अमरीका और ट्रम्प के लिए चापलूसी की इन्तिहा पर उतरा पाकिस्तान !

जब इज़रायल ने आशंका को सही साबित करते हुए ईरान पर गुजरे 13 जून 2025 को हमला कर दिया, तो ईरान के विदेश मंत्री ने दावा किया था कि यदि इज़रायल ईरान पर परमाणु हमला करता है या उसके परमाणु ठिकानों को नुकसान पहुंचाता है, तो पाकिस्तान इज़रायल पर परमाणु हमला कर देगा। हालांकि इस बात की पुष्टि पाकिस्तान ने नहीं की थी, जिसका दावा ईरान के विदेश मंत्री ने सार्वजनिक रूप से किया था लेकिन देखने वाली बात यह है कि पाकिस्तान ने ईरानी विदेश मंत्री के इस दावे का खंडन भी नहीं किया। इससे लग रहा था कि ईरान पर गहरा संकट आने पर पाकिस्तान भाईचारा दिखाते हुए, उसके साथ खड़ा होगा। यह स्वाभाविक भी लग रहा था, क्योंकि पाकिस्तान न केवल ईरान के साथ 900 किलोमीटर की सरहद साझा करता है बल्कि पाकिस्तान में भी कुल आबादी के 20 प्रतिशत शिया हैं, जो ईरान का समर्थन करते हैं।
लेकिन चापलूसी और दोगलेपन में किस हद तक पाकिस्तान जा सकता है, इसका नज़ारा तब देखने को मिला, जब अमरीका ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लगभग नेस्तनाबूद करते हुए, हज़ारों टन गोला-बारूद उसके तीन परमाणु ठिकानों पर झोंक दिया और एक देश को लगभग तहस-नहस करने के इरादे से की गई इस कार्रवाई के बाद अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप ने पूरी दुनिया के सामने शेखी बघारते हुए यह कहा कि ईरान को इतनी गहरी मार केवल अमरीका ही दे सकता था। ट्रंप ने यह भी कहा कि हम ईरान को तहस-नहस कर देंगे, अगर वह सरेंडर नहीं करता। यह किसी स्वतंत्र सम्प्रभु देश का जितना गहरा अपमान किया जा सकता है, उससे भी कहीं गहरा था, जिसके एवज में जाहिर है ईरान बिलबिला रहा है और उसकी संसद ने उसके तथाकथित दावे को सिद्ध कर दिखाने के लिए होर्मूज की खाड़ी को बंद करने के लिए बिल भी पास कर दिया है। 
तथापि पीछे हटने का एक रास्ता भी इस रूप में रखा है कि यदि ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई न चाहें तो खाड़ी को बंद करने के इस फैसले को उलट भी सकते हैं यानी ईरान अगले 24 से 48 घंटों तक वेट एंड वॉच की पॉलिसी अपनायेगा और देखेगा कि क्या वास्तव में उसके साथ कोई देश खड़ा भी होता है या सब लोग महज एक्स हैंडल पर अमरीका और इज़रायल की आक्रामकता को लेकर औपचारिक विरोध जताकर ही छुट्टी पा लेंगे? एक तरह से ईरान अपनी किसी भी प्रतिक्रिया के लिए अपनी लाचार स्थितियों और इस्लामिक यूनिटी की झूठमूठ की दुहाई देने वाले मुस्लिम देशों के उसके साथ खड़े होने या न होने के फैसले का इंतजार करेगा। लगता नहीं है कि कोई भी मुस्लिम देश ईरान का इस संकट के समय साथ देगा। सब अमरीका और इज़रायल को लेकर शाब्दिक विरोध करके ही अपनी प्रतिक्रिया जता देंगे मगर पाकिस्तान ने तो हद ही कर दी। जिस समय डोनल्ड ट्रंप ईरान को मटियामेट करने के लिए उस पर बड़ी से बड़ी और भयानक से भयानक सैन्य कार्यवाई करने की योजना बना रहे थे और जाहिर है यह बात सबसे ज्यादा पाकिस्तान को ही पता थी, क्योंकि ट्रंप, पाकिस्तान के तथाकथित फील्ड मार्शल आसिम मुनीर के साथ बैठकर इस योजना की प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में राय जान रहे थे।
