15 अगस्त के समारोह से खड़गे व राहुल अनुपस्थित क्यों रहे ?

इस बार 15 अगस्त पर लाल किले से जो हुआ वह अभूतपूर्व था। प्रधानमंत्री ऊपर प्राचीर पर जब अपना भाषण दे रहे थे, तो नीचे उसे सुनने वालों में विपक्ष के नेता राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे शामिल नहीं थे। दरअसल, उनकी नामौजूदगी ही उनकी मौजूदगी का सबसे बड़ा सबूत था। इस बात का क्या मतलब हो सकता है? भाजपा कहती है कि विपक्ष के नेता और कांग्रेस अध्यक्ष की अनुपस्थिति ने सेनाओं का अपमान किया। सवाल यह है कि भाजपा ने यह क्यों नहीं कहा कि उनकी गैर-मौजूदगी से प्रधानमंत्री का अपमान हुआ है। वह प्रधानमंत्री को रक्षा सेनाओं के पीछे क्यों छिपाना चाहती है। इसका असली तात्पर्य क्या है?
राहुल गांधी के वहां न रहने का एक मात्र कारण यही हो सकता है कि जिस प्रधानमंत्री को राहुल गांधी ने वोट चोरी करने वाला करार दे दिया है, जिसकी प्रधानमंत्री के तौर पर वैधता पर ही सवालिया निशान लगा दिया है, उसका भाषण सुनने उन्हें और उनकी पार्टी के अध्यक्ष को क्यों जाना चाहिए था? राहुल और खड़गे तो मोदी को विधिसम्मत चुनावी प्रक्रिया से चुना गया प्रधानमंत्री मानते ही नहीं। कई विशेषज्ञ दिखा चुके हैं कि वोटों की चोरी हुई है, एक-दो सीटों की नहीं बल्कि पूरी 78 सीटों की चोरी हुई है। अगर 2024 के लोकसभा चुनाव में ये 78 सीटें न चुराई गई होतीं, तो भाजपा 175 सीटों वाली पार्टी होती और केन्द्र में कांग्रेस के नेतृत्व में गठजोड़ सरकार चल रही होती। उस सूरत में भी भाजपा ने मोदी में अपना विश्वास कायम रखा होता तो वे इस समय विपक्ष के नेता होते। 
राहुल गांधी व खड़गे का लाल किले पर 15 अगस्त के कार्यक्रम में न जाना एक सोच-समझ कर बनाई गई रणनीति का नमूना है। इससे देश भर में जनता के पास संदेश जाता है कि मोदी का प्रधानमंत्रित्व शक के बादलों से ढंक गया है। उधर बिहार में कल से शुरू होने वाली वोट अधिकार यात्रा की तैयारी पूरे शबाब पर है। राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा की शुरुआत से पहले कांग्रेस ने चुनाव आयोग पर निशाना साधा है। कहा है कि जिस तरह से फर्जी वोट जोड़ने और काटने का खेल चल रहा था, उसमें भाजपा के लोग रंगे हाथों पकड़े गए हैं। अब सामान्य नागरिक भी वोट चोरी के सबूत निकाल कर दे रहे हैं। कांग्रेस ‘वोट चोरी’ अभियान को तेज़ करने के लिए सोशल मीडिया पर लगातार एक के बाद एक वीडियो जारी कर रही है। इन्हीं में एक बेहद दिलचस्प वीडियो में दिखाया गया है कि एक ग्रामीण व्यक्ति थाने में रिपोर्ट लिखाने आता है। थानेदार का सहायक पूछता है कि क्या चोरी हो गया तुम्हारा। संकोच के साथ देश का वह गरीब नागरिक बोलता है कि मेरा वोट चोरी हो गया है। इससे थानेदार चौंक कर कुर्सी से खड़ा हो जाता है। फिर वह नागरिक बताता है कि किस तरह उसका वोट चोरी हो सकता है। मशहूर फिल्म लापता लेडीज़ की तर्ज पर बनाया गया यह वीडियो क्लिप इस समय सुपरहिट हो रहा है। और भी कई वीडियो हैं जिनमें दिखाया जा रहा है कि कैसे लोगों के वोटों की चोरी हो रही है। 
सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली को लेकर कुछ राज्यों ने लिखित दलीलें दाखिल की है। इनमें तमिलनाडु, केरल, पश्चिम बंगाल, हिमाचल प्रदेश, झारखंड और कर्नाटक शामिल हैं। राज्यों ने कोर्ट में चुनाव आयोग की मौजूदा कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े किए हैं। मांग की है कि वह चुनाव आयोग की पारदर्शिता व जवाबदेही तय करें और उसमें स्पष्टता लाए। 
