क्या आई.एम.एफ. की शर्तें पूरी कर सकेगा पाक ?
जिस समय दुनिया आतंकवाद से लड़ने के लिए एकजुट होने का दिखावा कर रही है, उसी समय एक ज़िम्मेदार अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं आतंकवाद के सबसे बड़े पोषक को आर्थिक मदद दे रही हैं। हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आई.एम.एफ.) ने पाकिस्तान को 2.4 बिलियन डालर का जो ऋण स्वीकृत किया है, वह आतंकवाद को पोषिक करने पर खर्च किया जा सकता है। आज पूरी दुनिया आतंकवाद से जूझ रही है। जिसे दुनिया पाकिस्तान कहती है, वह अब आतंकियों की फैक्टरी बन चुका है। कड़वी सच्चाई है कि अमरीका, भारत, अफगानिस्तान, ईरान और स्वयं पाकिस्तान के नागरिक आतंकवाद को झेल रहे हैं।
यह वही पाकिस्तान है जहां अमरीका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला करवाने बाला ओसामा-बिन-लादेन को सेना की छावनी से कुछ दूरी पर शरण मिली थी। संयुक्त राष्ट्र द्वारा आतंकी घोषत हाफिज सईद जैसे लोग वहां चुनावी दलों के मंच पर बुलाये जाते हैं। वहां मसूद अज़हर के आतंकी शिविर वहाँ की सरकार की सहमति से चलाए जाते हैं। उस देश की सीमाओं के भीतर आतंकियों को आश्रय, प्रशिक्षण और वित्तीय सहयोग खुलेआम दिया जा रहा है। हाफिज सईद, मसूद अज़हर, दाऊद इब्राहिम, सैयद सलाउद्दीन जैसे कुख्यात आतंकी वहां मौज कर रहे हैं। वहां पर उन्हें न सिर्फ संरक्षण मिला हुआ है, बल्कि सरकार द्वारा सभी सुविधाएं उपलब्ध करवाई गई हैं। यह वही मुल्क है जहां मस्जिदों और मदरसों की आड़ में आतंकी शिविर चलाए जाते हैं। वहां से निकलने वाले आत्मघाती हमलावरों ने कई देशों को लहू-लुहान किया है। आज इस देश की नीतियों में यदि किसी शब्द की सबसे अधिक आवृत्ति हो रही है तो वह है जिहाद। यह जिहाद शब्द निर्दोषों की हत्या, अल्पसंख्यकों के दमन और लोकतांत्रिक मूल्यों के विनाश का सिर्फ एक औज़ार है।
पाकिस्तान को 7 बिलियन डालर की योजना के तहत दिए गए 1 अरब अमरीकी डालर और जलवायु लचीलापन सुविधा के तहत 1.4 बिलियन डालर मिलाकर कुल ़2.4 बिलियन की सहायता अब एक प्रश्न बन चुकी है क्योंकि आई.एम.एफ. ने पाकिस्तान को यह राशि उस समय दी है जब उस देश की अर्थव्यवस्था पूर्णत: चरमरा चुकी है। आई.एम.एफ. ने पाकिस्तान को आर्थिक मदद हेतु मंज़ूरी देने के बाद अब अपने अगले बेलआऊट पैकेज की आगामी किस्त जारी करने से पहले 11 नई शर्तें लगा दी हैं। इससे पाक पर कुल शर्तों की संख्या 50 हो गई है। क्या पाक इन शर्तों को पूरा कर सकेगा, यह भविष्य ही बताएगा। वहां की सरकार किसी का कर्ज चुकाने में असमर्थ है, मुद्रास्फीति आसमान पर है और वहां के आम नागरिक दो वक्त की रोटी के लिए संघर्ष कर रहा हैं। ऐसे में आई.एम.एफ. द्वारा दी गई यह राशि कहां खर्च की जाएगी, यह सबसे बड़ा प्रश्न है। क्या इस बात की कोई गारंटी है कि इस धन का उपयोग वहां की आम जनता की भूख मिटाने, शिक्षा या स्वास्थ्य पर खर्च किया जाएगा।
इस प्रकार अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा दिया जा रहा यह ऋण आर्थिक मदद नहीं माना जा सकता। हो सकता है कि यह फंड आतंकवादियों पर खर्च कर दिया जाए या हथियारों की खरीद में लगा दिया जाए। अब यह प्रश्न भी अनिवार्य हो गया है कि क्या एक ऐसे देश को परमाणु हथियार रखने की अनुमति दी जानी चाहिए, जिसने अपनी धरती को आतंकवादियों की सुरक्षित पनाहगाह बना रखा है? इस देश का परमाणु भंडार यदि कभी आतंकी हाथों में आ गया, तो यह मानवता के लिए सबसे बड़ा खतरा होगा। पाक सरकार और सेना के बीच संघर्ष, सेना और कट्टरपंथियों के बीच गठबंधन किसी भी तरह शुभ संकेत नहीं है। यह गम्भीर विचार करने वाली बीत है कि अगर पाकिस्तान का कोई परमाणु हथियार गलती से भी किसी आतंकी संगठन के हाथ लग जाए तो क्या होगा?
भारत ने आई.एम.एफ. की वोटिंग से खुद को अलग रखते हुए यह स्पष्ट कर दिया था कि यह बेलआउट पैकेज आतंकवाद को आर्थिक संबल देने के समान है। भारतीय नीति निर्माताओं का तर्क था कि यह धनराशि आम नागरिकों की भलाई पर खर्च नहीं की जाएगी, बल्कि इसका उपयोग हथियार खरीदने, आतंकी संगठनों को प्रशिक्षित करने और सीमाओं पर अस्थिरता बढ़ाने में किया जा सकता है, जिसे नज़रअंदाज़ कर दिया गया।
दु:ख की बात है कि अमरीका, फ्रांस, जर्मनी, जापान और ब्रिटेन जैसे देश जो आतंक के विरुद्ध खड़े होने का हमेशा दावा करते रहते हैं, उन्होंने उक्त फंडिंग को अपना मूक समर्थन दिया है। यह वही अमरीका है जिसने 2011 में पाकिस्तान के भीतर घुसकर ओसामा-बिन-लादेन को मार दिया था, अब खामोश है। जो देश लोकतंत्र, मानवाधिकार और वैश्विक शांति के बड़े पैरोकार बने हुए हैं, आज पाकिस्तान की आतंकवादी नीतियों पर खुल कर सामने क्यों नहीं आ रहे? यदि दुनिया अब भी नहीं जागी, तो बहुत देर हो जाएगी। पाकिस्तान यदि अपनी धरती पर आतंकवाद के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करता तो उसे किसी भी तरह की आर्थिक या अन्य सहायता बंद होनी चाहिए। संयुक्त राष्ट्र को उसके परमाणु भंडार पर नज़र रखनी चाहिए। सभी लोकतांत्रिक देशों को पाकिस्तान के साथ रक्षा और रणनीतिक सहयोग समाप्त कर देना चाहिए। पाकिस्तान में चल रहे आतंकी प्रशिक्षण शिविरों को अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत ध्वस्त किया जाना चाहिए। ये विचार किसी राष्ट्र के विरोध में नहीं हैं, बल्कि यह मानवता की रक्षा के लिए आतंकवाद के खिलाफ हैं। अब वक्त आ गया है कि दुनिया आतंकवाद के खिलाफ सिर्फ भाषण न दे अपितु क्रियात्मक रूप में आगे आए। (युवराज)