भारत और अमरीका के रिश्ते को लेकर असमंजस की स्थिति

डोनाल्ड ट्रम्प अमरीकी कम्पमी एप्पल के पीछे पड़े हैं कि भारत में यदि उत्पादन किया तो अमरीका में 25 प्रतिशत टैरिफ  लग जाएगा। ट्रम्प अलग-अलग मंचों से मेक इन इंडिया का विरोध कर रहे हैं लेकिन ट्रम्प मोदी के दोस्त थे, आई लव इंडिया बोलते थे, फिर यह क्या हुआ? इसे भारत व अमरीका के बीच शीत युद्ध की औपचारिक शुरुआत कहा जा सकता है।
जड़ तक पहुंचने के लिये वर्ष 1972 में जाना होगा। अमरीका में जनसंख्या बहुत कम थी और वह उद्योग जगत की पहली पसंद थी। अमरीका में मज़दूर कम थे और जो थे, वे महंगे थे। भारत से संबंध बिगड़ ही चुके थे? ऐसे में अमरीका ने चीन से संबंध ठीक किये और अमरीकी कम्पनियों ने अपने प्रोडक्शन यूनिट चीन में शिफ्ट कर लिए, जहां मज़दूरी सस्ती थी। इससे अमरीकी कम्पनियों ने अरबों का लाभ कमाया।
इन कम्पनियों की वजह से चीन की संस्कृति बदल गई। चीन के लोग भी थोड़े स्किल्ड हो गए और आज हम चीन को देख ही रहे हैं। हालांकि अमरीका को आज उस बात का अफसोस भी है। अब अमरीका मे आबादी बढ़ गयी है। बेरोज़गारी बढ़ रही है। अमरीका चाहता है कि एप्पल जैसी सभी बड़ी कम्पनियां चीन से अमरीका आ जाएं मगर ये कम्पनियां जानती हैं कि मज़दूरी भारत में सस्ती है।
अमरीका के लिये उसकी कम्पनियां सिरदर्द बन चुकी है। फायदे के आगे देश को नहीं देख रही। अमरीका को यह भी डर है कि चीन वाली गलती भारत के संदर्भ में भी न हो जाए। आशंका व्यक्त की जा रही है कि कहीं भारत भी अमरीका के लिए चुनौती बन जाए।
इसलिए यह बात जान लेनी चाहिए कि अमरीका में सरकार चाहे किसी की भी आये, वह भारत के प्रति प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में नकारात्मक रवैया ही रखेगी। डोनाल्ड ट्रम्प आज भी बाइडन के मुकाबले कुछ अच्छे हैं। बाइडन के समय जो हो रहा था, वह भयभीत करने वाला था।
ट्रम्प और बाइडन में जो अंतर सामने आया है, वह बस नैतिकता का है। ट्रम्प सामने से हमला कर रहे हैं, बाइडन छिपकर कर रहे थे। राहुल गांधी का वह बयान मत भूलिए जो उन्होंने सितम्बर 2024 में अमरीका में दिया था कि ‘भारत में सिखों को पगड़ी नहीं पहनने देते।’ प्रत्येक कांग्रेसी को यह पता है कि यह सफेद झूठ है। भारत की छवि बिगाड़ने वाला यह बयान तब का है जब अमरीका और कनाडा की कूटनीतिक तलवारें भारत पर चल रही थी। हो सकता है कि अमरीका ने भारत में सत्ता पलटने के बारे में सोचा हो और प्रयास भी किए गए हों। अडानी की केन्या वाली डील रद्द करवाई गयी। हो जाती तो अप्रत्यक्ष रूप से भारत के हाथ अफ्रीका तक पहुंच जाते।
अडानी को इज़रायल के बंदरगाह की एक्सेस रोकने की कोशिश भी हुई थी। हिंडनबर्ग का ड्रामा किसे नहीं पता है। कोरोना वैक्सीन पर भारतीय कम्पनियों के खिलाफ  क्या क्या साज़िशे नहीं हुई। अमरीका और राहुल गांधी का एक साथ भारतीय उद्योगपतियों के प्रति हमलावर होना बहुत बड़ा संयोग था जो किसी ने शायद देखा ही नहीं। राहुल गांधी के माध्यम से भारत में जातियों में गृह-युद्ध की संभावनाओं को बल भी दिया गया। राहुल गांधी को तो नियंत्रित किया जा सकता है लेकिन अमरीका का भारत के प्रति रवैया पूर्व की भांति ही रहेगा। अमरीका चाहता है कि कोई दूसरा देश उसके जैसा प्रभावशाली न बने। भारत को चाहिए कि वह राजनीतिक और आर्थिक रूप में मज़बूत बने, आत्मनिर्भर बने। देश जैसे-जैसे आत्मनिर्भर बनता जाएगा, फिर चाहे ट्रम्प हो या कोई और हमें फर्क नहीं पड़ेगा। (अदिति)

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