बेवकूफ नहीं होते शुतुरमुर्ग

दुनिया का सबसे बड़े आकार और तेज़ रफ्तार से दौड़ने वाले पक्षी शुतुरमुर्ग के बारे में प्रचलित यह धारणा निराधार है कि शिकारी को सामने देखकर बेवकूफ शुतुरमुर्ग रेत में गर्दन छिपा लेता है बल्कि शुतुरमुर्ग तो एक समझदार पक्षी है। यह मिथक शायद शुतुरमुर्ग के भारी-भरकम शरीर के कारण बना, जिसका अर्थ यह है कि शुतुरमुर्ग पक्षी जगत का इतना विशाल प्राणी है कि उसका छिपना असंभव है। शुतुरमुर्ग की ऊंचाई आठ से दस फीट तथा वजन डेढ़ सौ कि.ग्रा. तक हो सकता है। यही प्रमुख कारण है कि यह पक्षी उ़ड़ नहीं सकता लेकिन यह पचास किमी प्रति घंटा की रफ्तार से दौड़ अवश्य सकता हैं। यह एक्टिव पक्षी दस घंटे लगाकर बिना थके चल सकता है। संसार के सबसे बड़े पक्षी शुतुरमुर्ग का अंडा भी सबसे बड़ा होता है। यह डेढ़-दो किग्रा तक हो सकता है। प्राणी शास्त्रियों एवं पक्षी विशेषज्ञों की एक रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण अफ्रीका में शुतुरमुर्ग को भेड़ों के रेवड़ की निगरानी के लिए एक गडरिए की भांति प्रशिक्षित किया जाता है। जब भेंड़ें चरने जाती हैं तो शुतुरमुर्ग उन्हें कंट्रोल करने के लिए साथ चलते हैं।  घर वापसी तक वे रेवड़ का पूरा ख्याल रखते हैं। इस दरमियान कोई भेड़ अनुशासन भंग करती हैं तो वे उसे चोंच मार कर इसका दंड भी तुरंत देते हैं। दिलचस्प बात यह भी है कि बहुधा एक नर शुतुरमुर्ग के साथ दो-तीन मादा शुतुरमुर्ग रहती हैं। नर शुतुरमुर्ग मैदान में मिट्टी खोदकर खड्डानुमा घोंसला बनाता है जिसमें मादा शुतुरमुर्ग अंडे देती हैं। शुतुरमुर्ग की पीठ काले व हल्के ग्रे स्लेटी रंग की होती है। वहीं गर्दन व पैरो का हल्का भूरा, मिट्टी, रेत के समान रंग होता है।
शुतुरमुर्ग जहां पहले यूरोप, एशिया, अफ्रीका में पाया जाता था, अब अफ्रीका में कालाहारी मरूस्थल तक ही सिमट कर रह गया है। विभिन्न वनस्पतियों को खाने वाला यह सर्वहारी पक्षी भोजन में कीड़े-मकौड़े, छिपकलियां, चिड़ियां, चूहे आदि भी आवश्यकतानुसार खा लेता है। अपने भोजन को पचाने के लिए शुतुरमुर्ग अन्य पक्षियों की भांति कंकड़ भी नियमित रूप से निगल लेता है। दरअसल, पक्षी विशेषज्ञों की मानें तो पक्षी भोजन को बिना चबाए ही निगल जाते हैं क्योंकि उनके दांत नहीं होते। कंकड़ वे इसलिए निगलते हैं कि ये आमाशय में भोजन को पचाने के एंजाइम(रस) बनाने का कार्य करते हैं। 
कंकड़ के अभाव में कभी-कभी ये दूसरी कठोर व सख्त चीजों को भी निगल जाते हैं जो इन्हें हानि पहुंचा सकते हैं और कभी-कभी मौत का कारण भी बन जाते हैं। शुतुरमुर्ग की औसत आयु तीस से चालीस साल तक होती है। पिछले 10-12 सालों में इस पक्षी की संख्या में तेजी से गिरावट आई है जो पर्यावरण एवं पारिस्थितिक तंत्र के लिए अच्छा संकेत नहीं है। (उर्वशी)

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