गाज़ा में शांति-स्थापना हेतु ट्रम्प की ताज़ा योजना
अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के प्रयासों से गाज़ा को लेकर नई शांति योजना घोषित की गयी है। कहा जा रहा है कि राष्ट्रपति ट्रम्प व इज़रायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू द्वारा संयुक्त रूप से प्रस्तावित यह योजना गाज़ा में सैन्य संघर्ष को समाप्त करने और इस क्षेत्र में दीर्घकालिक शांति स्थापित करने के लिए बनाई गई है। इस नई शांति योजना के अंतर्गत मुख्य रूप से गाज़ा को ‘आतंक मुक्त’ और उग्रवाद-मुक्त क्षेत्र बनाने का लक्ष्य है, जिससे पड़ोसी देशों के लिए कोई खतरा न रहे और वहां पुनर्निर्माण व विकास कार्य शुरू हो सके। इस प्रस्तावित योजना के तहत इज़रायल अपनी सेना को चरणबद्ध तरीके से गाज़ा से हटाएगा, बशर्ते दोनों पक्ष यानी इज़रायल और हमास इस योजना को स्वीकार करें। सार्वजनिक रूप से दोनों पक्षों द्वारा इस योजना को स्वीकार करने के 72 घंटे के भीतर सभी बंधकों की रिहाई की बात कही गई है। प्रस्तावित समझौते के अनुसार हमास के कब्ज़े में रखे गये बंधकों की रिहाई के बाद इज़रायल भी करीब 250 फिलस्तीनी कैदियों सहित अन्य सैकड़ों गिरफ्तार गाज़ा वासियों को रिहा करेगा। इसके अतिरिक्त गाज़ा में अस्थायी रूप से एक अंतर्राष्ट्रीय शासी बोर्ड बनेगा, जिसकी अध्यक्षता स्वयं डोनाल्ड ट्रम्प करेंगे। इसमें पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर भी शामिल होंगे। शांति योजना के अनुसार हमास के जो सदस्य शांतिपूर्वक साथ रहने की शपथ लेंगे, उन्हें तो मुआफी दी जाएगी जबकि अन्यों को सुरक्षित निकास या किसी इच्छुक देश में बसने का विकल्प मिलेगा।
अमरीका व इज़रायल द्वारा गाज़ावासियों हेतु लाई जा रही इस शांति योजना पर मुस्लिम देशों के रवैये में एक राय नहीं है। सऊदी अरब, जॉर्डन, संयुक्त अरब अमीरात, ़कतर, मिस्र, इंडोनेशिया और पाकिस्तान जैसे कई अन्य ‘अमरीका-परस्त’ मुस्लिम राष्ट्रों ने इन शांति प्रयासों का समर्थन किया है तो ईरान और तुर्की जैसे देश इस योजना को ‘अधूरी’ और फिलिस्तीना के हक में अपर्याप्त मान रहे हैं। इन देशों का मानना है कि इस योजना से फिलिस्तीनी स्वायत्तता और हमास की भूमिका सीमित हो जाती है। ईरान का मत है कि वह ‘न्यायपूर्ण संतुलित और स्थायी समाधान’ के पक्ष में है और गाज़ा व फिलिस्तीन संबंधी किसी भी योजना में फिलिस्तीनी जनता की इच्छाओं व आकांक्षाओं की अनदेखी उचित नहीं है। ईरान ने इस योजना को ‘चौंकाने वाला’ और ‘फिलिस्तीनियों के जबरन विस्थापन का प्रयास’ बताया है जबकि कई अरब देश ऐसे भी हैं जिन्होंने अमरीका के नेतृत्व वाली इस प्रक्रिया के स्थायित्व को लेकर संदेह ज़ाहिर किया है। नेतन्याहू का मानना है कि इस योजना से उनके युद्ध के उद्देश्य पूरे होंगे। इस योजना के लागू होने से बंधकों की वापसी, हमास की सैन्य क्षमताओं का विघटन, और भविष्य में गाज़ा से कोई खतरा न रहना सुनिश्चित हो सकेगा। साथ ही नेतन्याहू ने यह चेतावनी भी दी कि अगर हमास इस समझौते को अस्वीकार करता है तो ‘इज़रायल खुद कार्रवाई करेगा’, यानी वह अपने सैन्य अभियान को और भी तेज़ कर सकता है।
