भारत की आध्यात्मिक विरासत है जगन्नाथ रथ यात्रा
27 जून पुरी की रथ यात्रा पर विशेष
आगामी 27 जून 2025 से शुरु हो रही पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा एक विशाल धार्मिक आयोजनभर नहीं है, यह भारतीय आध्यात्मिक चेतना और सांस्कृतिक विरासत का जीवंत प्रतीक है। इसे भगवान जगन्नाथ और उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की वार्षिक यात्रा के रूप में जाना जाता है। उड़ीसा के पुरी शहर में होने वाली यह रथ यात्रा आज पूरी दुनिया में भारत की आध्यात्मिक चेतना का पर्याय है। इस रथ यात्रा में तीन देवताओं को रथ में बिठाकर श्री मंदिर यानी पुरी में जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा मंदिर (जो कि उनकी मौसी का घर है) ले जाया जाता है। यह यात्रा आध्यात्मिक रूप से आत्मा की ईश्वर के प्रति यात्रा को दर्शाती है। इस आनुष्ठानिक यात्रा में कुछ बहुत ही सांकेतिक, धार्मिक अर्थ छिपे हुए हैं। मसलन इस यात्रा का संकेत है कि ईश्वर साक्षात्कार का प्रतीक है, क्योंकि श्रीमंदिर यानी जगन्नाथ मंदिर में गैर हिंदू लोगों का प्रवेश वर्जित है, इसलिए भगवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ मंदिर से बाहर आकर अपने समस्त भक्तों को दर्शन देते हैं। यह ईश्वर के लोक में नहीं बल्कि भक्तों के लोक में आने का प्रतीक है। यह यात्रा भक्ति पर आधारित है, जिसमें जाति, वर्ग, लिंग, भाषा किसी तरह का भेद नहीं रहता। सबको भगवान के बिल्कुल समीप आने का अवसर मिलता है। भगवान जगन्नाथ ध्यान और धर्म के प्रतीक हैं, उनके बड़े भाई बलभद्र शक्ति के प्रतीक हैं और बहन सुभद्रा करुणा का पर्याय हैं। इन तीनों की एक साथ की गई यात्रा जीवन में संतुलन को दर्शाती है।
इस यात्रा के साथ कुछ पौराणिक आख्यान भी जुड़े हैं। स्कंदपुराण, ब्रह्म पुराण और पद्म पुराण में भगवान जगन्नाथ के अविर्भाव और उनकी रथ यात्रा का वर्णन मिलता है। कथा के मुताबिक जब भगवान जगन्नाथ यानी कृष्ण पृथ्वी से अपने धाम लौटे तो उनके शरीर के अवशेष विशेषकर उनकी हड्डियां जिन्हें (नील माधव) कहा गया है, समुद्र में प्रवाहित कर दिये गये। ये अवशेष एक लकड़ी के रूप में लौटे और पुरी के राजा इंद्र कुंभ को स्वप्न में आदेश मिला कि इस लकड़ी से भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियां बनायी जाएं। इन्हीं मूर्तियों को हर साल रथ में बिठाकर यात्रा करायी जाती है। गुंडिचा यात्रा इस बात की प्रतीक है कि भगवान अपने जन्म स्थान यानी गुंडिचा मंदिर जाते हैं। यह कृष्ण के मथुरा से द्वारका जाने के प्रसंग से भी जुड़ा है।
पुरी की रथ यात्रा सैकड़ों सालों से हो रही है, लेकिन हाल में सालों में इसे अगर दुनिया के सबसे चमकदार, धार्मिक और आध्यात्मिक आयोजन में बदल दिया है तो इसमें मीडिया और डिजिटल प्रसारण का योगदान है। यूं तो चैनलों की भरमार के बाद जगन्नाथ रथ यात्रा का पूरी दुनिया में लाइव प्रसारण देखा जाता है। इसके आकर्षण का एक बड़ा कारण यह भी है कि यह धार्मिक यात्रा जटिल कर्मकांडों से बिल्कुल ही दूर है या यह यात्रा महज श्रद्धा से जुड़ी है। इसलिए यह युवाओं को सहज ही आकर्षित करती है, लेकिन इस बात का भी इसमें कम योगदान नहीं है कि पिछले कुछ सालों में भारत सरकार और उड़ीसा सरकार ने इसे पर्यटन व सांस्कृतिक धरोहर के रूप में बढ़ावा दिया है। इस यात्रा का जनतांत्रिककरण भी लोकप्रियता बढ़ाता है। क्योंकि शायद ही दुनिया में कोई दूसरी ऐसी धार्मिक यात्रा होती है, जिसमें विकलांगों, रोगियों और भिखारियों तक की भागीदारी होती है। सब लोग मिलकर भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा का रथ खींचते हैं ताकि उन्हें पुण्य प्राप्त हो। ऐसी समावेशिता दुनिया में किसी अन्य धार्मिक, सांस्कृतिक आयोजन में नहीं दिखती।
अगर दुनिया के कोने-कोने में पिछले दो दशकों में इस यात्रा के लिए जबर्दस्त क्रेज देखने को मिला और इस अवसर पर हजारों भक्त दुनिया के कोने-कोने से पुरी पहुंचते हैं तो इसमें इंटरनेशनल सोसायटी फॉर कृष्णा कांशसनेस यानी इस्कान का भी जबर्दस्त योगदान है। ब्रिटेन, अमरीका, रूस, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका समेत दुनिया के सौ से ज्यादा शहरों में अब इस रथ यात्रा की परंपरा यानी रथ यात्रा फेस्टिवल शुरू किया गया है तो दुनिया के कोने-कोने में बसे प्रवासी भारतीयों को इस तरफ तो खींचते ही हैं, लाखों विदेशी लोग भी इस उल्लासपूर्ण, शक्तिमय फेस्टिवल के आकर्षण से बच नहीं पाते। प्रवासी भारतीयों ने तो इसे अपनी पहचान का हिस्सा ही बना लिया है, क्योंकि भारत इसे एक सॉफ्ट पावर के रूप में भी देखता है। रथ यात्रा, योग और आयुर्वेद ये तीन चीजें भारत की ऐसी सॉफ्ट पावर है जो किसी भी मामले में हमारी हाईटेक से कम नहीं है। इसलिए पुरी की रथ यात्रा महज धार्मिक गतिविधि नहीं, भारत के सांस्कृतिक प्रभाव की कहानी भी है।
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