आगामी जनगणना के लिए पूरे देश का बनेगा स्मार्ट मैप 

एक अक्तुबर से देश आरंभ हो रही जनगणना 2027 की मॉक ड्रिल के दौरान एक उल्लेखनीय ऐतिहासिक कार्य की नींव पड़ने जा रही है। बहुआयामी प्रभावों वाली यह पहल देश के लिये क्रांतिकारी साबित होगी। यह महत्वाकांक्षी प्रयास है—डिजिटल लेआउट मैपिंग के जरिए समूचे देश का स्मार्ट नक्शा बनाने का। स्मार्ट मैपिंग तकनीक के माध्यम से पूरा देश एक इंटरएक्टिव डिजिटल प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध होगा। इस परिवर्तन के अत्यंत दूरगामी परिणाम होंगे। पहले जनगणना या सर्वेक्षण के दौरान हाउस लिस्टिंग के लिए अनुमान के आधार पर हाथ से बने स्केच से लोकेशन तय की जाती थी। अब पहली बार इसका डिजिटलीकरण एक बहुत बड़ा प्रयास है। इस योजना के अंतर्गत देश की आवासीय और गैर-आवासीय सभी इमारतों को जियो-टैग कर स्वचालित रूप से डिजिटल लेआउट तैयार किया जाएगा। साथ ही, जियो-टैग की सहायता से अक्षांश-देशांतर निर्देशांक के आधार पर जीपीएस मानचित्र में उन इमारतों को एक डिजी डॉट में बदलना अत्यंत दूरदर्शी परिकल्पना है। प्रत्येक घर या डिजी डॉट को 10 अंकों का एक विशेष अल्फा न्यूमरिक डिजी पिन और क्यूआर कोड का मिलना। हर दुकान, प्रतिष्ठान, घर, मंदिर, स्कूल को एक सटीक डिजिटल पता प्राप्त होना वर्तमान में नई बात नहीं लेकिन समूचे देश में ऐसा प्रचलन बड़ी परिवर्तनकारी घटना होगी। इससे किसी भी घर या इमारत को ऑनलाइन आसानी से खोजा जा सकेगा। 
यदि यह योजना त्रुटिहीन तरीके से पूरे देश में लागू हो जाती है तो यह तकनीक हाउस लिस्टिंग का पुराना तरीका बदल देगी। इससे डेटा संग्रह और विश्लेषण में अभूतपूर्व सटीकता आएगी। जनगणना तकनीकी रूप से उन्नत होगी और उसके आंकड़ों की गुणवत्ता व उपयोगिता भी बहुत बढ़ेगी। इससे जनगणना कर्मियों का समय बचेगा, काम का बोझ घटेगा और लोगों, घरों व परिवारों की संख्या का सटीक अनुमान संभव होगा। इस पूरी प्रक्रिया का व्यापक असर शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यटन, निर्माण कार्य, शहरीकरण, कृषि, आपदा प्रबंधन, सुरक्षा जैसे दर्जनों क्षेत्रों पर सकारात्मक बदलाव के रूप में दिखाई देगा। व्यवस्थाएं अधिक चुस्त-दुरुस्त और पारदर्शी होंगी तथा कार्रवाइयां त्वरित और जनाभिमुख बनेंगी। इस तकनीक का कुछ उपयोग पहले से ही प्रधानमंत्री आवास योजना जैसी योजनाओं में शहरी, ग्रामीण क्षेत्रों में किया जा रहा है, जहां संपत्तियों को जियो-टैग किया जाता है। दिल्ली सरकार ने भी शहरी विकास विभाग की एक परियोजना के तहत ज़मीन के ऊपर मानव निर्मित संरचनाओं और सुविधा संजाल—जैसे पानी, सीवेज, बिजली, गैस का डिजिटल लेआउट मैपिंग कर लिया है। इंदौर में घर का डिजिटल पता और उसका क्यूआर कोड तय करने का अभियान चल रहा है, जहां प्रत्येक घर या भौतिक निर्माण के लिए एक यूनिक अल्फान्यूमेरिक डिजिटल कोड दिया जा रहा है। परंतु यह सब सीमित दायरे का काम है, अब व्यापक स्तर पर इसे लागू करना कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण है। 
देशव्यापी स्तर पर 33 करोड़ से अधिक घरों पर इसे तकनीकी दक्षता के साथ सफलतापूर्वक लागू करना आसान नहीं है। इसकी चुनौतियों और नुकसानों से निपटने के लिए अतिरिक्त श्रम, व्यय, तकनीकी विशेषज्ञता और अन्य प्रयासों की आवश्यकता होगी, लेकिन यदि सरकार इसे पूरी प्रतिबद्धता के साथ लागू कर पाती है, तो यह नीति-निर्माण और संसाधनों के विवेकपूर्ण आवंटन की दिशा में एक युगांतरकारी कदम होगा। डिजिटल लेआउट मैपिंग की प्रक्त्रिया के अंतर्गत भौगोलिक आंकड़ों को व्यवस्थित रूप से डिजिटल छवि के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, जिससे यह बहुविधि उपयोगी बन जाती है। डिजिटल मानचित्रों में विभिन्न स्तर, वर्ग और विषय हो सकते हैं- जैसे सड़कें, इमारतें और प्राकृतिक विशेषताएं। एजेंसियां विश्लेषणात्मक उद्देश्यों के लिए इन परतों का अपने अनुसार विश्लेषण और व्याख्या कर सकती हैं। इससे शहरी नियोजन, भूमि उपयोग, अवसंरचना घनत्व, बसावट और पलायन के पैटर्न समझने में मदद मिलती है। बाढ़, भूकम्प या अन्य आपदाओं में राहत कार्य तेज़ और सटीक होंगे। मौसम संबंधी आंकड़ों को जोड़कर प्रभावी योजनाएं बनाई जा सकती हैं। दुर्घटना अथवा आपदाग्रस्त क्षेत्र में कितने मकान या होटल थे, उनकी क्षमता कितनी थी, कितने बचे, कितने लोग प्रभावित होंगे, उनके लिये बचाव साधन, रसद या दूसरे संसाधन, कितना, किस मात्रा में चाहिये इससे निर्धारित हो सकेगा। 
