भारत-पाकिस्तान में अगर युद्ध हुआ तो क्या होगा ?

भारत-पाक के बीच जल्द ही युद्ध आरंभ हो, ऐसी कोई आशंका नहीं है। पाकिस्तान भयभीत है और उसे अपनी कमज़ोरी का अहसास है। वह आत्मघाती कदम नहीं उठाएगा। भारत भी पाकिस्तान को दूसरे अहिंसक विकल्पों से पर्याप्त परेशान करेगा, लेकिन पूर्ण युद्ध की खुली पहल से बचेगा। सो बयानों में ‘एस्केलेशन लैडर’ यानी तनाव को धीरे-धीरे बढ़ाने की नीति के तहत आक्रामकता बढ़ेगी पर आक्रमण और व्यापक युद्ध से दूरी बनी रहेगी। पाकिस्तान सरकार को युद्ध से घरेलू समर्थन भले मिले लेकिन बाद में यह उसके लिए घाटे का सौदा होगा। भारत में सरकार के पास पर्याप्त घरेलू समर्थन मौजूद है। उसको इसकी ज़रूरत नहीं। वैसे भी वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय परिस्थितियां दक्षिण एशिया में बड़े युद्ध की इजाजत नहीं देतीं। ऐसे में कुछ प्रतीकात्मक कार्रवाई से अधिक कुछ संभव नहीं दिखता। नि:संदेह यह कार्यवाही पाकिस्तान को भारी पड़ सकती है।
यदि पाकिस्तान की सरकार और सेना अदूरदर्शितापूर्ण फैसला लेते हुए, चीन के बहकावे में भारत को युद्ध का उत्तरदायी ठहराते हुए कोई सैन्य प्रतिक्रिया की पहल करते हैं, तो नि:संदेह भारत उसका जवाब देगा, क्योंकि आतंकवाद को जवाब देना हमारा राष्ट्रीय संकल्प है। महज नाभिकीय हथियारों की बराबरी के अलावा सभी दूसरे सैन्य क्षेत्रों में पिछड़े पाकिस्तान के लिये यह बहुत विकट स्थिति होगी; क्योंकि पाकिस्तान की तुलना में लगभग नौ गुना अधिक रक्षा पर खर्च करने वाले भारत के खिलाफ जंग में चीन का समर्थन उसे खुलकर नहीं, परोक्षत: ही होगा। इस्लामिक देशों में तुर्की के अलावा शायद ही कोई खुलकर उसके साथ आए। कुछ इस्लामिक देश समर्थन देंगे तो नैतिक ही। रूस, अमरीका, यूरोप इस युद्ध में उत्सुक दर्शक की भूमिका में होंगे जो यह देख रहे होंगे कि उनकी रक्षा प्रणालियां, हथियार, कितने गुणवत्तापूर्ण हैं, चीनी हार्डवेयर कैसे काम कर रहे हैं। उनकी निगाह युद्धरत देशों की सैन्य रणनीतियों, उनके योजनाकारों और सैनिकों के हथियारों को संभालने के कौशल तथा हथियार बेचने की जुगत पर होगी। सेना को वैधता दिलाने के चक्कर में गंभीर राजनीतिक और आर्थिक संकट से जूझ रहे पाकिस्तान के लिए यह युद्ध बर्बादी की ओर धकेलने वाला होगा। नि:संदेह यह जंग भारत में भी आर्थिक मंदी और अंतर्राष्ट्रीय दबाव बढ़ाने वाली होगी। हां, विजयी भारत की छवि आतंकवाद पर सख्त कार्रवाई करने वाले देश की बनेगी तथा साथ ही क्षेत्रीय रुतबा और बढ़ेगा।
माहौल गवाह है कि भारत और पाकिस्तान 2016 और 2019 के बाद एक बार फिर खतरनाक मोड़ पर हैं। टीवी, सोशल मीडिया तथा दूसरे संचार माध्यमों ने पहलगाम की घटना के बाद अत्यधिक जनाक्रोश को संबोधित करते हुए उससे पैदा ़गम और गुस्से का शमन करने, धैर्य देने की बजाय कुछ ऐसी भूमिका निभाई है कि यह महसूस होने लगा है कि अधिकांश देशवासियों की मुट्ठियां भिंची हुई हैं। युद्ध अवश्यंभावी है, अपरिहार्य है। इस बीच प्रधानमंत्री से मुलाकात के ठीक बाद रक्षामंत्री राजनाथ सिंह का कहना कि, ‘जनता जो चाहती है, वह होकर रहेगा।’ खुद प्रधानमंत्री इस मामले में ऐसे कई बयान दे चुके हैं, जिनके निहितार्थ यही निकलते हैं कि वह पहलगाम की आतंकी घटना को पाकिस्तान समर्थित हमला तथा इसके प्रतिकार-स्वरूप युद्ध को न्यायोचित मानते हैं तथा पाकिस्तान के दुस्साहस का प्रत्युत्तर देने का पक्का इरादा रखते हैं। इसके अलावा देश के तमाम राजनेता, लगातार ऐसे बयान दे रहे हैं, जो आमजन में पाकिस्तान को जल्द से जल्द दंड देने की भावना भर रहे हैं। सोशल मीडिया पर ऐसी सामग्री की भरमार है जो बताती हैं कि किस देश ने अपने ऊपर हुई आतंकी हिंसा का कितने दिनों बाद और कैसा भयानक बदला लिया। बेशक हमारे प्रधानमंत्री उससे भी भीषण प्रतिशोध लेंगे। बस, समय को देखकर दुश्मन का पतन सुनिश्चित करने के बाद, राष्ट्र-गौरव बढ़ाने वाला युद्ध अत्यंत नज़दीक है।  
सरकार ने आयात रोकने, सीमा पार आवाजाही, वीजा सेवा निरस्त करने, सिंधु समझौता निलंबित करने, पाकिस्तानी विमानों के लिये हवाई क्षेत्र प्रतिबंधित करने जैसे दसियों कदम उठाने के अलावा चिनाब का पानी रोक दिया, तो पाकिस्तान ने अपने बंकर दुरुस्त करने, सीमावर्ती क्षेत्र में रहने वालों को सचेत किया, अबाबील और अब्दाली जैसी मिसाइलों का परीक्षण किया, सीमा पर सीज फायर का उल्लंघन करते हुए गोलीबारी बढ़ा दी। साथ ही वह दुनिया को यह दिखाने लगा है कि पहलगाम घटना की निष्पक्ष जांच में सहयोग को वह प्रस्तुत है, फिर भी भारत उसके ऊपर युद्ध थोपने पर उतारू है। उधर प्रधानमंत्री मोदी ने दुनिया को साफ संकेत दिया कि देश पाकिस्तान की इस बेजा भड़काऊ हरकत की सशक्त सैन्य प्रतिक्रिया की तैयारी में है। उनके अनुसार युद्ध के लिये शांतिकामी भारत को विवश किया गया है, इसके लिए देश तैयार है। ऐसे में जब प्रधानमंत्री को रणनीतिक, कूटनीतिक, राजनीतिक स्तर पर युद्ध अनिवार्य लगे और रक्षामंत्री को यह जनता की चाहत महसूस हो, साथ ही संचार माध्यमों, प्रचार में युद्धोन्माद का वातावरण बनाया जा रहा हो, फिर अपनी कठोर छवि, निर्भीक निर्णयों के उदाहरणों और हालिया वादों, बयानों के चलते प्रधानमंत्री पर इसका जोरदार जवाब देने का भारी दबाव हो तो ऐसी जनभावना की निर्मिति स्वाभाविक है कि वर्तमान में युद्ध आवश्यक है। वैसे भी 2001 में संसद हमले, 2008 में मुंबई पर आतंकी आक्रमण तथा 2016 में उरी और 2019 में पुलवामा के बाद तीखी प्रतिक्रियाओं एवं सांकेतिक कार्यवाई के बाद युद्ध की नौबत नहीं आयी, तो इस बार ऐसा क्या अलग है कि भारत पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध शुरू करेगा। क्या आधुनिक युग में जहां यूक्रेन जैसे देश भी महाशक्ति रूस के खिलाफ बरसों लंबा युद्ध खींच पाने की क्षमता दिखाते हों, या फिर गाज़ा में भीषण नरसंहार देखने के अलावा युद्ध से उपजने वाली मानवीय त्रासदियों को टीवी पर जीवंत देखने के बाद भी दोनों देशों की सरकारें और उनकी जनता विनाशकारी युद्ध के लिये तैयार होंगी, और इससे सरकारों को दूरगामी सियासी फायदा होगा?
संभव है कि वह जंग के अलावा किसी और जुबान में पाकिस्तान को जवाब दें कि वह अवाक रह जाए। उसे ऐसी सीख मिले कि अगली बार ऐसी आतंकी साजिश से पहले सौ बार सोचे। साथ ही देश की जनता की जो चाहत है, वह भी पूरी हो जाये। हालांकि बहुतों के लिये यह सवाल अब भी कायम है कि क्या भारत युद्ध में उतरेगा या फिर यह सब बयानबाजी महज जनभावना को तुष्ट करने के लिये है? फिलहाल यह तय है कि भारत और पाकिस्तान के बीच कोई भी संघर्ष क्षेत्रीय स्थिरता के लिए नुकसानदायक तथा वैश्विक सैन्य संतुलन पर असर डालने वाला होगा। यह वैश्विक शक्ति विन्यास में परिवर्तन ला सकता है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

#भारत-पाकिस्तान में अगर युद्ध हुआ तो क्या होगा ?