ट्रम्प और मुनीर की दोस्ती

विगत दिवस अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा पाकिस्तान के सैन्य प्रमुख आसिम मुनीर को वाशिंगटन में अपने सरकारी आवास व्हाइट हाऊस में दोपहर के खाने पर आमंत्रित करने की व्यापक स्तर पर चर्चा हो रही है। जनरल आसिम मुनीर को पहलगाम के घटनाक्रम के बाद भारत तथा पाकिस्तान के बीच 4 दिन तक हुई मुठभेड़ के बाद फील्ड मार्शल के पद से सम्मानित किया गया था। अयूब खान के बाद आसिम मुनीर देश का दूसरा सैनिक जनरल है, जिन्हें फील्ड मार्शल का पद दिया गया हो। दोनों देशों के 4 दिन की लड़ाई के बाद पाकिस्तान ने लड़ाई खत्म करने के लिए भारत को फोन किया था, जिस का भारत का जवाब सकारात्मक रहा था, परन्तु इस दौरान अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प यह बयान देते रहे कि यह जंग उनके यत्नों से खत्म हुई है, जबकि भारत ने इसके बाद स्पष्ट रूप में यह कहा था कि लड़ाई पाकिस्तानी सैनिक जनरल द्वारा फोन करने के बाद बंद हुई है। इस संबंधी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने भी स्पष्ट रूप में इस बात की पुष्टि की थी। इसके बाद भी अमरीकी राष्ट्रपति इस का श्रेय लेने के लिए उत्सुक कैसे दिखाई देते रहे। 
अब उन्होंने एक नई राजनीतिक चाल चलते हुए जनरल मुनीर को खाने पर बुलाया। अमरीकी राष्ट्रपति की इस चली गई चाल से भारत को सचेत होने की ज़रूरत होगी। जहां तक पाकिस्तान का संबंध है, वहां हमेशा सेना का बोलबाला रहा है और लम्बी अवधि तक सैनिकों का ही शासन चलता रहा है। इस कतार में जनरल अयूब खान, ज़िया-उल-हक तथा मुशर्रफ खड़े दिखाई देते हैं, जिन्होंने जब्री पाकिस्तान की चुनी हुई सरकारों को हटा कर स्वयं गद्दी पर कब्ज़ा कर लिया था और दशकों तक उन्होंने पाकिस्तान पर शासन करके इसे बेहद कमज़ोर कर दिया था। इसलिए ही आज यह अंतर्राष्ट्रीय मंच पर कटोरा पकड़े खड़ा दिखाई दे रहा है। सही अर्थों में अपने अस्तित्व से लेकर ही पाकिस्तान अपने पांव पर खड़ा नहीं हो सका। पहले दशकों तक यह अमरीका की ओर देखता रहा और बाद में उसकी ओर से पीछा छुड़ाने के बाद यह चीन की झोली में जा पड़ा। इसके साथ ही इसने अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं से लगातार ़खैर मांगने में भी कभी हिचकिचाहट नहीं दिखाई, परन्तु इसके बावजूद आज इसकी अर्थिकता संकट में पड़ी दिखाई दे रही है।
अंतर्राष्ट्रीय मंच पर अपनी ज़रूरतों की पूर्ति के लिए इसने बड़े देशों की हाज़िरी भी भरी तथा उनकी जम कर सेवा भी की। जिस समय सोवियत संघ ने अ़फगानिस्तान में अपनी सेना भेज कर सत्ता पलटी थी तो उस समय अमरीकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने अ़फगानिस्तान से सोवियत सेना को निकालने के लिए पाकिस्तान की मदद ली थी और वहीं मुजाहिदीन तैयार करके अ़फगानिस्तान भेजे जाते थे। इसलिए रीगन ने पाकिस्तान की व्यापक स्तर पर आर्थिक सहायता भी की थी और उसे भारी हथियार भी दिए थे। इसी प्रकार अमरीकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने पाकिस्तान की सत्ता पर बैठे जनरल परवेज़ मुशर्रफ को भारी आर्थिक सहायता देकर अ़फगानिस्तान से तालिबान को निकालने के लिए अपने साथ जोड़ा था, क्योंकि उस समय अ़फगानिस्तान की तालिबान सरकार ने ओसामा-बिन-लादेन को शरण दी हुई थी, जिसने अमरीका में 11 सितम्बर, 2001 को न्यूयार्क के टावरों पर हमले किए थे। इसके साथ-साथ पाकिस्तान की सेना ने हमेशा भिन्न-भिन्न तरह के आतंकवादी इस्लामिक संगठनों को शरण दी है, जबकि वह स्वयं भी ऐसे कुछ संगठनों का शिकार होता रहा है।
अब एक बार फिर समय का चक्र चला है। वही ट्रम्प जो वर्ष 2018 में पाकिस्तान को धोखेबाज़ कहते रहे हैं और उसके बाद उनकी ओर से पाकिस्तान को दी जाती पूरी अमरीकी सहायता को भी रोक दिया गया था, आज पुन: पाकिस्तान का गुणगान करने लगे हुए हैं। चाहे आज जनरल आसिम मुनीर के पास देश की बागडोर तो नहीं है, परन्तु उन्होंने शहबाज़ शऱीफ की सरकार को एक तरह से अपनी कठपुतली ज़रूर बना लिया है। इस स्थिति को भांपते ही ट्रम्प ने प्रधानमंत्री शहबाज़ शऱीफ को व्हाइट हाऊस बुलाने के स्थान पर जनरल आसिम मुनीर को बुलाने हेतु प्राथमिकता दी। इसका बड़ा कारण यह है कि आज इज़रायल और ईरान में भीषण लड़ाई शुरू हो गई है। अमरीका अब कभी भी इसमें कूद सकता है, जिसके लिए उसे ईरान के पड़ोसी पाकिस्तान की ज़रूरत होगी।
चाहे हालात के दृष्टिगत पाकिस्तान अमरीका के लिए दम भरने लगा है परन्तु ऐसा करने से यह देखने वाली बात होगी, कि उसके अपने निकट और पड़ोसी देश ईरान के साथ रिश्ते किस तरह के रहेंगे और पाकिस्तान के अपने भविष्य पर इसका कैसा प्रभाव पड़ेगा। महाशक्तियों के ऐसे चक्करों में फंस कर पहले ही लगभग बर्बाद हो चुका यह देश अपने लोगों का भविष्य किस तरह संवार सकेगा?

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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