जरनैलों की हुकूमत
विगत दिवस पहलगाम के कत्लेआम की प्रतिक्रिया स्वरूप भारत द्वारा पाकिस्तान के आतंकवादी ठिकानों का भारी नुकसान करने के बाद 4 दिनों में ही आखिरकार पाकिस्तान को युद्ध-विराम के लिए भारत को फोन करना पड़ा। हमलावर रवैया धारण करते हुए ही भारत ने पाकिस्तान के सैन्य ठिकानों को भी निशाना बनाया था और उनका भारी नुकसान किया था। इस दौरान चाहे वह तिलमिलाता रहा परन्तु भारत के विरुद्ध युद्ध छेड़ने की उसकी हिम्मत नहीं हुई। अपने अस्तित्व के 78 वर्ष के इतिहास में पाकिस्तान वर्ष अक्तूबर 1947, 1965, 1971 और 1999 में बड़े युद्ध लड़ चुका है, जिनमें उसे हमेशा हार का मुंह देखना पड़ा। 1971 के युद्ध के बाद उसने भारत के साथ छद्म युद्ध की नीति अपनाई। इसमें सैन्य जरनैल ही अग्रणी रहे।
आतंकवादियों के कंधों पर बंदूक रख कर पिछले 35 वर्षों से पाकिस्तान भारत के विरुद्ध लगातार हिंसक गतिविधियों को अंजाम देता आया है, जिनमें हज़ारों ही लोग मारे जा चुके हैं और अरबों-खरबों रुपए का नुकसान उठाना पड़ा है। नि:संदेह आज पाकिस्तान का प्रभाव एक हारे हुए देश का बन चुका है, जो आर्थिक पक्ष से भी, सामाजिक पक्ष से भी और राजनीतिक पक्ष से भी बुरी तरह पिछड़ा हुआ दिखाई देता है। अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर उसका प्रभाव दुनिया के ़खतरनाक देशों में माना जाने लगा है। यदि इसके राजनीतिक दृश्य पर दृष्टिपात करें तो 1947 से लेकर अब तक इसके प्रधानमंत्री लगातार मात खाते रहे हैं। उनके शासनकाल को वर्षों में नहीं, महीनों में ही गिना जाता है। 1947 में सबसे पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान 50 महीने अपने पद पर रहे। उसके बाद चौधरी मुहम्मद अली सिर्फ 13 महीने, इब्राहिम इस्माइल 2 महीने, फिरोज़ खान 9 महीने, मुहम्मद जुनेजो 38 महीने, बेनज़ीर भुट्टो पहली बार 20 महीने और दूसरी बार 36 महीने प्रधानमंत्री रहे। इनके अतिरिक्त अन्य प्रधानमंत्रियों की लम्बी सूची है, जिनकी इस पद पर राजनीतिक ज़िन्दगी कुछ महीने ही रही। 1973 में वहां के लोकप्रिय नेता जुल़्िफकार अली भुट्टो 46 महीने ही शासन कर सके। इसी तरह प्रमुख राजनीतिज्ञ नवाज़ शरीफ 1990 में 29 महीने, 1993 में एक महीना, 1997 में 31 महीने और 2013 में 49 महीने ही शासन कर सके।
उनके मुकाबले में समय-समय आए सैन्य तानाशाहों ने अपने-अपने तौर पर 10 वर्ष से भी अधिक शासन किया। इनमें अयूब खान 11 वर्ष, जनरल ज़िआ-उल-हक, जनरल परवेज़ मुशर्रफ आदि सैन्य तानाशाहों ने लम्बी अवधि तक पाकिस्तान को अपनी मज़र्ी की नीतियों से दबाये रखा। अब इसी मार्ग पर आसिम मुनीर चलता दिखाई दे रहा है। उसने नवम्बर, 2022 में यह पद सम्भाला था। इसी समय में ही उसने पाकिस्तान के बेहद लोकप्रिय नेता इमरान खान को जेल में डाल दिया। कुछ पार्टियों की मिलीभुगत से शहबाज़ शरीफ की सरकार बनाई परन्तु जनरल आसिम मुनीर लगातार अपनी शक्ति बढ़ाता रहा। विगत 4 दिनों की लड़ाई में चाहे पाकिस्तान हार गया था परन्तु जनरल मुनीर ने इसके बावजूद अपनी पकड़ को और मज़बूत कर लिया।
पाकिस्तान के इतिहास में फील्ड मार्शल अयूब खान जिसने 1959 में सत्ता सम्भाली थी, के बाद आसिम मुनीर ही इस पद पर पहुंचा है। चाहे यह घोषणा शहबाज़ शऱीफ की सरकार ने ही की है तथा आज उसका अपने देश में रुतबा बहुत ऊंचा हो गया दिखाई देता है। जनरल मुनीर भारत का कट्टर दुश्मन है। वह हिन्दू और मुसलमानों को प्रत्येक पक्ष से बिल्कुल अलग समझता है और धर्म के आधार पर दो देशों की विचारधारा में विश्वास रखता है।
चाहे पाकिस्तान में आज यह विचारधारा बुरी तरह विफल हुई दिखाई देती है क्योंकि बलोचों और पख्तूनों ने अपने-अपने प्रांतों में सख्त ब़गावत का ध्वज उठा लिया है और व्यापक सीमा तक अपने संघर्ष में सफल होते भी दिखाई दे रहे हैं। एक बार फिर देश की कमान सेना के हाथ आ जाने के कारण भारत की चिन्ताएं ज़रूर बढ़ सकती हैं परन्तु स्थिति के दृष्टिगत अब उसे अपनी नीति में भी बड़े बदलाव लाने की ज़रूरत होगी।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द