जो भी हो, राहुल गांधी की एक बात में लोहा मानना पड़ेगा कि उनके पास कुछ खास तरह की राजनीतिक दृष्टि आ गयी है। वे कई बातों का पूर्वानुमान लगा लेते हैं। मसलन, इस बार प्रधानमंत्री ने वायदा फेंका है कि वे देश के साढ़े 3 करोड़ युवाओं को रोज़गार के अवसर मुहैंया कराएंगे। राहुल ने 21 जुलाई को ही कारपोरेट मामलों के मंत्रालय से संसद में सवाल पूछा था कि क्या वर्ष 2024-25 के लिए सरकार ने पीएम इंटर्नशिप स्कीम (पीएमआईएस) के तहत युवकों को एक करोड़ इंटर्नशिप मुहैया कराने के लिए कोई रोडमैप या कोई योजना तैयार की है। अगर तैयार की हो तो सरकार ने इस सिलसिले में क्या किया, इसकी जानकारी दी जाए। सरकार यह भी बताए कि उसे कितनी अज़र्ियां मिलीं, कितनों को इंटर्नशिप देने का प्रस्ताव किया गया और कितने प्रस्ताव स्वीकार किये गये। यह स्कीम दो राउंड की है, इसलिए राहुल ने यह भी पूछा कि पहले और दूसरे राउंड के आंकड़े दिये जाएं। राज्य मंत्री हर्ष मल्होत्रा ने जो जवाब दिया वह बताता है कि यह योजना पूरी तरह से फ़्लाप हो चुकी है। उन्होंने बताया कि 10.77 लाख अर्जियां आईं, बदले में सरकार ने केवल 1.53 लाख युवकों को इंटर्नशिप की पेशकश की, और कुल मिला कर 9,453 युवकों ने इंटर्नशिप करना स्वीकार किया। जैसे ही मोदी ने इस साल लाल किले से एक लाख करोड़ की लागत से नौकरी देने की योजना फेंकी, राहुल फौरन समझ गये। उन्होंने इसका भांडा फोड़ दिया। उन्होंने कहा कि एक लाख करोड़ का ‘जुमला’ फिर आ गया है। यह उसका सीज़न-टू है। 11 साल बाद भी मोदी वही पुराने जुमले, वही रटे-रटाए आंकड़े पेश कर रहे हैं। 
उन्होंने (मोदी) पिछले साल एक लाख करोड़ से एक करोड़ इंटर्नशिप का वादा किया था। इस साल फिर एक लाख करोड़ की नौकरी योजना उछाल दी है। संसद में मेरे सवाल पर सरकार मान चुकी है कि 10 हज़ार से भी कम को इंटर्नशिप मिली है। दरअसल, उन्हें मिलने वाला स्टाइपेंड इतना कम था कि 90 प्रतिशत युवाओं ने सरकार का प्रस्ताव ठुकरा दिया। मोदी के पास अब कोई नया आइडिया नहीं बचा है। इस सरकार से युवाओं को रोज़गार नहीं, बस जुमले मिलेंगे।
यह बात कितनी सही है, इसका सबसे बड़ा सबूत यह है कि 2019 से ही प्रधानमंत्री यही बात घुमाफिरा बार-बार कह रहे हैं। पर न रोज़गार मिल रहे हैं, न ही मोदी के झूठे वायदे खत्म हो रहे हैं। अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत में ही उन्होंने इसी लाल किले से बोलते हुए कहा था कि सौ लाख करोड़ की लागत से आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर बनेगा। सोचिये, अगर वास्तव में इतना बड़ा इंफ्रास्ट्रक्चर बनता तो न जाने कितनों को रोज़गार मिलता। फिर 2021 में मोदी ने लाल किले से एक बार फिर वायदा फेंका कि सौ लाख करोड़ की योजना लाखों नौजवानों के लिए रोज़गार के नये अवसर लाने वाली है। 2025 में यानी इस साल वे फिर उसी पुरानी भाषा और पुराने आंकड़े के साथ आये। फर्क केवल इतना था कि उन्होंने इसे प्रधानमंत्री विकसित भारत योजना का नाम दे दिया। लफ़्फाज़ी यह थी कि इस बार वे कह रहे थे कि उन्होंने यह योजना लागू कर दी है, चालू कर दी है। दोस्तो इसे समझना मुश्किल नहीं है कि इस घोषणा का भी वही हश्र होगा जो पिछली घोषणाओं का होगा। 
दरअसल, समस्या कहीं और है। समस्या अर्थव्यवस्था में है। न नया निवेश है, न ही नयी फैक्ट्रियां हैं। तो फिर निजी क्षेत्र क्यों किसी को नयी नौकरी देगा। क्यों किसी को इंटर्न रखेगा। बेरोज़गारी बढ़ने का असर 18 से 35-40 साल के वोटर पर बहुत पड़ता है। एंटीइनकम्बेंसी उछाल मारती है। नाराज़गी सातवें आसमान पर पहुंच जाती है। इसलिए अगर और कुछ न कर पाओ तो झांसा ही दे दो। वैसे, मोदीजी बहुत पहले कह चुके हैं कि उनका काम लोगों को रोज़गार देना नहीं है। वे ज्यादा से ज्यादा रोज़गार मुहैया कराने के हालात बना सकते हैं। सरकार, भाजपा और संघ परिवार बहुत पहले ही कह चुका है कि रोज़गार देना राज्य का काम नहीं है। राज्य से रोज़गार नहीं मांगा जाना चाहिए। ध्यान रखिये, इसी तरह की एक शपथ न्यू इंडिया के नारे के तहत सरकार और भाजपा ने तैयार की थी। वे चाहते थे कि देश का हर नौजवान यह शपथ ले ले कि वह सरकार से रोज़गार नहीं मांगेगा। चूंकि ऐसा नहीं हो सका, लोगों ने रोज़गार मांगना जारी रखा, इसलिए भी यह झांसा देना भी सरकार के लिए ज़रूरी हो गया है।

लेखक अम्बेडकर विश्वविद्यालय, दिल्ली में प्ऱोफेसर और भारतीय भाषाओं के अभिलेखागारीय अनुसंधान कार्यक्रम के निदेशक हैं।

#15 अगस्त के समारोह से खड़गे व राहुल अनुपस्थित क्यों रहे ?