नेपाल की राजनीति में वैश्विक शक्तियों की बढ़ी दिलचस्पी

अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के गलियारों में विशेष रूप से दक्षिण एशिया की भू-राजनीति को प्रभावित करने वाली घटना जो नेपाल में हुई है, को लेकर जबरदस्त बहस चल रही है। नेपाल की स्थिति के लिए वस्तुत: ज़िम्मेदार कौन है और ऐसी स्थिति में भारतीय रणनीति क्या होगी? ये यक्ष प्रश्न हैं और इनका निदान क्या हो सकता है, यह विश्लेषण का विषय है। 25 अगस्त को नेपाल के सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार से विदेशी सोशल मीडिया प्लेटफार्मों की जवाबदेही तय करने को कहा। इसके बाद 28 अगस्त को सरकार ने सभी प्लेटफार्मों को 3 सितम्बर तक पंजीकरण कराने का आदेश दिया। 28 में से केवल 2 ने इसका पालन किया जबकि 26 ने इन्कार कर दिया। सरकार ने 4 सितम्बर को गैर-अनुपालन पर सोशल मीडिया सेवाएं रोक दीं। यह कदम आम जनता के लिए डिजिटल अधिकार पर प्रहार जैसा साबित हुआ। युवाओं, खासकर 14 से 28 वर्ष के ‘जेन ज़ैड’ वर्ग ने इस निर्णय के खिलाफ व्यापक आंदोलन छेड़ दिया।  9 सितम्बर तक यह आंदोलन पूरे देश में फैल गया और पुलिस कार्रवाई में कम से कम 19 प्रदर्शनकारी मारे गए थे।
नेपाल लंबे समय से भ्रष्टाचार और घोटालों से जूझ रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री माधव नेपाल पतंजलि योगपीठ भूमि अधिग्रहण विवाद में फंसे हैं जबकि के.पी. शर्मा ओली पर गिरिबंधु चाय बागान घोटाले के आरोप हैं। 2023 के फज़ी भूटानी शरणार्थी प्रकरण ने स्थिति और बिगाड़ दी, जिसमें दो पूर्व मंत्री और 12 वरिष्ठ नौकरशाह जेल भेजे गए। इसमें पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा की पत्नी आरज़ू राणा का नाम भी सामने आया। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के भ्रष्टाचार सूचकांक 2024 में नेपाल 180 देशों में 107वें स्थान पर रहा। कोविड-19 के बाद अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत मिले थे और एशियाई विकास बैंक ने 2025 में 4 प्रतिशत से अधिक वृद्धि का अनुमान जताया था, परन्तु राजनीतिक अस्थिरता और हिंसा ने विकास पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया।
नेपाल भू-राजनीति की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। यह एक ऐसा भौगोलिक क्षेत्र जहां दो या दो से अधिक शक्तिशाली देशों की रणनीतिक और भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा और हित केंद्रित होते हैं, जिसके कारण वे उस क्षेत्र पर अपना प्रभाव बढ़ाना चाहते हैं। नेपाल, जो चीन और भारत के बीच स्थित है, एक ऐसा क्षेत्र है, जिसे ‘बफर स्टेट’ के रूप में भी  देखा जाता है और इन दोनों देशों के लिए बराबर रणनीतिक महत्व रखता है। भारत की दृष्टि से नेपाल को भारत के साथ होना चाहिए क्योंकि यदि वह तटस्थ रहता है तो वह भारत के हित से और भी खतरनाक है।  नेपाल की इसी भू-राजनीतिक स्थिति को दृष्टिगत रखते हुए वैश्विक शक्तियां भी वहां अपना हित तलाश करने की कोशिश कर रही हैं। अमरीका इस क्रम में सबसे पहले आता है, क्योंकि आज वैश्विक राजनीति में अमरीका को चीन काउंटर कर रहा है और इस कारण नेपाल में अमरीका की रुचि बढ़ जाती है। हाल के वर्षों में नेपाल का झुकाव चीन की ओर बढ़ा है और भारत से दूरी बड़ी है। अत: अमरीका इंडोपेसिफिक स्ट्रेटजी में नेपाल को अपने साथ चाहता है। नेपाल एक साफ्ट स्टेट है। साफ्ट स्टेट वह राज्य होता है जो अपने कानून को ठीक से लागू करने की क्षमता न रखता हो, बुनियादी सुविधाओं का विकास करने में अक्षम हो। अमरीका नैशनल एंडोमेन्ट फॉर डेमोक्रेसी के ज़रिये नेपाल की सहायता करने का इच्छुक था। इसी क्रम में 2017 में उसने  मिलेनियम चैलेंज कार्पोरेशन के जरिए 500 मिलियन डॉलर ग्रांट देने का प्रस्ताव नेपाल के समक्ष रखा परन्तु तत्कालीन प्रधानमंत्री के. पी. ओली ने मना कर दिया। इसके पीछे कारण वस्तुत: मिलेनियम चैलेंज कार्पोरेशन का अनुच्छेद 7.1 था। इसके तहत इस ग्रांट को लेने के बाद यदि अमरीका कोई प्रोजेक्ट वहां चलाता और यदि यह प्रोजेक्ट किसी भी स्तर पर नेपाल के घरेलू कानून के विरुद्ध होता तो यह समझौता नेपाली कानून से ऊपर होगा, साथ ही अमरीकी अधिकारी नेपाली कानून के दायरे से बाहर होंगे। इस ग्रांट से नेपाल की तरक्की होगी और सॉफ्ट स्टेट का धब्बा भी हट जाएगा। ओली के इस कदम से अमरीका और नेपाल के बीच दरार बढ़ गयी थी। 
अन्तत: जुलाई 2021 में ओली सरकार के पतन के बाद देउबा सरकार ने इसको स्वीकार कर लिया। इसके बाद अमरीका ने ग्रांट दे दी किन्तु समस्या खत्म नहीं हुई। अमरीका ने नेपाल को चीन के ‘बेल्ट एण्ड रोड इनीशिएटिव’ से अलग होने के लिए कहा लेकिन नेपाल तो अब तक पूरी तरह से चीनी चंगुल में फंस चुका है। अमरीका अपने इंडोपेसिफिक स्ट्रेटजी को लेकर दृढ़ संकल्पित है और वह चाहता है कि चीन का वहां से प्रभाव कम हो। अत: इस बात की प्रबल संभावना है कि इसी के मद्देनज़र अमरीका ने इस संघर्ष को हवा दी हो। चीन भी ऐसा कर सकता है क्योंकि ओली सरकार उसके लिए फायदे का सौदा थी।
भारत का जहां तक प्रश्न है तो पड़ोस में जितनी समृद्धि होगी, उतना ही उसके हित में होगा। भारत नेपाल में स्थिर सरकार चाहता है। यह नेपाल और भारत दोनों के नज़रिए से अत्यन्त ज़रूरी है। (युवराज)

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