परिसीमन के तहत राजनीतिक क्षेत्र जैसे विधानसभा या संसदीय सीट की सीमाएं तार्किक तरीके से विभाजित की जा सकेंगी। ग्रामीण और शहरी क्षेत्र का घालमेल नहीं होगा और न ही एक मुहल्ला दो अलग क्षेत्रों में बंटेगा। नगर नियोजन, पर्यावरण प्रबंधन, ट्रैफिक नियंत्रण और दुर्घटनाओं की रोकथाम में सटीकता लाई जा सकेगी। यदि किसी क्षेत्र में स्कूल और बच्चे ज्यादा होंगे तो वहां खेल के मैदान की योजना बनाई जा सकती है और कहीं आदर्श दूरी पर अस्पताल नहीं तो स्वास्थ्य सुविधाएं स्थापित की जा सकेंगी। चूंकि हर घर की लोकेशन पहले से दर्ज होगी, इस आधार पर सड़क, बिजली, पानी और अस्पताल जैसी सुविधाओं की योजना बनाना आसान होगा। सैटेलाइट और इमेजिंग तकनीक से इस डिजिटल मैप को तुरंत अपडेट किया जा सकेगा, जिससे बसावट और भवनों में परिवर्तन तुरंत दिखेंगे। दस साल बाद जब अगली जनगणना होगी तब यह तुरंत पता चल जायेगा कि कहां शहरीकरण बढ़ा और किस इलाके से पलायन। इससे मतदाता सूची का दोहराव भी समाप्त हो जाएगा।  जियो टैगिंग से जब मतदाता का मूल पता जुड़ा होगा तब दोहरे पंजीकरण के समय इसके दुहराव का पता चल जाएगा। मतलब यह कि चुनाव आयोग की कुछ बड़ी समस्याएं भी अगली जनगणना और देशव्यापी एसआईआर के बाद इस तकनीक के व्यावहारिक होने के बाद खत्म हो जायेगी। 
इस तकनीक के डिजिलॉकर, जनधन, स्वास्थ्य मिशन जैसे सरकारी पोर्टलों, योजनाओं से जुड़ने के बाद एकीकृत सेवा वितरण संभव होगा। इससे सभी नागरिकों तक लाभ सीधे पहुंच सकेगा और बिचौलियों की भूमिका समाप्त होगी। यह पर्यटकों और नागरिकों को सुरक्षित, तेज़ या कम भीड़ वाला रास्ता चुनने में भी आजकल प्रचलित एप से कहीं अधिक मददगार होगा। संक्षेप डिजिटल मैपिंग की एक कवायद तमाम तरीके से फलदायी होगी। हालांकि स्मार्ट मैप तैयार करने में चुनौतियां भी कम नहीं हैं। अगर शुरुआती डेटा गलत हुआ तो पूरा मैप गलत हो सकता है। भारत में आंकड़ों की स्थिति देखते हुए यह सबसे बड़ी आशंका है। इसके अलावा, नागरिकों की लोकेशन और व्यक्तिगत जानकारी की गोपनीयता व डेटा सुरक्षा सुनिश्चित करना अनिवार्य है। जब तक हम ब्लॉकचेन जैसी तकनीकों को नहीं अपनाते, नागरिकों का विश्वास पूरी तरह कायम करना कठिन होगा। यह एक बड़ा सवाल है। कानूनी और नीतिगत स्पष्टता भी आवश्यक है। डेटा संग्रह, उपयोग और साझाकरण के लिए पारदर्शी नीतियां चाहिए। 
सॉफ्टवेयर, हार्डवेयर और ट्रेनिंग में लागत आती है और बदलते क्षेत्रों के अनुसार मैप को लगातार अपडेट करना पड़ता है। बिजली व इंटरनेट की कमी वाले क्षेत्रों में इसका उपयोग चुनौतीपूर्ण होगा। साथ ही नेट साक्षरता और जन जागरूकता भी जरूरी है, क्योंकि हर कोई डिजिटल मैप को सहजता से नहीं समझ पाता। फिलहाल भारत सरकार द्वारा प्रस्तावित हर घर का डिजी डॉट और स्मार्ट मैपिंग पहल न केवल जनगणना 2027 को डिजिटल रूप देने की दिशा में बड़ा कदम है, बल्कि देश के प्रशासनिक, सामाजिक और तकनीकी ढांचे को नई ऊंचाई पर ले जाने की तैयारी है। यह पहल भारत को एक ऐसे डिजिटल युग में प्रवेश दिला सकती है जहां प्रशासन, सेवा वितरण और नागरिक सहभागिता सभी तकनीक के माध्यम से अधिक प्रभावी और पारदर्शी होंगे। नि:संदेह, यह पहल तकनीकी दृष्टि से क्रांतिकारी है। देखना है सरकार इस ओर किस प्रतिबद्धता से आगे बढ़ती है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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