बाढ़ पीड़ितों की सहायता की ज़रूरत

सृष्टि की परिधि में मॉनसून एक ऐसी प्रक्रिया है जिसकी जीवन-गति को बनाये रखने के लिए बेहद आवश्यकता होती है, किन्तु कई बार मॉनसून की वर्षा धरती पर भारी विनाश भी ढाती है। इस बार भी मॉनसून इतना जम कर बरसा है कि मनुष्य त्राहिमाम् करने को विवश हो गया है। मौजूदा मॉनसून के दौरान जहां पंजाब में भारी वर्षा के कारण उपजी बाढ़ ने खेतों में खड़ी फसलों और सम्पत्ति को भारी नुक्सान पहुंचाया है, वहीं हिमाचल, उत्तराखंड जम्मू-कश्मीर के पहाड़ों पर भारी वर्षा होने अथवा बादल फटने की घटनाओं ने सैंकड़ों लोगों की जान ली है। पहाड़ों पर बादल फटने की घटनाएं प्रत्येक वर्ष अवश्यमेव हुआ करती हैं। इनसे पहाड़ दरकते भी हैं, और नदी-नालों में भीषण बाढ़ें भी उपजती हैं। हिमाचल और जम्मू-कश्मीर की नदियों में बाढ़ उफनती है तो इससे भी पंजाब में विनाश के चिन्ह उभरने लगते हैं।  इस बार भी पहाड़ों पर बादल फटने और बाढ़ें उपजने की घटनाएं बड़े स्तर पर हुई हैं। पहले हिमाचल और फिर जम्मू के किश्तवाड़ में बादल फटे तो ऐसे लगा जैसे आकाश से साक्षात् प्रलय उतर आई हो। गांव के गांव पत्थर, पानी और पहाड़ के मलबे में बह गये, अथवा दब गये। बीसियों लोग मारे गये। सैंकड़ों पशु भी मारे गए अथवा मलबे में दब गये। बीसियों लोग अभी भी लापताओं की सूचि में दर्ज हैं। 
पहाड़ की इस प्रलय के चिन्ह भी पंजाब के कई ज़िलों में बेहद भयावह होकर उभरे। ब्यास, सतलुज और रावी नदियों में उपजी बाढ़ नदियों के किनारों और बांधों को तोड़ कर वीभत्स रूप में आगे बढ़ते हुए खेतों और गांवों में अपने पग-चिन्ह छोड़ गई। पंजाब के सीमांत ज़िले अमृतसर, तरनतारन, गुरदासपुर, पठानकोट और फिरोज़पुर आदि बेहद बुरी तरह से प्रभावित हुए। हज़ारों एकड़ खेतों में धान, गन्ना और मक्की की फसल खराब हो गई। पशुओं के लिए चारे वाले खेतों को भी भारी नुक्सान पहुंचा। पोंग बांध से पानी छोड़े जाने के कारण ब्यास नदी में बढ़े हुए जल-स्तर ने भी काफी नुक्सान पहुंचाया है। कपूरथला में नदी के किनारों पर बने तीन धुस्सी बांधों के टूटने से ज़िला के कई गांवों में भारी विनाश के चिन्ह दिखाई दिये। खेतों में पानी के साथ मिट्टी और गाद जमा हो जाने से जहां खड़ी फसल को भारी नुक्सान हुआ है, वहीं खेतों में मिट्टी और मलबा हटाने के लिए भी बड़े परिश्रम और बड़ी धन-राशि की ज़रूरत पड़ेगी। कहां तो यह तय था कि चालू मॉनसून मौसम में समृद्ध वर्षा होने से किसानों को धान और मक्का की भरपूर फसल हासिल होगी, किन्तु कहां यह हुआ है कि सतलुज और ब्यास में बांधों से छोड़े गए अतिरिक्त पानी ने गांवों और खेतों में बड़ी गहराई तक विनाश के चिन्ह छोड़े हैं।
यह भी एक अजीब बात हुई है कि हिमाचल प्रदेश के विभिन्न भागों में उपजी भीषण बाढ़ों से भी पंजाब के सीमांत ज़िलों खास कर गुरदासपुर, पठानकोट, अमृतसर और तरनतारन बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं।  तरनतारन के अनेक गांवों में बाढ़ के पानी से 7000 एकड़ से अधिक इलाके के खेतों में खड़ी फसल को नुक्सान पहुंचा है। कपूरथला का मण्ड क्षेत्र पूरी तरह से ब्यास के पानी में डूब गया है। गुरदासपुर और होशियारपुर को जोड़ने वाले काहनूवान में ब्यास के पानी से धनोआ पत्तन पर बने पुल के एक स्तम्भ में दरार उपजने से, पुल को ़खतरा उपजा है। जम्मू के किश्तवाड़ में उपजी प्रलय के दौरान पंजाब के लोगों द्वारा लगाये गये लंगरों को भी भारी नुक्सान पहुंचा है। जम्मू से उतरे पानी के कारण पठानकोट में एक जगह भू-स्खलन होने के कारण सड़क यातायात बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। नरोट जैमल सिंह के कई स्कूलों में पानी भरने से स्कूली बच्चों को परेशानी उठानी पड़ी है। पठानकोट में सेना और अर्ध सैनिक बलों के कई ठिकाने भी प्रभावित हुए हैं। कई जगहों पर बचाव कार्यों हेतु अर्ध-सैनिक बल जवानों की मदद भी लेनी पड़ी है। पठानकोट और होशियारपुर ज़िलों के प्रशासन ने लोगों को बांध क्षेत्र और नदी-तटों की ओर बेवजह न जाने के लिए कहा है।
 हिमाचल के अनेक ज़िलों में भारी वर्षा से 232 से अधिक सड़क मार्ग अवरुद्ध होने से पंजाब के सीमांत ज़िलों में भी सड़क और रेल यातायात प्रभावित हुआ है। इस कारण पंजाब और हिमाचल के बीच व्यापार पर भी असर पड़ा है। हिमाचल और जम्मू-कश्मीर की धार्मिक यात्राओं के प्रभावित होने से, पंजाब से गये धार्मिक जत्थे भी असर-अंदाज़ हुए हैं। कुल मिला कर पहाड़ पर बादल फटने और नदियों में उपजी बाढ़ों से पंजाब बुरी तरह से प्रभावित हुआ है।  नि:संदेह इस कारण प्रदेश की कृषि और किसान को भारी नुक्सान उठाना पड़ा है। हम समझते हैं कि केन्द्र और पंजाब की सरकारों को स्थितियों और नुक्सान का आकलन कर, सहायता हेतु किसान का हाथ थामने का यत्न करना चाहिए। इसके साथ ही, हिमाचल और जम्मू-कश्मीर में बादल फटने से प्रभावित हुए लोगों के लिए भी सरकारों और स्थानीय प्रशासन को मदद हेतु हाथ आगे बढ़ाना चाहिए।

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