क्या हाल है लतखोरी लाल

आज के राजनीति में लतखोरों व चोरों की कमी नहीं है। जो जहां पर है जिसको जहां मौका मिला चौका छक्का मार कर विकास का चक्का जाम कर हराम के माल पर कमाल करते हुए नमक हराम खुद आराम कर रहा है। जो भविष्य में बनता यही जी का जंजाल है। जनता देख रही जो नेता भलाई करने का संकल्प लेकर मैदान में उतरा वहीं विकास का पर कतर मलाई चांप रहा है मजे से नोट छाप रहा है। इस आड़ में सफलता का झूठा झंडा गाड़ कहता जनता जाए भाड़ में। विकास का चादर समेट बढ़िया कमिशन लपेटकर अपना पेट भर निडर होकर चल रहा है। सार्वजनिक संपत्ति पर अपने अधिकार से कटौती कर बपौती समझकर यूज कर रहा है। आज जनता को सजग होते ही इनके करतूतों को देख कहर बनकर टूट रही है। जो सार्वजनिक संपत्ति को अपना समझने का जो भूल कर रहे थे। उसकी कलई खुल रही है। जनता के आक्रोश से उनका जोश बेहोश होकर धाराशायी हो गया। वह कितना बेहाल व लाचार है। चल रहा कभी पात-पात तो कभी भाग रहा इस डाल तो उस डाल है। इसी तरह के सांप सीढ़ी के खेल में देश का खास्ता हाल है। पूरे देश में एक अलग स्लोगन चल रहा है। जनता जो सोई थी अपनी हसरतें जो डुबोई थी अब वह मचल रही है रोड पर निकल उछल रही है।
आज लोकतंत्र बिल्कुल तंग हो गया है। दूसरे शब्दों में लोकतंग या प्रजातंग कह सकते हैं। सुकून और शांति सत्ता के होड़ में जो पहले से आसन पर बैठ झूठा आश्वासन परोस रहा है। सूचना तंत्र इनके षड्यंत्र के झांसे में आ गया है। वह भी खा पीकर दंड मार रहा है। बोझ से दबा बैठा है। कुछ अजीब तरह का हरकत करते हुए कुंठित होकर बीच-बीच में ऐसा कानून या विधेयक लाता है मुंह की खाता है। जनता जाग गई। लेते हुई अंगड़ाई अगले अंजाम को तमाम करने के लिए क्वालीफाई कर रही है।
और इसी तरह के जुनून में हमारे मोहल्ले के उभरते नेता सुखीराम भी इस जंग में कूद कर अपना रंग दिखाना शुरू कर किए। मौका देखकर चौका मारने में कमाल का महारत हासिल है। जब जान गया कि ऐसे ऐसे मौके पर कुछ भेटने वाला है तो समेटने के लिए निकल पड़ता है। उनके साथ में एक टोली होती है जो अगले के बोली पर ताला लगा देने के लिए जानी जाती है। यही कारण है समय-समय पर लतियाए जाते हैं। कभी खूब पीटाते है। उसमें सबसे अधिक प्रसाद सुखीराम ही पाते हैं। लोग-बाग अब असली नाम के जगह नेता लतखोरीलाल कहते हैं। ये जब जब पिटाकर आए, पड़ोसी होने के नाते पूछ लिया-क्या हाल है लतखोरीलाल भाए। क्योंकि यह पक्ष हो या विपक्ष तहस-नहस कराने, मामला को बिगाड़ने के लिए मशहूर हैं। हालांकि हवा का रूख देखकर चलते हैं। इसलिए जब जब सत्ता बदलती है यह भी बदल जाते हैं। खरीद फरोख्त में मोल-तोल करने में इनका जबाब नहीं महारत हासिल है। समान तो इंसान भी खरीदते हैं। नेता खरीदने में इनका क्या कहना। देश के सम्पत्ति को ये बपौती समझ आम जन के सुविधाओं में कटौती कर पनौती लगाने के लिए भी जाने जाते हैं। इसलिए जन मानस जैसे ही सड़कों पर उतरा शायद इन पर मंडराना शुरू हो गया खतरा। अभी जंग जारी है। नया मुद्दा अभी कुछ ज्यादा उछल रहा है किसी आयोग को लेकर। जनता भी पड़ गई है इनके पीछे हाथ धोकर।
मो. 8329680650

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