पंजाब में नशे के विरुद्ध अभियान
पंजाब में सरकारी एवं सामाजिक धरातल पर नशे, और नशीले पदार्थों के विरुद्ध किये जाते सतत् प्रयासों से निकट भविष्य में प्रदेश को इस घोर-गम्भीर समस्या से थोड़ी-बहुत राहत मिलने की सम्भावना उजागर हुई प्रतीत होती है। इसका प्रमाण पंजाब में विगत एक ही दिन में नशे के विरुद्ध दो-दो सफल रैलियों के आयोजन से भी मिल जाता है। इनमें से एक रैली नशे और नशीले पदार्थों से उपजने वाले ़खतरे की रोकथाम हेतु चेतावनी-स्वरूप, प्रदेश के राज्यपाल गुलाब चन्द कटारिया के नेतृत्व में निकाली गई पद-यात्रा के समापन पर राजधानी क्षेत्र चंडीगढ़ के सैक्टर 17 में तिरंगा पार्क में आयोजित की गई थी जबकि दूसरी रैली प्रदेश की सरकार द्वारा नशे के विरुद्ध शुरू किये गये अभियान ‘युद्ध नशियां विरुद्ध’ के तहत जालन्धर में आयोजित की गई थी। चंडीगढ़ वाली रैली में हरियाणा के राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय के भी मंच पर मौजूद रहने से इस रैली का महत्त्व द्विगुणित हो जाता है। इस रैली की महत्ता इसलिए भी बढ़ जाती है कि इसमें दोनों प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों, पंजाब के भगवंत सिंह मान और हरियाणा के नायब सिंह सैनी ने भी भाग लिया। इस कारण एक तो यह रैली दो-दो प्रदेशों की सांझी रैली हो जाती है, दूसरे यह कि पंजाब के साथ यदि कंधे से कंधा मिला कर हरियाणा भी इस अभियान में शामिल हो जाता है, तो नि:संदेह इसकी सफलता की सम्भावनाएं और बलशाली हो जाती हैं। हरियाणा के बहुत से हिस्से कभी पंजाब का ही अंग रहे हैं और कि दोनों प्रदेशों की सीमाएं आज भी अनेक स्थानों पर आवासीय रूप से एक-दूसरे से सटी हुई हैं। इस कारण यदि यह समस्या दोनों प्रदेशों के लोगों पर असरंदाज़ होती है, तो इसके विरुद्ध चलाये गये अभियानों का असर भी दोनों प्रदेशों पर समान रूप से ही पड़ने की सम्भावनाएं बनती हैं।
पंजाब के राज्यपाल की ओर से दोनों प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों की उपस्थिति में नशे और नशीले पदार्थों की तस्करी एवं इनके सेवन के विरुद्ध एकजुटता का आह्वान करना जहां इस समस्या की गम्भीरता को दर्शाता है, वहीं इस समस्या के विरुद्ध संयुक्त प्रयासों की महती आवश्यकता की ओर भी बल देता है। रैली में यदि राज्यपाल की उपस्थिति सार्वजनिक रूप से जन-साधारण की सहमति की परिचायक है, तो मुख्यमंत्रियों की मौजूदगी सरकारी प्रशासन और तंत्र के समर्थन होने का भी संकेत है। राज्यपाल कटारिया द्वारा पंजाब के ज़िक्र के साथ गुरु साहिबान के उपकारों और उनके बलिदानों का ज़िक्र करना भी यही प्रकट करता है कि पंजाब कभी बलिदानियों और शूरवीरों की धरती रहा है किन्तु आज नशा और नशीले पदार्थ दोनों प्रदेश की युवा शक्ति को घुन की भांति खाने लगे हैं।
जालन्धर में नशे के विरुद्ध प्रदेश सरकार की युद्ध-रैली भी कुछ इसी तरह का संकेत देती है। रैली में जहां मुख्यमंत्री ने नशे के विरुद्ध प्रदेश सरकार के युद्ध अभियान को पूर्व गति से जारी रखने का आह्वान किया, वहीं नशीले पदार्थों के तस्करों के मकानों को बुलडोज़रों से ध्वस्त करना जारी रखने की भी घोषणा की। मुख्यमंत्री ने इस अवसर पर उपस्थित मंत्रियों, सांसदों, विधायकों एवं विभिन्न गांवों के सरपंचों, पंचों एवं वार्डों के पहरेदारों को नशे के विरुद्ध युद्ध अभियान की शपथ भी दिलाई। इसी रैली में प्रदेश के काबीना मंत्री अमन अरोड़ा ने सरकार के इस अभियान के प्रति व्यापक रूप से जन-समर्थन की भी अपील की। इस रैली में वक्ताओं द्वारा ‘नशे के विरुद्ध युद्ध’ अभियान को भाई-भतीजावाद के भेदभाव से परे रखने की घोषणाएं भी इसकी सफलता की उम्मीदों को बढ़ाती हैं।
नि:संदेह हम एक ओर जहां गुरुओं-पीरों की धरती को नशे के अभिशाप से मुक्त रखने के प्रबल समर्थक हैं, वहीं सरकार और जन-साधारण द्वारा किये जाते यत्नों और प्रयासों के सदका हासिल होने वाली उपलब्धियों के प्रति आशावान भी हैं, तथापि हम इस अभियान के दौरान सरकारी स्तर पर कानूनोल्लंघन के द्वारा की जाने वाली कार्रवाइयों के भी कदापि समर्थक नहीं हैं। बेशक नशे के तस्करों और इस कृत्य में संलग्न कारोबारियों की अवैध सम्पत्तियों, रिहायशों और उनके अड्डों को ध्वस्त किया जाना तर्क संगत हो सकता है, किन्तु कानून की सीमाओं के बाहर जा कर कोई ऐसा कृत्य नहीं किया जाना चाहिए जिससे उनके निर्दोष पारिवारिक जनों और अन्य सम्बद्ध लोगों को अकारण परेशानी हो। यह कदाचित न्याय-संगत भी नहीं है। हम यह भी समझते हैं कि अपने मकसद को हासिल करने के लिए सरकार और प्रशासन को ‘कुछ भी’ करने का हक है, किन्तु यह भी, कि यह ‘कुछ भी’ कानून की सीमा के भीतर तक होना चाहिए। सरकार यदि स्वयं ही कानूनोल्लंघन करने लगेगी, तो अदालतों की उंगली उस की ओर भी तो उठेगी ही। अत: नशे और नशीले पदार्थों के विरुद्ध अभियान को नि:संदेह मंज़िल-ए-म़कसूद तक पहुंचाया जाना चाहिए, किन्तु इस हेतु कोई ऐसी कार्रवाई भी नहीं की जानी चाहिए जिससे सरकार पर कानूनोल्लंघन का दोष लगे।