उत्तर प्रदेश में छात्रवृत्ति योजनाओं से वंचित दलित छात्र
सरकारी दावों के अनुसार देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा सामाजिक सुरक्षा के दायरे में है जो पहले कभी नहीं रहा। इसके पीछे सरकारी योजनाओं की उपलब्धियों को माना जा रहा है। ऐसे तमाम दावों के बावजूद दलितों को छात्रवृत्तियों के रूप पहले से मिली सामाजिक सुरक्षा दलितों की मुट्ठी से फिसलती नज़र आ रही है। उत्तर प्रदेश में वंचित वर्गों की छात्रवृत्ति योजनाओं के मामलों में भी कुछ ऐसा ही परिलक्षित हो रहा है। पिछले दिनों उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बसपा सुप्रीमो मायावती को वंचित वर्गों की छात्रवृत्ति योजनाओं के सुस्त क्रियान्वन पर ध्यानाकर्षण करना पड़ा। उन्होंने अलीगढ़ स्थित राजा महेन्द्र प्रताप सिंह विश्वविद्यालय के विभिन्न कालेजों में विद्यार्थियों को लंबित छात्रवृत्तियों का लाभ दिलाने की मांग की।
छात्रवृत्ति के सुस्त क्रियान्वयन के कारण ही समय-समय पर संसद में भी छात्रवृत्तियों से संबंधित प्रश्न पूछे जाते रहे हैं। इसी कड़ी में 29 जुलाई, 2024 को लोकसभा में संसद सदस्या कुमारी सुधा आर एवं जी.एम. बालयोगी द्वारा पूछे गए एक प्रश्न के जवाब में मिले आंकड़े चौंकाने करने वाले हैं। लोकसभा में पेश आंकड़ों के अनुसार उत्तर प्रदेश में वर्ष 2019-20 में दलित वर्ग के 5.31 लाख विद्यार्थियों को प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति का लाभ मिलाए वर्ष 2023-24 में जिनकी संख्या घटकर मात्र 3.82 लाख रह गयी। वर्ष 2019-20 में दलित वर्ग के 13.60 लाख विद्यार्थियों को पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति का लाभ मिला, जिनकी संख्या वर्ष 2023-24 में घटकर 9.53 लाख रह गयी, यानि कि उक्त अवधि के दौरान दलित वर्ग के करीब 5.55 लाख विद्यार्थी छात्रवृत्ति योजनाओं से बाहर हो गए।
उक्त आंकड़ों के आधार पर यह माना जा सकता है कि छात्रवृत्ति योजनाओं पर अमल की प्रक्रिया राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में दम तोड़ रही है। छात्रवृत्ति योजनाओं के अमल पर उक्त प्रवृति महज एक प्रदेश तक सीमित नहीं है बल्कि राष्ट्रीय स्तर की राजनीतिक उदासीनता का रूप ले चुकी है। मसलन् देश में वर्ष 2019-20 में अनुसूचित जाति वर्ग के 54.27 लाख विद्यार्थियों को पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति मिली। इसी अवधि के दौरान प्री मैट्रिक छात्रवृत्ति के लाभार्थियों की संख्या भी 31.37 लाख से घटकर 22.38 लाख रह गयी, यानी कि उक्त अवधि में देश में अनुसूचित जाति वर्ग के करीब 17 लाख विद्यार्थी उक्त योजनाओं से भी बाहर हो गए। देश में अनुसचित जाति वर्ग के विद्यार्थियों की छात्रवृत्ति के करीब तीन लाख आवेदन अस्वीकृत हो गए। सरकार द्वारा चलायी जा रहीं विभिन्न छात्रवृत्ति योजनाएं समाज को शिक्षा के लिए प्रोत्साहित करती हैं। ऐसी योजनाएं सामाजिक एवं आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चों को आर्थिक लाभ पहुंचाकर विद्यार्थियों के बीच में पढ़ाई छोड़ने की दर को भी कम करती हैं।
