जी-7 शिखर सम्मेलन में भारत की नसीहत के वैश्विक मायने
जी-7 शिखर सम्मेलन के दूसरे दिन ग्लोबल साउथ के हिमायती भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आतंकवाद, व्यापार और विकास जैसे अहम वैश्विक मुद्दों पर दुनिया के प्रमुख नेताओं के साथ बातचीत के दौरान जो नसीहत दी, उसके वैश्विक मायने खास है और उन्हें समझने-समझाने की भी ज़रूरत है ताकि भारत के मतदाताओं में अपने अंतर्राष्ट्रीय हितों के प्रति भी जागरूकता पनपे और बढ़े।
बता दें कि कनाडा के कनानास्किस में आयोजित जी-7 आउटरीच सत्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने आतंकवाद के खिलाफ भारत की सख्त नीति को दोहराया और इस वैश्विक खतरे के खिलाफ एकजुट होकर निर्णायक कार्रवाई की मांग की। उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा कि ‘आतंक समर्थक देशों को इसकी कीमत चुकानी होगी’
उनका इशारा अमेरिका, कनाडा, जापान, इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी, इटली, यूरोपीय संघ के उन देशों की तरफ था जो अमरीकी अगुवाई में लोकतंत्र की बात तो करते हैं, लेकिन आतंकवादी समर्थक देशों को भी वित्तीय मदद देते व अंतरर्राष्ट्रीय संस्थाओं से दिलवाते हैं। यही वजह है कि प्रधानमंत्री मोदी ने बिना लाग लपेट के दो टूक शब्दों में कहा कि ‘वैश्विक शांति और समृद्धि के लिए हमारी सोच और नीति स्पष्ट होनी चाहिए। यदि कोई देश आतंकवाद का समर्थन करता है तो उसे इसकी कीमत चुकानी होगी।’ उन्होंने यहां तक कहा कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की कार्रवाई में दोहरा मापदंड नहीं होना चाहिए। ऐसा कहकर उन्होंने संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की पक्षपाती भूमिका पर भी सवाल खड़े दिए। प्रधानमंत्री मोदी ने स्पष्ट रूप से कहा किए ‘एक ओर हम अपनी पसंद के अनुसार विभिन्न प्रकार के प्रतिबंध जल्दी से लगा देते हैं, वहीं दूसरी ओर जो देश खुलेआम आतंकवाद का समर्थन करते हैं, उन्हें पुरस्कृत किया जाता है। यह दोहरी नीति बंद होनी चाहिए।’ समझा जाता है कि पंधानमंत्री मोदी का इशारा पाकिस्तान की तरफ था जिसे अमरीका-चीन दोनों का सहयोग व समर्थन हासिल है। यह भारत के लिए चिंता की बात है, क्योंकि वह भारत में आतंकवाद को बढ़ावा देता है। भारत को टुकड़े करने के स्वप्न देखता है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जायसवाल ने एक्स पर जानकारी देते हुए कहा कि ‘प्रधानमंत्री ने आतंकवाद के खिलाफ भारत के रुख को दोहराया और पहलगाम में हुए जघन्य आतंकी हमले की निंदा करने के लिए नेताओं का आभार जताया। उन्होंने आतंकवाद को बढ़ावा देने और समर्थन देने वालों के खिलाफ सख्त वैश्विक कार्रवाई की आवश्यकता पर जोर दिया।’ साथ ही पीएम मोदी ने जी-7 मंच से ग्लोबल साउथ के मुद्दे भी उठाए।
गौरतलब है कि 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 26 लोगों की जान चली गई थी। इसके जवाब में भारत ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को अंजाम दिया, जिसमें पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) में मौजूद आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया गया। प्रधानमंत्री ने जी-7 नेताओं के साथ अपनी बातचीत को उत्पादक बताया और कहा कि चर्चा वैश्विक चुनौतियों और बेहतर भविष्य की आशाओं पर केंद्रित रही।