ऐसे में एक बड़ा सवाल यह है कि गाज़ा जनसंहार के दोषी व गाज़ा शांति को लेकर पूरी दुनिया की अनदेखी करने वाले नेतन्याहू को आखिर इस नई शांति योजना के लिये अचानक क्यों राज़ी होना पड़ा। यह समझने के लिये हमें पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र महासभा के सत्र पर नज़र डालनी होगी। दरअसल न्यूयार्क स्थित संयुक्त राष्ट्र महासभा में पिछले दिनों उस समय अजीब दृश्य देखने को मिला, जब विश्व के इस सबसे प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय मंच से इज़रायल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू अपना भाषण देने के लिये जैसे ही खड़े हुये, उसी समय उनके भाषण का विश्व के अधिकांश देशों द्वारा बहिष्कार किया गया। 193 देशों की इस महासभा में सैकड़ों देशों के प्रतिनिधि व राजनयिक अपनी कुर्सियां छोड़कर सदन से बाहर चले गए जिससे महासभा का काफी बड़ा हिस्सा खाली हो गया। उस समय नेतन्याहू के चेहरे पर परेशानी व असहजता के भाव साफ नज़र आ रहे थे। नि:संदेह यह दृश्य इज़रायल की वर्तमान आक्रामक नीतियों, विशेषकर उसके द्वारा गाज़ा में जारी सैन्य अभियान और इससे होने वाले जनसंहार, के प्रति वैश्विक असहमति व आक्रोश का प्रतीक बना था। इस घटना के उस व्यापक निहितार्थ को भी समझने की ज़रूरत है जिसमें इज़रायल व नेतन्याहू के सन्दर्भ में अंतर्राष्ट्रीय कानून, नैतिकता, राजनीति और भविष्य की वैश्विक व्यवस्था पर सवाल खड़े होते हैं। नेतन्याहू के भाषण के दौरान केवल अरब, मुस्लिम और अफ्रीकी देशों के प्रतिनिधि ही बाहर नहीं गए, बल्कि अनेक यूरोपीय व पश्चिमी देशों के राजनयिकों ने भी नेतन्याहू के भाषण के विरोध में कक्ष छोड़ दिया। दरअसल यह बहिष्कार इज़रायल की अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर बढ़ते अलगाव और दुनिया की नज़रों में इज़रायल के अलग-थलग होने जैसी स्थिति की ओर संकेत करता है।
नेतन्याहू इस समय अमरीका संरक्षित विश्व के सबसे बड़े शक्तिशाली राष्ट्राध्यक्ष के रूप में स्थापित हो चुके हैं। उन पर गाज़ा युद्ध में जनसंहार व युद्ध अपराध करने के आरोप हैं। नेतन्याहू के विरुद्ध अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक अदालत ने नवंबर 2024 में वारंट जारी किया जिसमें उन्हें ‘युद्ध अपराध’ और ‘मानवता के खिलाफ अपराध’ का आरोपी ठहराया गया है। नेतन्याहू अंतर्राष्ट्रीय अदालत के सभी 125 सदस्य देशों की यात्रा के समय कानूनी तौर पर हिरासत में लिये जा सकते हैं। उधर गाज़ा व फिलिस्तीन की धरती पर कब्ज़ा करने के खिलाफ इज़रायल को दुनिया के कई प्रमुख देश एक के बाद एक झटके पर देते जा रहे हैं। मिसाल के तौर पर जिस फिलिस्तीन को इज़रायल स्वतंत्र राष्ट्र मानने को तैयार नहीं, उसी फिलिस्तीन को फ्रांस, यूके, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया जैसे कई पश्चिमी देशों ने गत दिनों स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता दे दी। दरअसल संयुक्त राष्ट्र महासभा में पिछले दिनों नेतन्याहू के भाषण के दौरान कई देशों द्वारा किये गये बहिष्कार की घटना ने जहां नेतन्याहू को ट्रम्प द्वारा प्रस्तावित नई शांति योजना को स्वीकार करने के लिये मजबूर किया है, वहीं कई प्रमुख पश्चिमी देशों द्वारा फिलिस्तीन को स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता दिया जाना भी नेतन्याहू के लिये एक बड़ा झटका साबित हुआ है।