अपना-अपना भाग्य
किसी नगर में देव शक्ति नाम का एक राजा रहता था। उसके लड़के के पेट में एक सर्प रहा करता था, जिसके कारण लड़का बहुत दु:खी रहता था और वह शरीर से बहुत दुर्बल तथा निर्बल भी हो गया था। अपनी जिन्दगी से निराश होकर वह घर छोड़कर परदेश को चला गया। वहां जाकर वह भिक्षा मांग कर पेट पालता और रात में एक मंदिर में जाकर सो जाया करता था।
जिस नगर में वह राजकुमार इस समय रहता था, उस नगर के राजा का नाम चित्ररथ था। चित्ररथ के दो कन्याएं बड़ी ही रुपवती थीं और युवती हो चली थीं। दोनों कन्याएं सूर्योदय काल में अपने पिता राजा चित्ररथ के समीप जातीं और उसके चरण-स्पर्श करतीं और पिताजी से आशीर्वाद लेती थीं। यह काम वे दोनों प्रतिदिन ही करती थीं।
एक दिन उन कन्याओं में से एक ने राजा को प्रणाम करने के बाद कहा कि-‘महाराज विजयी हों। आपकी कृपा से ही मुझे सम्पूर्ण सुख भोगने को मिल रहे हैं।’ यह सुनकर दूसरी लड़की ने कहा कि -‘महाराज! हम सभी अपने-अभने भाग्य और कर्मों के अनुसार ही सुख-दुख भोगते हैं।’
दूसरी कन्या के इस वचन को सुनकर राजा को बहुत क्रोध आया। राजा ने अपने मंत्रियों से कहा कि-‘इस राजकुमारी को ले जाकर किसी विदेशी और गरीब लड़के से इसका विवाह कर दो, फिर देखते हैं कि इसका भाग्य और कर्म इसे कैसे सुखी बनाते हैं।’
मंत्रियों ने राजकुमारी को ले जाकर उसी मंदिर में रहने वाले भिक्षुक राजकुमार के साथ उस लड़की की शादी करा दीं। राजकुमार ने भी प्रसन्न मन से उसको स्वीकार कर लिया और उसको लेकर एक-दूसरे राज्य में चला गया।
सुदूर देश के एक नगर में पहुंच कर उसने एक तालाब के किनारे अपनी झोपड़ी बनायी और उसी में दोनों पति-पत्नी अपना जीवन-निर्वाह करने लगे। एक दिन पति को झोपड़ी की सुरक्षा के लिए नियुक्त कर राजकुमारी स्वयं गांव में उसके लिए भोजन लाने गयी। जब वह गांव से वापस लौटी तो उसने देखा की राजकुमार सांप की एक बॉबी (बिल) पर सिर रखकर सो रहा है और एक सांप अपना फन फैलाए उसके मुख से निकलने वाली हवा को पी रहा है। पास वाले बिल से निकलकर दूसरा सांप भी ऐसा ही कर रहा था। उन सांपों ने जब एक-दूसरे को देखा तो बाद में आने वाले सांप ने पहले वाले सांप से कहा-‘अरे दुष्ट! तू इस राजकुमार को क्यों तंग कर रहा है?’
पहले वाले सांप ने उत्तर दिया-‘तू मुझसे क्यों कह रहा है? तूने भी अपने बिल में रखे हुए सोने के ढेर को गंदा कर रखा है।’
इस वाद-विवाद में गुस्से में आकर दोनों ने एक-दूसरे का भेद खोल दिया। एक सांप ने दूसरे से कहा कि तेरे मरने का तो उपाय मैं जानता हूं और वह यह है कि पुरानी सरसों को पीसकर तुम्हारे बिल में डाल दी जाय तो तुम मर जाओगे।
दूसरा सांप भी बोला कि अरे मूर्ख! मेरे मरने का भेद कोई नहीं जानता। अगर तुम्हारे बिल में गर्म पानी डाल दिया जाय तो तुम भी झुलसकर मर जाओगे।
दोनों सांपों के इस वार्तालाप को पास के एक वृक्ष की आड़ में खड़ी राजकुमारी सुन रही थी।
राजकुमारी के तो भाग्य खुल गए और उसने सर्पों के बताए उपायों से एक सांप के बिल में पीसी सरसों डाल दी और दूसरे के बिल में खौलता पानी उड़ेल दिया। दोनों सांप मर गए। राजकुमारी ने सांप के बिल में रखे सोने के ढेर को निकाल लिया और अपने पति की दवा कराकर पूर्ण स्वस्थ और निरोग करा लिया।
राजकुमार और राजकुमारी पति-पत्नी के रुप में अपने राज्य को वापस लौटने का विचार करने लगे। उन्होंने सोचा कि अब तक तो हम दोनों भीख मांग-मांगकर गुजारा करते रहे और अपार दु:ख भोगते रहे, लेकिन अब तो हम लोग सोने की बहुत बड़ी राशि अपने भाग्य से पा गए है, अब भला अपने देश को क्यों न चलें। दोनों ने स्वदेश लौटने का विचार पक्का कर लिया और वहां से रवाना होकर राजकुमारी अपने पिता के राज्य में वापस आ गयी।
इधर जब राजा चित्ररथ ने अपनी पुत्री के विषय में सारी जानकारी पायी तो फूले न समाए और अपने दामाद तथा पुत्री का स्वागत करने उनके महल में पहुंचे। इन दोनों पति-पत्नी ने भी राजा साहब का बहुत सम्मान तथा आदर-सत्कार किया। राजा ने अब स्वीकार करते हुए कहा-‘हां, बेटी! तुम्हारी ही बात सच निकली। सभी अपने -अपने भाग्य और कर्म के अनुसार ही सुख-दुख भोगते हैं। (सुमन सागर)