प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन के दौरान ‘ग्लोबल साउथ’ की चिंताओं और प्राथमिकताओं पर ध्यान दिए जाने का भी आह्वान किया। उन्होंने कहा कि भारत ग्लोबल साउथ की आवाज़ को वैश्विक मंच पर पहुंचाना अपनी ज़िम्मेदारी समझता है। ग्लोबल साउथ शब्द का इस्तेमाल आम तौर पर आर्थिक रूप से कम विकसित देशों के संदर्भ में किया जाता है। उल्लेखनीय है कि ‘ग्रुप ऑफ सेवन’ (जी-7) दुनिया की सात उन्नत अर्थव्यवस्थाओं— फ्रांस, अमरीका, ब्रिटेन, जर्मनी, जापान, इटली और कनाडा तथा यूरोपीय संघ का एक अनौपचारिक समूह है। इसके सदस्य वैश्विक आर्थिक और भू-राजनीतिक मुद्दों पर चर्चा करने के लिए हर साल जी-7 शिखर सम्मेलन में मिलते हैं हालांकि हैरत की बात तो यह है कि इसमें दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन, चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भारत और दूसरी सैन्य महाशक्ति रूस को जगह नहीं दी गई है।
कोड़ में खाज यह कि इसमें रूस को पुन: शामिल किए जाने, चीन को भी लाने की ज़रूरत अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने समझी, लेकिन भारत के विषय में चर्चा तक नहीं की। इससे उनकी पक्षपाती और भितरघाती मनोदशा का पता चलता है। ऐसा इसलिए कि भारत ने पिछले 11 वर्षों में आशातीत उन्नति की और रूस का भरोसेमंद वैश्विक भागीदार बना रहा। चूंकि भारत अमरीकी इशारे पर चीन से नहीं उलझा, इसलिए वह अब अमरीका के किसी काम का नहीं है। अंतरर्राष्ट्रीय कूटनीतिज्ञ बताते हैं कि भारत को देखते हुए इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी, इटली जैसे यूरोपीय संघ के देश भी अब अमरीका को ज्यादा भाव नहीं देते। इज़रायल व जापान भी इसी राह पर है क्योंकि सबको भारत या चीन के रूप में एक मज़बूत विकल्प मिल रहा है। यही वजह है कि अमरीका अब पाकिस्तान के कंधे पर बंदूक रख कर निशाना लगा रहा है।
वहीं, भारत के प्रधानमंत्री मोदी भी अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प की परिवर्तित मानसिकता को समझ चुके हैं। इधर, मोदी के कनाडा पहुंचते ही ट्रम्प के वहां से निकल जाने के भी मायने तलाशे जा रहे हैं। यही वजह है कि शिखर सम्मेलन के इतर प्रधानमंत्री मोदी ने कई द्विपक्षीय मुलाकातें भी कीं। साथ ही अमरीका के आग्रह पर फोन पर ट्रम्प से बातचीत करते हुए भारत के मामले में मध्यस्थता करने के उनके सपने को ज़ोर का झटका धीरे से दिया। वहीं, अचानक अमेरिका पहुंचने से इन्कार करते हुए उन्हें ही भारत के लिए आमंत्रित कर दिया, वो भी उसी क्वाड की बैठक के लिए जिसमें भारत की अरूचि जगजाहिर है। इसके अलावा उन्होंने कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीयर स्टार्मर, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों, दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति ली जे.म्युंग, इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी और ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी एल्बानीज के साथ मुलाकात की। इन बैठकों में व्यापारिक सहयोग, निवेश बढ़ाने और वैश्विक आर्थिक साझेदारी मजबूत करने पर चर्चा हुई।
खास बात यह है कि भारत और कनाडा के बीच कुछ समय से चले आ रहे राजनयिक तनाव को समाप्त करने की दिशा में भी एक सकारात्मक पहल हुई। दोनों देशों ने नए उच्चायुक्तों की नियुक्ति पर सहमति जताई, जिससे वीज़ा, वाणिज्य और अन्य सेवाएं सामान्य हो सकेंगी। इसे जी-7 सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी की भागीदारी भारत की वैश्विक भूमिका को और मजबूत करने की दिशा में एक अहम कदम के रूप में देखी जा रही है, जहां भारत ने आतंकवाद के खिलाफ सख्त रुख और विकासशील देशों की आवाज़ को बुलंद किया। ज़ाहिर है कि जी-7 शिखर सम्मेलन कनाडा में भारत की नसीहत के वैश्विक मायने स्पष्ट हैं जिससे अमरीका व यूरोपीय देशों ने सबक नहीं ली तो वैश्विक मुस्लिम चक्रव्यूह में फंसने से उन्हें कोई नहीं रोक पाएगा। (अदिति)