क्या नरसंहार करने वाले तय करेंगे कि परमाणु हथियार कौन रखे ?

इज़रायल-ईरान के बीच चल रहे युद्ध ने पूरे विश्व को स्तब्ध व चिंतित कर दिया है। इज़रायल गत कई वर्षों से ईरान को युद्ध में खींचने की पूरी कोशिश कर रहा था, परन्तु ईरान सीधे युद्ध में कूदने से बचता आ रहा था। परन्तु गत 13 जून को इज़रायल ने ईरान पर एक बड़ा हवाई हमला कर दिया। इस हमले के कुछ ही समय बाद इज़रायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने अपने एक टीवी प्रसारण में इस हमले को उचित ठहराते हुये ईरान पर परमाणु बम बनाने का प्रयास करने का आरोप लगाया और अपनी चिंता दोहराई कि ईरान का परमाणु बम इज़रायल को नष्ट कर सकता है। इज़रायल ने ईरान के कई परमाणु वैज्ञानिक और शीर्ष सेना कमांडर भी मार दिये।  इज़रायल ने 13 जून को ईरान पर हमला उस समय किया जबकि दो दिन बाद ही यानी 15 जून को ईरान और अमरीका के मध्य परमाणु समझौता होने की तारीख तय थी और यह समझौता किसी निष्कर्ष पर पहुंचने की उम्मीद भी की जा रही थी, परन्तु इज़रायल ने समझौते के पहले ही हमला कर ईरान को बड़ा धोखा दे दिया। इज़रायली हमले के बाद अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भी यह कहकर सबको चौंका दिया कि उन्हें इस हमले की पहले से जानकारी थी और इस हमले में कई ईरानी कट्टरपंथी (परमाणु वार्ताकार) मारे गए हैं। उन्होंने ईरान को चेतावनी दी कि अगर वह समझौता नहीं करता तो और बड़े हमले झेलने पड़ सकते हैं। यही नहीं बल्कि ट्रम्प ने इज़रायल की पीठ थपथपाते हुये उसके हमलों को शानदार बताया और कहा कि ईरान को परमाणु हथियार हासिल करने की इच्छा छोड़नी होगी। साथ ही ट्रम्प ने अमरीका को इज़रायल का सबसे बड़ा सहयोगी भी बताया। साफ है ईरान पर इज़रायल द्वारा धोखे से किये गये इस हमले का अमरीका भी बराबर का साझीदार है। अमरीका ने स्वयं भी युद्ध में शामिल होकर ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला किया है।
अब ज़रा 2003 के उस दौर को भी याद कीजिये जब इराक में सद्दाम हुसैन के शासनकाल में तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू. बुश प्रशासन ने यह दावा किया था कि सद्दाम हुसैन के पास रासायनिक, जैविक और संभवत: परमाणु हथियार भी हैं जो वैश्कि सुरक्षा के लिए खतरा हो सकते हैं। यह दावा खुफिया जानकारी पर आधारित बताया गया था। इसी खुफिया जानकारी को बहाना बनाकर अमरीका ने ‘ऑपरेशन इराकी फ्रीडम’ के नाम से इराक पर बड़ी सैन्य कार्रवाई की और उसे तबाह कर दिया। यहां तक कि स्थानीय अदालत का गठन कर सद्दाम हुसैन को फांसी पर चढ़ा दिया। इराक में सत्ता परिवर्तन के बाद वहां रासायनिक, जैविक और सामूहिक विनाश के हथियार होने की जानकारी गलत साबित हुई। वहां ऐसे हथियार होने के कोई सबूत नहीं मिले। जगज़ाहिर है कि अमरीका द्वारा इराक पर सैन्य कार्रवाई वहां के तेल संसाधनों पर नियंत्रण और मध्य पूर्व में अमरीकी सामरिक प्रभाव बढ़ाने की इच्छा के तहत की गयी। इराक की तबाही व सत्ता परिवर्तन के बाद अमरीका ने यह तर्क भी दिया था कि सद्दाम हुसैन का तानाशाही शासन इराकी जनता और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए हानिकारक था।
बहरहाल आज वही अमरीका जिसने केवल इराक को ही तबाह करने की कोशिश नहीं की बल्कि वह जापान पर  6 और 9 अगस्त, 1945 को परमाणु बम गिराने का भी गुनहगार है। वह अमरीका जो कोरिया, ग्वाटेमाला, इंडोनेशिया, क्यूबा, कांगो, लाओस, वियतनाम, कंबोडिया, ग्रेनेडा, लेबनान, सीरिया, लीबिया, अल साल्वाडोर, निकारागुआ, ईरान (1987) पनामा, इराक, कुवैत, सोमालिया, बोस्निया, सूडान, अफगानिस्तान, योगोस्लाविया जैसे देशों पर हमले करने व वहां की सत्ता को अस्थिर करने का ज़िम्मेदार हो, क्या वह अमरीका तय करेगा कि किस देश को परमाणु हथियार रखना चाहिए और किसे नहीं? या फिर फिलिस्तीन की ज़मीन पर अमरीका, ब्रिटेन की शह पर कब्ज़ा जमाये बैठा इज़रायल जिस पर गाज़ा में लगभग 82,000 लोगों को मारने व लगभग 20 लाख लोगों को बेघर कर क्षेत्र में मानवीय संकट खड़ा का आरोप है, वह तय करेगा कि परमाणु हथियार किसे रखना चाहिए और किसे नहीं? जो देश स्वयं पूरे विश्व में अस्थिरता फैलाने, क्षेत्रीय संघर्ष भड़काने, हथियारों का व्यवसाय तथा तेल जैसी सम्पदा पर गिद्ध दृष्टि रखते हों, पड़ोसी देशों में फूट डलवाकर युद्ध भड़काना ही जिनका वयवसाय बन चुका हो, वह देश कैसे निर्धारित कर सकते हैं कि परमाणु हथियार किसे रखने चाहिए? 
निश्चित रूप से युद्ध से बुरी कोई स्थिति नहीं होती। हमेशा इस त्रासदी का शिकार निर्दोष लोग होते आये हैं। युद्ध से मानवता आहात होती है। सही मायने में तो पूरे विश्व को ही परमाणु हथियार मुक्त होना चाहिये, परन्तु अमरीका इज़रायल जैसे देशों द्वारा जब अपनी ताकत का दुरुपयोग दशकों से किया जाता रहा हो और यह सिलसिला लगातार बढ़ता जा रहा हो, ऐसे में इन्हें ‘वाक ओवर’ देने के बजाये इनके सामने अपने स्वाभिमान के लिये संकल्पबद्ध होकर खड़े होना कौन-सा जुर्म है? अमरीका व इज़रायल के सामने ईरान के सिर उठाकर खड़े होने जैसे फौलादी इरादों की आज दुनिया सराहना कर रही है। 

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