भारत को चाहिए विश्वसनीय एवं पारदर्शी चुनाव प्रक्रिया

स्वतंत्रता के बाद से ऐसा कभी नहीं हुआ जब भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) पर लोगों का इतना अविश्वास रहा हो, जितना अब खुलकर व्यक्त किया जा रहा है। चुनाव आयोग को चुनावी लड़ाई में एक तटस्थ अम्पायर के रूप में अपना कर्त्तव्य निभाना चाहिए, लेकिन दुर्भाग्य से कई अवसरों पर ऐसा लगा कि यह प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) का ही एक विस्तार है। इस संवैधानिक निकाय की स्वायत्तता को कानूनी साधनों के ज़रिए सीमित कर दिया गया है। चुनावों के दौरान यह सरकार का पक्ष लेता हुआ देखा गया है। 
हरियाणा में चुनाव 5 अक्तूबर, 2024 को और महाराष्ट्र में चुनाव नवम्बर 2024 में हुए। फिर भी लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी को अब 7-8 महीने की देरी के बाद चुनावी डेटा सौंपने के लिए ‘सटीक तारीख’ मांगनी पड़ रही है। उन्होंने पूछा, ‘मतदाता सूची सौंपने के लिए चुनाव आयोग द्वारा उठाया गया पहला अच्छा कदम है। क्या चुनाव आयोग कृपया सटीक तारीख की घोषणा कर सकता है, जिस तक यह डेटा डिजिटल, मशीन-पठनीय प्रारूप में सौंप दिया जायेगा?’ 
सरकार किस तरह से चुनाव प्रक्रिया में हस्तक्षेप कर रही है और भारतीय चुनाव आयोग पीएमओ की इच्छा के आगे झुक रहा है, यह दिसम्बर 2024 में स्पष्ट हो गया था, जब केंद्रीय कानून मंत्रालय ने 1961 के नियमों के नियम 93 (2) में संशोधन किया था, ताकि सार्वजनिक निरीक्षण के लिए खुले दस्तावेज़ों के प्रकार को प्रतिबंधित किया जा सके। यह मामला भारत के सर्वोच्च न्यायालय में भी गया, जिसमें याचिकाकर्ताओं ने कहा कि चुनाव संचालन (द्वितीय संशोधन) नियम, 2024 नागरिकों की चुनाव संबंधी महत्वपूर्ण दस्तावेज़ों तक पहुंच को प्रतिबंधित करके संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 का उल्लंघन करता है। सरकार ने कहा कि उसे मतदाताओं की गोपनीयता की रक्षा करने की आवश्यकता है। यह स्पष्ट था कि चुनावी डेटा प्रदान न करने के लिए सरकार एक इच्छुक पक्ष थी, और चुनाव आयोग भी डेटा नहीं दे रहा है। सवाल यह है कि डेटा को अवरुद्ध करके चुनाव आयोग और मोदी सरकार क्या छिपाना चाहती है? फिर चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता कहां है? और जब सरकार और चुनाव आयोग दोनों द्वारा सावधानीपूर्वक अंधकार बनाये रखा जा रहा है, तो कोई भी व्यक्ति चुनाव प्रक्रिया पर कैसे विश्वास कर सकता है?
तीन सदस्यीय चुनाव आयोग इतना कमज़ोर क्यों हो गया है कि उसे प्रधानमंत्री के आदेश का पालन करना पड़े? ऐसा इसलिए है क्योंकि मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यकाल) अधिनियम 2023 ने दो चुनाव आयुक्तों को संवैधानिक रूप से असुरक्षित बना दिया है। केवल मुख्य चुनाव आयुक्त को ही हटाये जाने के विरुद्ध संवैधानिक रूप से संरक्षण प्राप्त है। उनका कार्यकाल मुख्य चुनाव आयुक्त की इच्छा पर निर्भर करेगा। इसके अलावा नये कानून के तहत उन्हें नियुक्त करने का अधिकार अंतत: प्रधानमंत्री के पास है, जिसे नियुक्ति समिति से भारत के मुख्य न्यायाधीश को हटाकर सुरक्षित किया गया, जिससे चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में निष्पक्षता खत्म हो गयी। चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में कोई पारदर्शिता नहीं रह गयी है। 
चुनाव आयोग को व्यवस्थित रूप से कमज़ोर किया गया है। इसे 2019 के चुनावों के दौरान हुई घटना में देखा जा सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के खिलाफ चुनाव के लिए आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन की शिकायतें थीं, जिसमें घृणा की भाषा भी शामिल थी। चुनाव आयोग के बहुमत के फैसले ने उन्हें क्लीन चीट दे दी थी, लेकिन एक चुनाव आयुक्त ने असहमति नोट दिया था। चुनाव आयोग पर राहुल गांधी के आरोपों को सरसरी तौर पर खारिज नहीं किया जा सकता। उन्होंने आरोप लगाया है कि नवम्बर 2024 में महाराष्ट्र चुनाव में धांधली हुई थी। उन्होंने पांच विशिष्ट कदम बताये जिनके माध्यम से चुनाव में धांधली हुई।
राहुल गांधी ने कहा, ‘पहला कदम, चुनाव आयोग की नियुक्ति के लिए पैनल में हेराफेरी करना। दूसरा कदम, फर्जी मतदाताओं को मतदाता सूची में शामिल करना। तीसरा कदम, मतदान प्रतिशत बढ़ाना। चौथा कदम, फर्जी मतदान को ठीक उसी जगह लक्षित करना जहां भाजपा को जीतना है। पांचवां कदम, सुबूत छिपाना। यह देखना मुश्किल नहीं है कि महाराष्ट्र में भाजपा इतनी हताश क्यों थी, लेकिन हेराफेरी मैच फिक्सिंग की तरह है। जो पक्ष धोखा देता है, वह खेल जीत सकता है, लेकिन (यह) संस्थाओं को नुकसान पहुंचायेगा और नतीजों में जनता का विश्वास खत्म कर देगा। सभी चिंतित भारतीयों को सबूत देखना चाहिए। खुद ही फैसला करें। जवाब मांगें।
अब कई अन्य विपक्षी नेताओं ने भी जवाब मांगे हैं। लोगों को सीधे चुनाव आयोग से जवाब चाहिए, लेकिन दुर्भाग्य से कथित तौर पर लाभार्थी पार्टी भाजपा और उनके नेता चुनाव आयोग की ओर से जवाब दे रहे हैं। फिर चुनाव आयोग की जवाबदेही कहां है? भारत को निश्चित रूप से संदेह से परे चुनाव आयोग की ज़रूरत है, जिसे उसे अब बहाल करना चाहिए। (संवाद)

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