केन्द्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा राज्यों को जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार सभी राज्य एवं केन्द्र शासित प्रदेश ग्राम पंचायतों के नोटिस बोर्डों, स्कूल कमेटियों एवं अभिभावक-शिक्षक मीटिंग के द्वारा छात्रवृत्ति योजनाओं के प्रति लोगों को जागरूक करेंगे। दलित वर्ग इसकी पुष्टि कम से कम स्थानीय स्तर पर तो सरलता से कर सकता है कि उक्त दिशा-निर्देशों का कितना पालन हो रहा है। छात्रवृत्ति योजनाओं का लाभ अधिक से अधिक पात्र विद्यार्थियों तक पहुंचे और छात्रवृत्ति को अधिक पारदर्शी बनाने के लिए सरकार द्वारा कुछ अहम कदम उठाए गए जिसके तहत आवेदकों को आधार कार्ड, पिछली कक्षा का अंक-पत्र, जाति प्रमाण-पत्र, आय प्रमाण-पत्र, निवास प्रमाण-पत्र और बैंक खाते की आवश्यकता होती है। छात्रवृत्ति योजनाओं के पात्र विद्यार्थियों को राजस्व विभाग से आय प्रमाण-पत्र और निवास प्रमाण-पत्र बनवाने के लिए लंबी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है जिसके कारण अधिकांश विद्यार्थी निर्धारित तिथियों के बीच राजस्व विभाग से आय प्रमाण-पत्र और आवास प्रमाण-पत्र नहीं बनवा पाते। शिक्षा के बढ़ते निजीकरण और व्यवायीकरण के चलते निजी शिक्षण संस्थान दलित विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति योजनाओं के प्रति हतोत्साहित करते हैं और छात्रवृत्ति से संबंधित आवेदनों को देर से भेजते हैं। शिक्षा के व्यवसायीकरण की प्रवृत्ति ने छात्रवृत्तियों में फर्जीवाड़े के रूप में एक अलग तरह के भ्रष्टाचार को जन्म दिया है। भले ही सरकारों द्वारा छात्रवृत्तियों के फर्जीवाड़े के मामलों में कार्रवाई कर दी जाती है पर पात्र विद्यार्थी तो छात्रवृत्ति से वंचित रह ही जाते हैं।
यह कैसी विडंबना है कि डिजिटल क्रांति के इस दौर में एक तरफ सामाजिक सुरक्षा का दायरा बढ़ रहा है तो दूसरी तरफ छात्रवृत्ति योजनाओं के दलित लाभार्थियों की संख्या सिमटती नज़र आ रही है। सदियों से सामाजिक विषमताओं का दंश झेल रहे दलितों के पास शिक्षा ही एक ऐसा संवैधानिक अधिकार है जिसके दम पर वह अपनी गरीबी दूर कर सकता है और शोषितों से लड़ने की ताकत भी उसे शिक्षा से मिलती है। शिक्षा से ही विकास के अन्य मुकामों को हासिल किया जा सकता है। उन्हें छात्रवृत्ति नहीं मिलेगी तो उनकी शिक्षा का सफर कैसे पूरा होगा। अगर सरकारें वाकई चाहती हैं कि वंचित वर्गों तक शिक्षा की पहुंच निर्बाध रूप से जारी रहे तो छात्रवृत्ति की आवेदन प्रक्रिया को और अधिक सुगम बनाना होगा। साथ ही छात्रवृत्ति योजनाओं पर अमल के लिए एक ऐसे मज़बूत निगरानी तंत्र की दरकार है जिसमें राज्य सरकारों, शैक्षणिक संस्थानों, स्थानीय निकायों और ग्राम पंचायतों की जिम्मेदारी तय हो जैसा कि संबंधित मंत्रालय ने दिशा-निर्देश जारी किए हैं। विभिन्न स्तरों पर सरकारी जागरूकता अभियान भी अहम भूमिका निभा सकते हैं। सोशल मीडिया के इस दौर में दलित समाज का युवा वर्ग स्थानीय स्तर से लेकर सोशल मीडिया के जरिए छात्रवृत्ति योजनाओं से संबंधित मसलों को उठाकर अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभा सकता है।