पटाखों पर प्रतिबंध और आजीविका के बीच बने संतुलन
2025 की दिवाली थोड़ी अलग हो सकती है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा विगत दिवस पटाखों पर प्रतिबंध के लिए अखिल भारतीय नीति बनाने के लिए कहा गया है, साथ ही आश्वासन दिया है कि वह 22 सितम्बर को होने वाली अगली सुनवाई में आजीविका संबंधी चिंताओं पर भी सुनवाई करेगा। सर्वोच्च न्यायालय ने अधिकारियों को प्रतिबंध पर यथास्थिति बनाए रखने के निर्देश भी जारी किए हैं और केंद्र से राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी)के परामर्श से स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत करने को भी कहा है। सर्वोच्च न्यायालय का आह्वान स्वागत योग्य है, लेकिन पटाखों पर प्रतिबंध और आजीविका संबंधी चिंताओं के बीच संतुलन बनाने की स्पष्ट आवश्यकता है। भारत के मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने 12 सितम्बर, 2025 को पटाखा निर्माताओं द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए, जिनमें दिल्ली-एनसीआर में पटाखों की बिक्री और निर्माण पर एक साल से चल रहे प्रतिबंध का विरोध किया गया था, पटाखों पर केवल एनसीआर में ही नहीं, बल्कि पूरे देश में प्रतिबंध लगाने का सुझाव दिया। मुख्य न्यायाधीश ने कहा, ‘अगर पटाखों पर प्रतिबंध लगाना है, तो पूरे देश में लगाया जाना चाहिए।’
आवेदनों पर नोटिस जारी करते हुए न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन ने कहा, ‘अगर एनसीआर के नागरिक प्रदूषण मुक्त हवा के हकदार हैं, तो दूसरे शहरों के लोगों के लिए ऐसा क्यों नहीं है।’ याचिकाकर्ताओं ने कहा कि इस उद्योग पर निर्भर कई परिवारों की आजीविका का मुद्दा भी है।
अदालत में यह उल्लेख किया गया कि 3 अप्रैल को सर्वोच्च न्यायालय के अंतिम आदेश पर शीर्ष अदालत ने अपने प्रतिबंध में बदलाव करने से इन्कार कर दिया है और यहां तक कि उनके द्वारा तैयार किए गए हरित पटाखों के फॉर्मूलेशन पर भी केंद्र और विशेषज्ञ संस्था नीरी ने विचार नहीं किया है।
याचिकाकर्ता पटाखा व्यापारी, एसोसिएशन ऑफ फायर वक्र ट्रेडर्स, इंडिक कलेक्टिव एंड हरियाणा फायरवर्क मैन्युफैक्चरर्स ने बताया था कि शीर्ष अदालत द्वारा पारित आदेश के कारण उनके लाइसेंस रद्द कर दिए गए हैं जबकि यह 2027-28 तक वैध है। न्यायमित्र के रूप में न्यायालय की सहायता कर रही वरिष्ठ अधिवक्ता अपराजिता सिंह ने न्यायालय को बताया कि जब दिल्ली में निर्माण गतिविधियों पर प्रतिबंध सहित आपातकालीन उपायों का प्रस्ताव रखा गया था, तब भी न्यायालय ने यह सुनिश्चित किया था कि काम के नुकसान से प्रभावित श्रमिकों को मुआवज़ा दिया जाए।
अदालत ने इस बिंदु पर सहमति व्यक्त की और कहा, ‘जब हम श्रमिकों पर प्रतिबंध लगाते हैं, तो वे बिना काम के रह जाते हैं। इसका खामियाजा गरीबों को भुगतना पड़ता है।’ इसके बाद न्यायालय अगली सुनवाई पर मामले की जांच करने के लिए सहमत हो गया। केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) एश्वर्या भाटी ने भी कहा कि हरित पटाखों पर कोई भी सूत्रीकरण विशेषज्ञों के परामर्श से किया जाता है और वह नीरी द्वारा किए गए नवीनतम शोध उपलब्ध कराएंगे।गौरतलब है कि पिछली दिवाली 2024 के दौरान देश के कई राज्यों ने पटाखों पर प्रतिबंध लगा दिया था, जिनमें न केवल दिल्ली-एनसीआर बल्कि बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक, पंजाब, हरियाणा, केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल भी शामिल थे। कई शहरों में पटाखों की अलग-अलग विशिष्टताओं के साथ प्रतिबंध लगाए गए थे।
फिर भी, आजीविका और प्रतिबंध के बीच संतुलन बनाना आसान काम नहीं होगा। पटाखे, खासकर दिवाली और अन्य त्योहारों के आसपास वायु और ध्वनि प्रदूषण में बड़ा योगदान देते हैं। इसी संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय और विभिन्न राज्य सरकारों ने प्रतिबंध लगाए हैं, कभी पूर्ण प्रतिबंध, तो कभी आंशिक प्रतिबंध, जिसमें केवल हरित पटाखों की अनुमति देना भी शामिल है। समस्या यह है कि ये प्रतिबंध अक्सर अस्थायी होते हैं, कभी असंगत और प्रवर्तन में मिला-जुला रवैया होता है, जिससे व्यवसायों और उपभोक्ताओं के बीच भ्रम की स्थिति पैदा होती है।
प्रतिबंध का असर श्रमिकों और निर्माताओं पर भी पड़ता है। भारत का पटाखा केंद्र तमिलनाडु में शिवकाशी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से लगभग 4 लाख श्रमिकों को रोज़गार देता है। श्रमिक मुख्यत: दिहाड़ी मजदूर हैं और उनके पास वैकल्पिक रोज़गार के सीमित अवसर हैं। बार-बार प्रतिबंध लगाने से अनिश्चितता, उत्पादन में कमी, नौकरियों का नुकसान और वेतन में कटौती जैसी समस्याएं पैदा होती हैं।देश भर में लाखों खुदरा विक्रेता और छोटे व्यवसाय भी दिवाली की बिक्री पर निर्भर हैं। अचानक प्रतिबंध या पाबंदियों से भंडार में नुकसान होता है।
सर्वोच्च न्यायालय को इस समस्या का कोई संभावित समाधान निकालना होगा, शायद प्रतिबंध और आजीविका के बीच संतुलन बनाने का कोई मध्य मार्ग, क्योंकि दोनों ही महत्वपूर्ण पहलू हैं। (संवाद)