ठीक उसी समय पाकिस्तान बेशर्मी की सारी हदें पार करते हुए और चापलूसी की इन्तिहा दिखाते हुए डोनाल्ड ट्रंप के लिए शांति के नोबेल पुरस्कार की सिफारिश कर रहा था। पाकिस्तान की यह हरकत किसी भी सभ्य समाज को शर्मसार कर देगी। डोनाल्ड ट्रंप जब सीना चौड़ा करके घोषणा कर रहे थे कि उन्होंने ईरान की अच्छे से कमर तोड़ दी है और अगर वह अब भी नहीं माना और सरेंडर नहीं किया तो चकनाचूर कर देंगे। ठीक उसी समय पाकिस्तान की सरकार के आधिकारिक एक्स हैंडल पर डोनाल्ड ट्रंप को शांति का नोबेल पुरस्कार देने के लिए किया गया प्रशस्तिगान चमक रहा था। पाकिस्तान सरकार अपनी इस हरकत के लिए किसी विशेष पर भी ठीकरा नहीं फोड़ सकती, क्योंकि उसके नामांकन पर स्पष्ट रूप से कहा गया है कि यह पाकिस्तान की सरकार के स्तर पर की जा रही कोशिश है, जिसमें पाकिस्तान के सशस्त्रबलों के प्रमुख फील्ड मार्शल आसिम मुनीर के व्हाइट हाउस में ट्रंप के साथ उनकी हालिया मुलाकात का भी उल्लेख है। 
बहरहाल अब इस संकट पर एक नज़र डालते हैं कि क्या वाकई ईरान होर्मूज खाड़ी को बंद कर सकता है? जैसा कि वह अमरीका की किसी कार्यवाई को रोकने के लिए धमकी देता रहा है और जिसके लिए ईरानी संसद ने प्रस्ताव भी पास करके अंतिम फैसला सुप्रीम लीडर खामेनेई पर छोड़ दिया है। कहने और सुनने में तो यह सब बहुत आसान लगता है और इस समय जो लोग ईरान के प्रति थोड़ी बहुत सहानुभूति भी रखते हैं, उनका भी मानना है कि ईरान वाकई ऐसा कर देगा लेकिन जिस तरह के हालात हैं और जिस तरह से ईरान, अमरीका और इज़रायल के खतरनाक घेरे में पड़कर दुनिया से अलग थलग हो चुका है, उसके चलते लगता नहीं है कि बहुत आसानी से ईरान यह फैसला कर पायेगा। हालांकि तकनीकी रूप से ईरान इसके लिए सक्षम है। होर्मूज की खाड़ी एक बहुत संकरी जलधारा है, जो महज 33-34 किलोमीटर चौड़ी है। यह जलधारा ओमान की खाड़ी और फिर खुले समुद्र से जुड़ती है। ईरान के पास तटीय मिसाइलों और सी माईंस का अच्छा खासा भंडार है तथा छोटी-छोटी तेज रफ्तार वाली बड़ी तादाद में नावें भी हैं, जो तेल टैंकरों की आवाजाही पर बाधा खड़ी करने में पूरी तरह से सक्षम हैं।
ईरानी रिवोल्यूशनरी गार्ड पहले भी होर्मूज की खाड़ी बंद करने की धमकी अनेक बार दे चुके हैं क्योंकि यह ईरान का दबाव डालने का सबसे कारगार हथियार भी है लेकिन लगता नहीं कि ईरान इस हथियार का सहजता से इस्तेमाल करेगा, जब तक कि वह खुद आत्मघाती मन:स्थिति पर आ जाए। ईरान की अपनी अर्थव्यवस्था खुद तेल के निर्यात पर टिकी है और उसका सारा तेल इसी खाड़ी से निर्यात होता है। अगर उसने खाड़ी बंद कर दी तो उसकी अर्थव्यवस्था बुरी तरह से चौपट हो जायेगी किन्तु अमरीका तथा इज़रायल के हित में होगा। ईरान के सबसे बड़े तेल आयातक देश भारत, चीन और जापान हैं और कहीं न कहीं इन्हीं देशों में ईरान को लेकर एक सहानुभूति है। ऐसे में लगता यह है कि ईरान अस्थायी रूप से या आंशिक रूप से भले होर्मूज की खाड़ी पर बाधा डालने की कोशिश करे, स्थायी रूप से उसे बंद नहीं करेगा लेकिन अगर उसने वाकई बंद कर दिया, तो दुनिया की अर्थव्यवस्था का कचूमर निकल जायेगा। कच्चे तेल और गैस की कीमतों में 20 से 40 प्रतिशत का इजाफा होना तय है और यह इजाफा अर्थव्यवस्था के हर पहलू को झकझोर करके रख देगा। भारत पर तो इसका सबसे ज्यादा असर पड़ना इसलिए भी तय है, क्योंकि हमारी 85 प्रतिशत से ज्यादा तेल की ज़रूरतें आयात से ही पूरी होती हैं और भारत का 60 प्रतिशत से ज्यादा तेल आयात पश्चिम एशिया से ही होता है, जिसमें से 90 प्रतिशत का मार्ग होर्मूज खाड़ी से होकर गुजरता है। इसलिए अगर इस खाड़ी पर संकट आया तो भारत के आम लोगों पर महंगाई का जबर्दस्त संकट टूटेगा। 
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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