यही वक्त है गुलाम कश्मीर को वापिस लेने का
पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर को वापिस लेने का क्या यही सही वक्त है? आखिर भारत उसे कैसे हासिल कर सकता है? देश को इसकी शुरुआत कैसे करनी चाहिये? इसका रोडमैप क्या हो? क्या सरकार और सेना इसके लिये वाकई तैयार हैं? बेशक हमारे लिये यह बहुत बेहतर समय है, लेकिन महज जोशीले बयानों से यह नहीं होगा, इसके लिए सुविचारित और प्रतिबद्ध ज़मीनी कारगुजारी करनी होगी।
पाकिस्तानी कब्ज़े वाले अपने कश्मीर की वापसी का दावा बरसों से सियासी भाषणों में किया जाता रहा है। आज अचानक ऑपरेशन सिंदूर, नेताओं के बयानों, मीडियायी ललकार के बाद यह फिर चर्चा का विषय बना है। सरकार इसके लिए उद्धत है और वह लगे हाथ यह काम निबटा सकती है। दरअसल ऐसे प्रचारों ने जनांक्षाओं को जगा दिया है। एक प्रमुख विपक्षी दल के नेता ने यह कहकर सरकार की आलोचना की कि यदि उसने युद्ध विराम स्वीकार न किया होता, तो आज गुलाम कश्मीर (पीओके) हमारा होता। सारी कश्मीर समस्या एक झटके में निबट गई होती। इन सबसे ऐसी जनभावना जगी है कि तमाम क्षेत्रों से आवाज़ उठने लगी हैं, ‘पाक अधिकृत कश्मीर को अपने साथ मिलाने का यही सही वक्त है।’ देश में राष्ट्रवाद उफान पर है, इस गर्म माहौल का लाभ ले जनेच्छा को पूर्ण करना ही चाहिये। सेना जोश में है, पाकिस्तान आर्थिक तौर पर पस्त है, आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में दुनिया का नैतिक समर्थन हमारे साथ है। पाकिस्तान का शिमला समझौता तोड़ना मतलब एलओसी की मान्यता ही खत्म होना है। अत: सेना गुलाम कश्मीर में बिना किसी कायदे-कानून की चिंता के दाखिल हो सकती है।
फिर हमारे पास वहां के आतंकी शिविरों के नष्ट करने की बड़ी सैन्य कार्रवाई का सकारात्मक उद्देश्य भी है। पीओके में पाकिस्तान के अत्याचारों के खिलाफ असंतोष है, वहां के लोग स्वाभाविक तौर पर हिंदुस्तान के समर्थन में हैं। ऑपरेशन सिंदूर के बाद और उससे पहले भी प्रधानमंत्री हों या रक्षा मंत्री, विदेश मंत्री या फिर गृह मंत्री, सभी इस बाबत बयान दे चुके हैं कि वे सब अब गुलाम कश्मीर को अपने में मिलाने को कृतसंकल्प हैं। सरकार के कई ज़िम्मेदार मंत्री,वरिष्ठ नेता इस बात को दोहरा रहे हैं कि मौजूदा सरकार अपनी कोशिशों से बहुत जल्द गुलाम कश्मीर को भारत में मिला लेगी, प्रधानमंत्री मोदी ने इसीलिए यह इशारा दिया है कि ऑपरेशन सिंदूर अभी खत्म नहीं हुआ है। अभी यह अपने अंजाम तक तब पहुंचेगा जब पाकिस्तान और गुलाम कश्मीर के भीतर के तकरीबन सभी आतंक के अड्डे नष्ट कर दिये जाएंगे और गुलाम कश्मीर को आज़ाद कर लिया जाएगा। तो क्या मान लिया जाए कि स्थगित ऑपरेशन सिंदूर भविष्य में विस्तारित होकर गुलाम कश्मीर को आज़ाद कराने वाला अभियान चलाएगा और विश्वास किया जाए कि इससे यह उम्मीद व्यवहारिक और तर्कपूर्ण है?
पीओके को वापिस लाने का सबसे तेज तरीका है सीधा युद्ध, जो बहुत खतरनाक और काफी हद तक अव्यवहारिक होने के साथ भीषण आर्थिक तथा जनहानि वाला कदम होगा। देश मजबूत है हमारी सेना भी सक्षम लेकिन इसके बावजूद यह एक कठिन विकल्प है। पाकिस्तान का संविधान पीओके को विदेशी ज़मीन कहता है और यह बात सरकार अदालत में स्वीकार चुकी है। वह पाकिस्तान का हिस्सा तभी होगा, जब लोग उससे जुड़ना स्वीकारेंगे। गुलाम कश्मीर पर हमारा दावा सही है, इसलिये हम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कूटनीतिक जंग जीतने की ओर बढ़ सकते हैं। भारत इस मामले मजबूत तो है, परन्तु यह एक लंबी और अनिश्चित प्रक्रिया है। उचित यह है कि भारत मानवता के नाम पर गुलाम कश्मीर में होने वाले अत्याचारों के खिलाफ स्थानीय आंदोलनों का समर्थन कर, उदारता और आज़ाद कश्मीर के विकास दर्शाकर वहां के लोगों में अपनी राजनीतिक और सैन्य समर्थन बढ़ाए, आतंकी ठिकानों, संगठनों को नष्ट करे, सलामी स्लाइसिंग गतिविधि से महत्वपूर्ण इलाकों पर कब्जा करे और पाकिस्तान की सैन्य स्थिति को कमजोर।
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