प्रेरक प्रसंग-यश प्राप्ति
सिकन्दर ने विश्व पर विजय प्राप्त करके भी क्या यश पा लिया? किन्तु दान देने वालों का यश सर्वत्र फैलता है। दानवीर झगडुशाह को ऐसी स्थिति ने झकझोर दिया। उनका हृदय अनुकम्पा से द्रवित हो गया। उन्होंने अधिक दानशालाएं खुलवा दीं।
गांव-गांव में लगभग सौ से अधिक दानशालाएँ झगडुशाह को पता चला कि कितने ही ऊंचे खानदान के लोगों की आर्थिक स्थिति विषम हो गयी है फिर भी वह आंगने में संकोच करते हैं। उनके लिए एक पर्दा डालकर दानशाला बनवायी जिसमें केवल अन्दर हाथ जा सकता था। लोग हाथ डालते, झगडुशाह स्वयं उनके हाथ में रुपया-पैसा धन आदि रख देते। वह सन्तुष्ट होकर चला जाता।
वहां के राजा मिसलदेव ने भी दानशालाएं खोलीं किन्तु कुछ समय में धन समाप्त होने पर उन्होंने दानशालाएं बंद कर दीं।
सेठ झगडुशाह की बड़ी प्रसिद्धि सुन रहे थे। स्वयं भिखारी के वेश में राजा परीक्षा की दृष्टि से सेठ झगडुशाह के यहां पहुंचा और पर्दे में हाथ डाला। झगडुशाह ने उस हाथ की रेखाओं से कोई बहुत बड़ा आदमी समझकर और यह जानकर कि यह आपत्तिग्रस्त है सो एक बहुमूल्य हीरे की अंगूठी दे दी। जब राजा ने दूसरा हाथ झगडूशाह के सामने खोला तो सेठ ने भिखारी राजा के हाथ में दूसरी हीरे की अंगूठी रख दी। राजा दोनों अंगूठी अपने राजमहल ले गया।
दूसरे दिन सभा में झगडुशाह को बुलवाया और अंगूठी दिखाकर कहा ये अंगूठियां आपने किसे दी थी? और क्यों दी थी? सेठ ने कहा-मैंने हाथ देखा तो मुझे लगा कि कोई बड़ा आदमी है अत: मैंने एक अंगूठी दे दी थी किन्तु जब उसने दूसरा हाथ फैलाया तो मुझे विचार आया कि किसी बहुत बड़ी परेशानी में फंसा है अत: मैंने उसे दूसरी बहुमूल्य अंगूठी दे दी।
इस बात पर राजा अत्यन्त प्रसन्न हुए और सेठ का बहुत अधिक सम्मान किया, हाथी पर बिठाकर शोभा यात्रा निकाली। (सुमन सागर)