‘गृह प्रवेश’
‘और अब..’ ‘अब बड़ा होकर कामयाब होते ही उसका मन बदल गया। अब तो एक बार भी उसने हमारी हालत के बारे में जानने, कुछ पूछने की ज़रुरत नहीं समझी।’ विनीता के मन की कड़वाहट कम नहीं हो रही थी।
‘अरे बाबा.. मैंने तुमसे उसके मकान के मुहुर्त में चलने के लिए पूछा है। नयी पुरानी शिकायतों का पुलिंदा खोलकर बैठने के लिए नहीं कहा है।’
चिढ़ते हुए राकेश ने विनीता की बातों पर पूर्ण विराम लगाया और घर से बाहर सामान लाने के लिए निकल गया।
मुहुर्त की सुबह रवि ने ड्राइवर से कार भेजकर बड़े भाई राकेश को परिवार सहित बुला भेजा था। मुहुर्त से पूर्व विनीता और राकेश अपनी दोनों लड़कियों टिन्नी मिन्नी के साथ पहुंच गये थे।
पांच सौ गज में शान से सिर उठाएं खड़ी ‘शांति विला’ राकेश और रवि की मां के नाम पर बनी कोठी फूलों की लड़ियों और लाइटों से जगमगा रही थी। कोठी के मनमोहक सुंगधित वातावरण में अतिथियों का आगमन प्रारम्भ हो चुका था। कुछ लोग आपसी बातचीत में मशगूल थे। तो दूसरी ओर मस्ती, मजाक भरे स्वर गूंज रहे थे। लॉबी में सबके बैठने का प्रबंध किया गया था। वहीं दोनों ओर रंग बिरंगी खूबसूरत गद्दियों से सजी कुर्सियां बिछी हुई थी। अच्छे बड़े हॉल के बीच में पण्डित जी अपनी पोथी के साथ विराजमान थे। वे हवन की वेदी बनाने की तैयारी में, समस्त हवन सामग्री के सामान की सूची का मिलान कर रहे थे।
रवि के भैया और भाभी, बिना किसी तड़क भड़क के सामान्य पहनावे में किसी साधारण से व्यक्ति के समान नज़र आ रहे थे। रवि के अनुरोध पर वे दोनों उस कोठी की बनावट देख रहे थे। वाह.. वाह.. रवि ने क्या गजब की दो मंजिला शानदार कोठी बनाई है। वे दोनों पति-पत्नी कोठी की भव्यता देखकर, कहीं पर हाथ लगाते हुए भी मन ही मन सकुचा रहे थे।
बाहर प्रवेश द्वार के पास रंग बिरंगें अनेक सुगंधित फूलों से सुशोभित अति मखमली घास से खूबसूरत लॉन था। अन्दर पोर्च में दो गाड़ी खड़ी करने की क्षमता थी।
सामने ही बहुत बड़ा लाबी हाल था। उसके आगे चलकर अति सुन्दर माड्यूलर से सजा रसोईघर अपनी शान दिखा रहा था। बड़े कमरे के एक ओर डायनिंग रूम का सुसज्जित एरिया था। जिसके चारों तरफ अनेक सुख सुविधाओं से सुसज्जित चार कमरे बने हुए थे। खूब बड़े चारों कमरों के साथ अटैच लक्जरी बाथरूम बने हुए थे। टिन्नी मिन्नी दोनों बच्चियों ने उत्सुकता वश हाथ बढ़ा कर पक्षी के मुख वाली टोंटी को जैसे ही घुमाया, तभी तेज पानी की धार पक्षी के मुख से निकलकर वाश बेसिन में गिरने लगी। ओ..ओह.. अरे ये क्या..
टिन्नी आंखें चौड़ी करते हुए आश्चर्य से पिताजी की ओर देखने लगी।
देखिए पिताजी, हमने कुछ नहीं किया। इस चिड़िया का मुंह खुला हुआ था। हमारे इसे घुमाते ही, झट से अपने आप ही झमझमा झम पानी गिरने लगा।
तब पिताजी ने मुस्कुराते हुए दोनों बच्चियों से कहा कि.. बेटा.. तुम लोगों को घर की किसी भी वस्तु को जाने बिना छूना, या छेड़ना नहीं है।
उस आलीशान कोठी में इंटीरियर डेकोरेटर ने जैसे जान डाल दी थी। जगमगाती खूबसूरती के साथ सफेद संगमरमर मारबल के फर्श, रंगीन झालरें और लाइटों से झाड़ फानूस जगमग कर रहे थे। रंगीन कांच के शीशों के सामने आंखों की चमक फीकी पड़ रही थी।
आइये जजमान! पण्डित जी ने आवाज लगाते हुए कहा कि-हवन की वेदी तैयार है। सारी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं।’ अच्छा पण्डित जी, समीप आते हुए रवि ने बड़े भैया को आवाज लगाई। रवि ने मुखिया जजमान की गद्दी की ओर इशारा करते हुए भैया से कहा कि-
‘आइये भैया, आप यहां बैठिए!’
राकेश ने प्यार से रवि के सिर पर हाथ रखते हुए कहा-
‘मैं.. मैं.. यहां कैसे?’
‘यहां पर तो तुम बैठो रवि बेटा!’
नहीं भैया, रवि ने मुस्कुराते हुए भैया को गद्दी पर बिठाते हुए कहा कि-
‘भैया,! इस घर के मुखिया तो आप हैं। इस गद्दी पर आपका अधिकार है। भैया...बड़ा भाई पिता के समान होता है। मेरे तो पिता और बड़े भाई सबकुछ आप ही हैं। आपने मुझे पढ़ा लिखा कर बहुत काबिल बनाया है। ईश्वर कृपा से, अब मैं इस लायक हो गया कि अब अपने परिवार की सेवा तन-मन से कर सकूंगा, तभी मेरे मन को शांति प्राप्त हो सकेगी। नीचे की मंजिल पर आप, और आपके स्नेहिल आशीर्वाद के साथ ऊपर की मंजिल पर हम लोग रहेंगे।’
हमारे परिवार के सब लोगों को एक साथ रखने, बसने के लिए ही मैंने इतना अथक परिश्रम किया है। और आज आपकी दुआओं के कारण सपनों का यह संसार बसाने में कामयाब हो सका हूँ।
रवि की स्नेहिल प्रेम भाव से ओत-प्रोत बातें सुन कर दोनों पति-पत्नी के हृदय अभिभूत हो उठे। भाव अन्तर की सूखी नदी में जैसे रिमझिम बरसात ने असीम शीतलता उतार दी हो। भावनाओं के ज्वार में आशंकाओं के बादल बह निकले। राकेश और विनीता की आँखों से खुशी की बरसात उमड़ने लगी। (सुमन सागर) (समाप्त)