उप-चुनाव के सबक
विगत दिनों में बहुत चर्चा में रहे लुधियाना पश्चिम क्षेत्र के उप-चुनाव में आम आदमी पार्टी ने बड़ी जीत प्राप्त की है। गुजरात में भी एक सीट से आम आदमी पार्टी विजयी रही है। हम इसलिए आम आदमी पार्टी को बधाई देते हैं। जनवरी में इस पार्टी के लुधियाना पश्चिम सीट से बने विधायक श्री गुरप्रीत गोगी की हुई अचानक मौत के बाद यहां उप-चुनाव करवाया गया है। आगामी विधानसभा चुनावों को महज़ डेढ़ वर्ष का समय रह गया है, इसलिए इस उप-चुनाव को पार्टियों के लिए तराज़ू के तौर पर भी देखा जा रहा था। प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनावों को मुख्य रखते हुए आम आदमी पार्टी के अलावा कांग्रेस और भाजपा भी पर तोलते हुए नज़र आने लगे हैं? इसलिए प्रदेश में बढ़ी हुई राजनीतिक गतिविधियों को मुख्य रखते हुए आम आदमी पार्टी के लिए भी इस चुनाव को जीतना प्रतिष्ठा का सवाल बना नज़र आता था, इसलिए ही केजरीवाल सहित दिल्ली की लीडरशिप के साथ-साथ पंजाब की लीडरशिप भी पूरी तरह से मैदान में उतरी हुई थी।
लुधियाना पश्चिम की इस सीट से समय-समय कांग्रेस और भाजपा-अकाली दल गठबंधन के उम्मीदवार भी जीत प्राप्त करते रहे हैं। इस बार भी कांग्रेस मुकाबले की पार्टी बन कर यह चुनाव लड़ रही थी परन्तु इस दौरान कांग्रेस के उम्मीदवार सहित इस पार्टी के अन्य नेताओं ने जिस तरह अपनी फूट का प्रदर्शन किया है, उससे यह ज़रूर लगता था कि पार्टी की अंदरूनी खींचतान इसको कमजोर कर सकती है। भाजपा भी पंजाब में अपनी ठोस ज़मीन तलाशने में जुटी हुई है परन्तु उसके द्वारा इस चुनाव से पहले की गई अनदेखी से यह प्रभाव ज़रूर मिलता था कि शायद वह अपने कुछ कारणों के कारण पूरे ज़ोर-शोर से चुनाव मैदान में उतरना नहीं चाहती थी, परन्तु चुनाव प्रचार के दौरान उसने अपना पूरा ज़ोर लगाने का यत्न ज़रूर किया। स. सुखबीर सिंह बादल के नेतृत्व में अकाली दल (ब) ने भी इस बार यह उप-चुनाव लड़ना ज़रूरी समझा, चाहे कि पिछले समय में हुए चार उप-चुनावों में इस पार्टी ने अपने उम्मीदवार मैदान में नहीं उतारे थे, परन्तु पार्टी ने इस बार अच्छे उम्मीदवारों का चयन किया था। स. सुखबीर सिंह बादल ने स्वयं पूरी दिलचस्पी लेकर चुनाव प्रचार किया था, परन्तु इस बार भी उसे बड़ी निराशा का मुंह देखने पड़ा। मतदाताओं ने इस पार्टी के लिए अपना पूरा उत्साह नहीं दिखाया और उम्मीद से कम प्रतिशत वोट पड़े। लुधियाना पश्चिम के चुनाव परिणाम नि:संदेह प्रदेश की सभी बड़ी पार्टियों को भविष्य के लिए पुन: योजनाबंदी करने के लिए प्रेरित करते प्रतीत होते हैं।
‘आप’ की जीत ने उसकी ज़िम्मेदारी में और वृद्धि की है, क्योंकि वह इस समय भारी बहुमत से प्रदेश का प्रशासन चला रही है। कांग्रेस एक राष्ट्रीय पार्टी है, इसने भी आगामी चुनावों पर अपनी उम्मीदें लगाई हुई हैं, परन्तु इस पार्टी में पहले भी तथा अब भी अनुशासन की कमी खटकती रही है, जो भविष्य में इसके लिए घाटे का सौदा साबित हो सकती है। भाजपा अपने दम पर प्रदेश के आगामी चुनावों की तैयारी कर रही है। इसे इस मार्ग पर चलने के लिए कड़ी मेहनत करने की ज़रूरत होगी। अकाली दल (ब) इस प्रदेश पर अपना अधिकार अवश्य समझता रहा है, परन्तु प्रतीत होता है कि अब यह अधिकार उससे छिन गया है, जिसे पुन: बहाल करने के लिए इसे उन परम्पराओं पर चलने की ज़रूरत होगी, जिन्होंने कभी इस पार्टी को शक्ति प्रदान की थी तथा सम्मान भी दिया था। क्या यह पार्टी पुन: उन परम्पराओं पर चलते हुए अपना पुराना रुतबा बहाल करने में सफल हो सकेगी? फिलहाल तो इस बात पर प्रश्न चिन्ह लगा हुआ दिखाई दे रहा है।
इस समय देश के चार प्रदेशों में हुए पांच विधानसभा उप-चुनावों में दो सीटें आम आदमी पार्टी के हिस्से आई हैं। जहां तक पंजाब में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी का संबंध है, आगामी डेढ़ वर्ष का समय इस पार्टी तथा प्रदेश सरकार के लिए बेहद चुनौती भरपूर होगा, जिसके समकक्ष होकर चलने के लिए इसे नि:स्वार्थ होकर प्रदेश के लोगों के हितों के लिए कड़ी मेहनत करने की ज़रूरत होगी।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द