ईरान-इज़रायल का युद्धविराम
पश्चिम एशिया में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अस्तित्व में आए इज़रायल और कुछ अरब देशों के बीच लगातार लड़ाई जारी रही है, परन्तु इसके साथ-साथ समय-समय अरब देशों के साथ इसके समझौते भी होते रहे हैं। दशकों पहले ईरान के शाह मोहम्मद रज़ा पहलवी की सत्ता पलटने के बाद आयतुल्लाह खामेनेई के नेतृत्व में इसे इस्लामिक स्टेट बनाने की घोषणा की गई थी। आयतुल्लाह के बाद अली खामेनेई ईरान के सुप्रीम नेता बने। उनका सख्त प्रशासन आज भी जारी है। इस्लामिक स्टेट ने शुरू से ही इज़रायल के अस्तित्व को खत्म करने की नीति धारण कर रखी है। इसके लिए उसने हमास और हिज़बुल्ला जैसे आतंकी संगठनों को लगातार इज़रायल के विरुद्ध लड़ाई जारी रखने के लिए सहायता दी है। इस तरह ये दोनों देश एक-दूसरे के कट्टर दुश्मन बने रहे हैं।
ताज़ा लड़ाई गाज़ा पट्टी पर शासन कर रहे हमास संगठन की ओर से 7 अक्तूबर, 2023 को इज़रायल पर हमला करके शुरू की गई थी। हमास के बड़ी संख्या में हथियारबंद लड़ाके इज़रायल में दाखिल हुए। उन्होंने सैकड़ों लोगों को निर्ममता से मार दिया और सैकड़ों को बंधक बना कर गाज़ा पट्टी में ले गए। उसके बाद इज़रायल ने गाज़ा में हमास के साथ लड़ाई लड़ते हुए और बंधकों को छुड़ाने के लिए हवाई और ज़मीनी हमले किए, जिससे लाखों ही लोग बेघर हो गए। गाज़ा पट्टी के ज्यादातर घरों को तबाह कर दिया गया और इसकी घेराबंदी करके लाखों ही लोगों को बेहद दयनीय ज़िन्दगी जीने के लिए विवश कर दिया गया। हमास लड़ाकों से इज़रायल की इस लड़ाई में फिलिस्तीनियों की जिस तरह की तबाही हुई, वह बेहद दर्दनाक दृश्य पेश करती है। ऐसी तबाही आज भी जारी है। हिज़बुल्ला संगठन की ओर से इज़रायल पर हमले किए जाते रहे हैं। यमन में हूती लड़ाकों ने भी ईरान की शह पर लगातार इज़रायल की नाक में दम कर रखा है, परन्तु इज़रायल को कुछ यूरोपीयन देशों के साथ-साथ अमरीका द्वारा बड़ी सहायता ज़रूर मिलती रही है।
अमरीका भी ईरान के परमाणु कार्यक्रम के हमेशा विरुद्ध रहा है। इज़रायल को भी यह ़खतरा है कि यदि ईरान परमाणु हथियार बनाने में सफल होता है तो यह उसके अस्तित्व के लिए बड़ा ़खतरा सिद्ध हो सकता है। इसी कारण अमरीका ने भी लगातार ईरान पर परमाणु कार्यक्रम छोड़ने का दबाव बनाया। इस संबंध में दोनों देशों की कई बार बैठकें भी होती रही हैं। बैठकों का यह दौर अभी जारी ही था कि इज़रायल ने ईरान पर हमला करके जहां उसके दर्जनों सैन्य प्रमुखों को मार दिया, वहीं उसने दर्जन के लगभग परमाणु वैज्ञानिकों को भी निशाना बनाया। पिछले 12 दिन से दोनों देशों में भीषण हवाई लड़ाई चलती रही है, दोनों की सीमाएं एक दूसरे से बहुत दूर-दूर हैं, इसलिए यह लड़ाई लड़ाकू विमानों, मिसाइलों और ड्रोनों के साथ ही होती रही है, परन्तु इसी दौरान अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा ईरान के परमाणु ठिकानों को बी-2 बमबार विमान द्वारा निशाना बनाने से यह लड़ाई और भी तेज़ हो गई थी और इसके पूरे क्षेत्र में फैलने की सम्भावना बन गई थी। इसकी प्रतिक्रिया स्वरूप ईरान द्वारा इज़रायल पर ही नहीं अपितु अमरीका के अरब देशों में स्थित सेन्य ठिकानों पर भी हमले किए गए। इस लड़ाई ने अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर भी एक तरह से हड़कम्प मचा दिया था, परन्तु मंगलवार की सुबह डोनाल्ड ट्रम्प की ओर से दोनों देशों के साथ बातचीत करके लड़ाई खत्म करने की घोषणा कर दी गई, जिससे खाड़ी देशों को सुख की सांस मिली है। सऊदी अरब और मिस्र ने ट्रम्प द्वारा की गई इस घोषणा का स्वागत किया है। विश्व भर के अन्य ज्यादातर सभी देशों ने इस पर सन्तोष व्यक्त किया है। भारत के दोनों देशों के साथ अच्छे संबंध बने आ रहे हैं। उसकी ओर से भी लगातार लड़ाई बंद करने के अन्तर्राष्ट्रीय प्रयासों में अपना योगदान डाला जाता रहा है। उम्मीद है कि इस युद्ध-विराम की घोषणा का गाज़ा पट्टी में चल रहे अमानवीय और रक्तिम संघर्ष पर भी प्रभाव पड़ेगा। फिलहाल चल रही इस लड़ाई के खत्म होने की सम्भावना बन गई है। ईरान का साथ देते रहे रूस और चीन ने भी इसका स्वागत किया है।
हम समझते हैं कि आज संयुक्त राष्ट्र सहित विश्व के प्रभावशाली और बड़े देशों को एक मंच पर आकर प्रत्येक पक्ष से स्थिति पर विचार करके, पश्चिम एशिया के इस क्षेत्र में स्थायी शांति के लिए उचित हल निकालने की ज़रूरत है, ताकि दशकों से चल रहे इस संघर्ष को पूरी तरह रोका जा सके।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द