मानव सभ्यता के संवेदनशील विकास का दस्तावेज है फोटोग्राफी
आज विश्व फोटोग्राफी दिवस पर विशेष
फोटोग्राफी का इतिहास केवल एक तकनीकी उपलब्धि की कहानी नहीं है बल्कि मानव सभ्यता के संवेदनशील विकास का दस्तावेज भी है। जब फ्रांस के वैज्ञानिक जोसेफ नीसपोर और लुई डागुएरे ने सन् 1839 में डॉगोरोटाइप प्रक्रिया का आविष्कार किया था, तब शायद ही किसी ने कल्पना की होगी कि एक दिन दुनिया का हर व्यक्ति अपनी जेब में कैमरा लेकर चलेगा और रोजमर्रा की साधारण गतिविधियों को भी अमर बना देगा। फोटोग्राफी का अर्थ केवल कैमरे से फोटो लेना नहीं है बल्कि यह मनुष्य के भीतर बसी स्मृति, भावनाओं और संवेदनाओं को संरक्षित करने का अद्भुत साधन है। ग्रीक शब्द ‘फोटोस’ यानी प्रकाश और ‘ग्राफीन’ यानी खींचना से बना ‘फोटोग्राफी’ शब्द जब पहली बार वैज्ञानिक सर जॉन एफ डब्ल्यू हश्रेल ने प्रयोग किया था, तभी यह स्पष्ट हो गया था कि यह विज्ञान मानवता को केवल दृश्य दर्ज कराने तक सीमित नहीं रखेगा बल्कि संस्कृति, सभ्यता और समाज का दर्पण भी बनेगा।
19 अगस्त, 1839 को जब फोटोग्राफी को पहली बार सार्वजनिक किया गया, तब यह एक अद्वितीय घटना थी। यही दिन बाद में ‘विश्व फोटोग्राफी दिवस’ का आधार बना। यह केवल एक आविष्कार की स्मृति नहीं बल्कि उन अनगिनत फोटोग्राफरों का सम्मान भी है, जिन्होंने कैमरे के पीछे खड़े होकर अपनी संवेदनाओं और दृष्टि से दुनिया को नए आयाम दिए। इस वर्ष विश्व फोटोग्राफी दिवस की थीम है ‘मेरी पसंदीदा तस्वीर’। फोटोग्राफी ने मानव सभ्यता को एक अदृश्य धरोहर दी है, जहां स्मृतियां केवल शब्दों तक सीमित नहीं रही बल्कि दृश्य रूप में संरक्षित हो गई। यही कारण है कि वर्ष 2010 में जब पहली बार वैश्विक ऑनलाइन फोटो गैलरी की शुरुआत हुई और इसमें 100 से अधिक देशों के फोटोग्राफर्स ने भाग लिया तो वह एक तरह से वैश्विक स्मृति और साझा अनुभवों का उत्सव बन गया।
फोटोग्राफी के इतिहास में यदि किसी प्रसंग को विशेष रूप से याद किया जाए तो 1839 में अमरीकी फोटोग्राफर रॉबर्ट कॉर्नेलियस द्वारा खींची गई पहली सेल्फी का उल्लेख नितांत आवश्यक है। कैमरे का लेंस कैप हटाकर स्वयं फ्रेम में आना और तस्वीर लेना उस दौर में केवल तकनीकी प्रयोग भर था लेकिन आज यही शैली दुनियाभर में सबसे लोकप्रिय अभिव्यक्ति का माध्यम बन चुकी है। वह तस्वीर आज भी यूनाइटेड स्टेट लाइब्रेरी ऑफ कांग्रेस के प्रिंट संग्रह में सुरक्षित है और इस बात का साक्ष्य है कि फोटोग्राफी केवल क्षण को कैद करने की कला नहीं बल्कि एक युग की परिकल्पना, रचनात्मकता और संवेदना का मूर्त रूप है।
बीती लगभग दो शताब्दियों में फोटोग्राफी का सफर ऐसा रहा है, जिसने मानवता की सोच, स्मृति और जीवनशैली को गहराई से प्रभावित किया। आरंभिक दौर में फोटोग्राफी केवल अमीरों, राजघरानों और विशेष अवसरों तक सीमित थी। कैमरा, प्लेट, फिल्म और स्टूडियो तक पहुंचना कठिन था, जिसके कारण यह केवल औपचारिक और यादगार क्षणों तक सीमित रहा लेकिन धीरे-धीरे जब तकनीक ने अपनी सुलभता बढ़ाई, तब फोटोग्राफी लोकतांत्रिक हो गई। आज किसी भी उम्र, वर्ग या पेशे का व्यक्ति स्मार्टफोन कैमरे से अपनी रोजमर्रा की गतिविधियों को दर्ज कर सकता है। यही फोटोग्राफी की सबसे बड़ी उपलब्धि है कि उसने स्मृति और भावनाओं को अमीर-गरीब की दीवारों से मुक्त कर दिया।
अब फोटो खींचना केवल पेशेवरों का कार्य नहीं बल्कि आम आदमी का शौक बन गया। बीते तीन दशकों में यह बदलाव इतना तीव्र रहा कि कभी जटिल और समय लेने वाली प्रक्रिया महज एक क्लिक में संभव हो गई। फोटोग्राफी का दायरा आज केवल सोशल मीडिया तक सीमित नहीं है। यह विज्ञापन, पत्रकारिता, विज्ञान, कला, ऐतिहासिक दस्तावेजीकरण और व्यक्तिगत अभिव्यक्ति का प्रमुख साधन बन चुकी है। एक प्रभावशाली तस्वीर हजार शब्दों से भी अधिक असर छोड़ सकती है। यही कारण है कि पेशेवर फोटोग्राफर तकनीकी उत्कृष्टता के साथ-साथ मानवीय संवेदनाओं को भी महत्व देते हैं। किसी तस्वीर का प्रभाव केवल फ्रेम में क्या है, इस पर निर्भर नहीं करता बल्कि इस पर भी कि फोटोग्राफर ने फ्रेम से क्या बाहर रखा है। यही दृष्टि एक साधारण फोटो को कालजयी बना देती है।
आज कृत्रिम बुद्धिमत्ता यानी एआई ने फोटोग्राफी को पूरी तरह नए आयाम दिए हैं। एआई आधारित सिस्टम अब केवल फोटो खींचने तक सीमित नहीं हैं बल्कि वे फोटो की योजना बनाने, स्थान, समय, प्रकाश और विषय की अनुकूलता तय करने में मदद करते हैं। वन्यजीव फोटोग्राफी में एआई-संचालित कैमरे जानवरों की आंखों को ट्रैक कर लेते हैं, दौड़ते या उड़ते जीवों पर फोकस बनाए रखते हैं और सही क्षण को फ्रेम में कैद करने का अवसर बड़ा देते हैं। भविष्य का फोटोग्राफी संसार और भी अद्भुत होने वाला है। वर्चुअल रियलिटी, ऑगमेंटेड रियलिटी और थ्री-डी इमेजिंग से तस्वीरें केवल दृश्य नहीं रहेंगी बल्कि अनुभव का हिस्सा बनेंगी लेकिन इसके साथ ही यह आवश्यक है कि फोटोग्राफी अपनी मूल आत्मा न खोए। यह केवल व्यवसाय न बन जाए बल्कि संवेदना, रचनात्मकता और स्मृति का उत्सव बनी रहे। यही कारण है कि फोटोग्राफी का सफर बीते 186 वर्षों के बाद भी रुकने वाला नहीं है। यह निरंतर विकसित होता रहेगा।