कृषि अवशेषों के प्रबन्धन हेतु नई व्यवस्था

पंजाब में रबी की फसल गेहूं की कटाई, गहाई और फिर उसकी बिक्री का मौसम खत्म हो जाने के दृष्टिगत, कृषि अवशेषों को जलाये जाने की घटनाएं बेशक सरकार, प्रशासन और कृषि विशेषज्ञों के लाख यत्नों के बावजूद, पूर्ववत जारी दिखाई दी हैं, किन्तु इनके समुचित प्रबन्धन हेतु प्रदेश सरकार द्वारा तैयार की गई नई नीतिगत व्यवस्था से नि:संदेह रूप से ऐसी घटनाओं में समुचित रूप से कमी आने की सम्भावना भी जागृत होते प्रतीत हुई है। बेशक इस समस्या के निदान हेतु अब तक किए गए प्रयासों के सदका ही, ऐसी घटनाओं में पिछले दो वर्षों की तुलना में कमी आई है। इस वर्ष के मौसम के समाप्त होने तक गेहूं की नाड़ को आग लगाये जाने की कुल 10,189 घटनाएं सामने आई हैं, जबकि 2023 और 2024 में ऐसी घटनाओं की संख्या 10,644 और 10,327 रही थी। उल्लेखनीय है कि सरकार द्वारा गेहूं और धान की कटाई के बाद इनके अवशेषों क्रमश: नाड़ और पराली के प्रबन्धन हेतु एक नई योजना तैयार की गई है। इससे एक ओर जहां उद्योगों को लाभकारी स्थिति हासिल होगी, वहीं किसानों को दोहरा लाभ प्राप्त हो सकेगा। उद्योग एवं व्यापार पर आधारित इस नीति से किसानों, उद्योगपतियों एवं व्यापारियों के लिए अलग-अलग क्षेत्रों पर आधारित प्रावधान किए गए हैं। सरकार ने इसके लिए अनेक धरातलों पर सब्सिडी प्रदान करने की योजना भी तैयार की है।
सरकार की इस नई नीतिगत योजना में पराली और अन्य कृषि अवशेषों को न जलाने वाले किसानों को पराली-प्रबन्धन के तहत सब्सिडियों की व्यवस्था की गई है। इस योजना की घोषणा बाकायदा तौर पर प्रदेश के उद्योग मंत्री तरुणप्रीत सिंह सौंद ने की थी। उद्योग मंत्री की इस घोषणा में बेशक दम प्रतीत होता है कि सरकार नाड़ और अन्य कृषि अवशेषों के स्थायी प्रबन्धन, पराली के निपटारन के साथ किसानों की आय में अतिरिक्त वृद्धि करने के लिए वचनबद्ध है, और कि सरकार की इस योजना को कृषि विशेषज्ञों की बाकायदा राय और उनके सलाह-मशविरा के साथ तैयार किया गया है।
सरकार की ओर से कृषि अवशेषों के समुचित प्रबन्धन हेतु एक बार फिर पूरी शक्ति से मैदान में उतरने की बात को इस प्रकार भी समझा जा सकता है कि प्रदेश में खरीफ की नई फसल के लिए बुआई शुरू हो गई है। सरकार ने एक ओर धान की सीधी बुआई करने वाले किसानों को अतिरिक्त सुविधाएं देने की घोषणा की है, वहीं मौनसून की आहट इस बार जल्दी सुनाई दे जाने की घोषणाएं भी मौसम विभाग की ओर से बार-बार की जा रही हैं। प्रदेश सरकार के एक अन्य काबिना मंत्री अमन अरोड़ा ने भी पराली न जलाये जाने, और खास तौर पर इसके निस्तारण हेतु खास व्यवस्था करने के लिए तीन कम्पनियों को 13 कम्प्रैस्ड बायोगैस प्लांट अलाट किए जाने की घोषणा की है। इससे भी यही प्रतीत होता है कि सरकार कृषि-अवशेषों को जलाये जाने से रोकने और इनके अन्य समुचित प्रबन्धन हेतु एक बार फिर कमर कसने को तैयार है।
पंजाब देश का अन्न भण्डार है, और विगत कुछ वर्षों से निरन्तर प्रदेश में गेहूं और धान का निरन्तर रिकार्ड उत्पादन हो रहा है। बहुत स्वाभाविक है कि रिकार्ड फसल होने के बाद कृषि अवशेषों अर्थात नाड़ और पराली की समस्या भी उतनी ही गम्भीर होगी। दूसरी ओर वायु गुणवत्ता प्रबन्धन आयोग (ए.क्यू.एम.सी.) ने भी हवा की क्वालिटी को लेकर पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश की सरकारों के नाक में दम कर रखा है। आयोग ने एक ओर जहां इन सरकारों को वायु-प्रदूषण को यथा-सम्भव नियंत्रित करने पर ज़ोर दिया है, वहीं कृषि अवशेषों को औद्योगिक प्रयोग में लाये जाने की निश्चित व्यवस्था अपनाना भी आवश्यक करार दिया है। आयोग ने इस लक्ष्य की प्राप्ति करने हेतु छोटे और मझोले किसानों को उपयोगी मशीनें उपलब्ध कराने हेतु भी कहा है। वहीं सरकारों को अपनी ओर से किराया-मुक्त मशीनों की व्यवस्था करने का परामर्श भी दिया गया है। ऐसी मशीनों की खरीद हेतु समुचित सब्सिडी दिए जाने की व्यवस्था से भी इस समस्या के निदान-पथ पर कुछ अच्छे पग उठाये जाने की सम्भावना बनती है।
हम समझते हैं कि नि:संदेह सरकार, प्रशासन और कृषि विशेषज्ञों की ओर से संयुक्त रूप से किए जाते प्रयासों से पंजाब में कृषि अवशेषों के समुचित प्रबन्धन के सार्थक परिणाम उपजने की व्यापक सम्भावना बनते दिखाई देती है। आवश्यकता केवल इस हेतु सतत् जुटे रहने और सभी पक्षों की नज़रों में प्रदेश के हित को बनाये रखने की है। प्रदेश के हित में यह भी ज़रूरी है कि लक्ष्य की प्राप्ति के पथ पर राजनीतिक और व्यक्तिगत हितों को भारी न पड़ने दिया जाए। हम यह भी समझते हैं कि देर-सवेर ऐसे यत्न अवश्य फलदायी सिद्ध होंगे जो प्रदेश के हित में होंगे। 

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