण खाना खाते थे। 
यूं तो अपनी इस स्थिति से फ्रैंक भी बहुत परेशान रहता था और हमेशा अच्छे दिनों के ख्याली पुलाव पकाता रहता था। दिन बीतते जा रहे थे लेकिन फ्रैंक के जीवन में बेहतरी आने की कोई संभावना नहीं लग रही थी। पत्नी उससे अक्सर अभावों की शिकायत करती और आर्थिक स्थिति बेहतर करने के लिए कुछ उपाय करने को कहती लेकिन फ्रैंक को कुछ नहीं सूझ रहा था। एक दिन पत्नी ने उससे कहा, ‘तुम चर्च के उस मोटे पादरी से कुछ उपाय क्यों नहीं पूछते जो काम तो कुछ नहीं करता मगर बहुत अच्छा खाता है, बढ़िया पहनता है और तमाम सुख-सुविधाओं का आनंद उठाता है।’
पत्नी ने उससे यह बात कई बार कही और हर बार फ्रैंक पादरी के पास जाने की बात कहकर पत्नी को आश्वस्त कर देता लेकिन उसकी जाने की हिम्मत नहीं होती। जब पत्नी ने उसे बहुत तंग किया तो वह एक दिन सुबह काम पर जाते समय पादरी के पास गया और अपनी समस्या उसे बताकर उपाय पूछा। 
पादरी ने लेटे-लेटे बताया, ‘बेटा, मैं आज जो कुछ भी हूं, उसमें पिटाई का बहुत बड़ा योगदान है। मैंने बचपन में स्कूल में मास्टरों की बड़ी मार खाई थी। इससे अधिक पादरी ने कुछ नहीं बताया।
फ्रैंक दिन भर अमीर के पास काम करता रहा। दिन भर उसके दिमाग में पादरी की बात घूमती रही कि मार खाने से आदमी अमीर हो जाता है। वह शाम को घर पहुंचा तो पत्नी को पादरी की बात बताई और कहा, ‘तुम मुझे पीटो, ताकि हम भी अमीर बन सकें।’
पत्नी ने लात, घूंसे, डंडे से उसे खूब पीटा। पिटाई से उसका बुरा हाल हो गया। जगह-जगह दर्द होने लगा। रात भर वह दर्द से कराहता रहा और पत्नी सूजे अंगों पर हल्दी-तेल आदि लगाकर सिंकाई करती रही। पूरी रात आंखों ही आंखों में गुजर गई पर धन नहीं आया। 
सुबह चाय के वक्त दोनों फिर बात करने लगे कि अब क्या किया जाए! पत्नी ने उसे जोर देकर कहा कि तुम फिर पादरी के पास जाओ और कहो कि वह सही रास्ता बताए। फ्रैंक की हालत तो खराब थी लेकिन जाना उसकी मज़बूरी थी। अगर न जाता तो सेठ उसे काम से हटा देता। इसलिए वह पहले पादरी के पास गया।
उसने पादरी को सारी बात बताई तो पादरी जोरों से हंसा, फिर बोला, ‘मूर्ख आदमी, मेरे कहने का मतलब यह नहीं था कि मार खाने से मैं पादरी बन गया और अब मेरे पास सुख-सुविधा और पैसे की कमी नहीं है। मेरे कहने का मतलब था कि मैं बचपन में पढ़ने में कमजोर था और इसलिए मास्टर मुझे पीटा करते थे। मैं मार खा खाकर पढ़ता रहा जिसका परिणाम यह हुआ कि मैं अच्छा पढ़ लिख गया और आज चर्च में पादरी हूं। अगर मैं तुम्हारी तरह अनपढ़ होता तो यहां नहीं होता बल्कि तुम्हारी तरह किसी सेठ की चाकरी कर रहा होता और तुम्हारी ही तरह फटेहाल होता।
बात फ्रैंक के पल्ले पड़ गई। वह अब पढ़ाई करने के बारे में सोचने लगा। रात को उसने पत्नी को सारी बात बताई और सुबह स्कूल जाने का संकल्प दोहराया। दूसरे दिन सुबह सेठ के पास न जाकर स्कूल गया और हैडमास्टर से कहा, ‘मैं पढ़ना-लिखना चाहता हूं, अत: आप मेरा नाम लिखकर अपनी कक्षा में मुझे स्थान दें।’ 
पहले तो हैडमास्टर चकराया कि इसे अधेड़ अवस्था में पढ़ने की क्या सूझी। फिर उसने सोचा कि चलो अच्छा है, देर से ही सही, पढ़ने की इसने सोची। उसने नाम लिख लिया और कक्षा में बिठा लिया। अन्य बच्चों के साथ फ्रैंक भी लिखने-पढ़ने लगा। 
दोपहर में स्कूल की छुट्टी हो गई। रास्ते में उसे सिक्कों से भरी थैली मिली वह उसे छुपाकर घर ले गया। फ्रैंक ने इसे पढ़ाई का चमत्कार माना। पत्नी भी पढ़ाई के परिणाम से अभिभूत हो गई। दोनों ने सलाह की और शाम को ज़रूरत की सभी चीजें उन्होंने खरीद ली।
शाम को जब वे खरीदारी कर लौटे तो थोड़ी देर बाद ही यह बात नगर भर मैं फैल गई कि फ्रैंक अचानक ’अमीर’ हो गया है। उसी दिन थाने में एक व्यापारी ने रिपोर्ट लिखाई थी कि आज सुबह नगर आते समय खच्चर से उसकी एक सिक्कों भरी थैली रास्ते में कहीं गिर गई। फ्रैंक के ’अमीर’ होने की खबर पुलिस को भी लगी।
एक दारोगा उसके घर पहुंचा, यह सोचकर कि कहीं व्यापारी की थैली उसके हाथ तो नहीं लग गई। दारोगा ने फ्रैंक से पूछा, ‘तुम्हारे पास धन कहां से आया!’ फ्रैंक सीधा-सादा आदमी था। उसने मासूमियत से बताया, ‘मैं जब स्कूल से पढ़ाई कर लौट रहा था तब सिक्कों की एक थैली मुझे रास्ते में मिली थी।
दारोगा ने सोचा, ‘ये आदमी 20-25 साल पहले अपने बचपन में स्कूल जाता होगा और व्यापारी की थैली आज गिरी है, इसका मतलब व्यापारी की थैली से इसका कोई मतलब नहीं है, और वह वापस चला गया। चैकस्लोवाकिया मैं फ्रैंक की पढ़ाई के शुरूआत में धन मिलने को यूं तो सहज संयोग माना गया लेकिन आज भी वहां यह माना जाता है कि आर्थिक प्रगति के लिए पढ़ाई का विशेष महत्त्व है। (उर्वशी)

#पढ़ने से मिला धन