देश में गहरी हो रही आर्थिक असमानता की खाई

भारत की असली ताकत इसके 140 करोड़ आम लोग हैं। ये किसान, मज़दूर, छोटे दुकानदार और युवा हैं, जिनके सपनों पर आज भी धूल जमी हुई है। अगर यही लोग सशक्त होंगे, तभी भारत सचमुच शक्तिशाली बनेगा। असमानता केवल आर्थिक समस्या नहीं है, यह लोकतंत्र, समाज और देश की स्थिरता के लिए खतरा है। भविष्य का भारत केवल 1,687 अरबपतियों का नहीं, बल्कि करोड़ों मेहनतकश लोगों की उम्मीदों और संघर्ष से बना भारत होना चाहिए। विकास का दावा तभी सार्थक होगा, जब उसका लाभ सब तक पहुंचे।
भारत आज दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में गिना जाता है। स्टॉक मार्केट रिकॉर्ड बना रहा है, कॉरपोरेट कम्पनियां अरबों-खरबों का कारोबार कर रही हैं और भारत अरबपतियों की संख्या में दुनिया के शीर्ष देशों में शामिल हो गया है, लेकिन इस चमक-दमक के पीछे एक गहरी सच्चाई छिपी है—देश में अमीर-गरीब की खाई पहले से कहीं अधिक चौड़ी हो चुकी है।
1 अक्तूबर, 2025 को एम-3-एम इंडिया और हुरुन रिच लिस्ट जारी की गई जिसमें 1,687 ऐसे भारतीय शामिल हैं जिनकी सम्पत्ति 1,000 करोड़ रुपए से अधिक है। इनकी कुल नेटवर्थ लगभग 167 लाख करोड़ रुपए है जो भारत की जीडीपी का लगभग आधा है। यह आंकड़ा केवल अमीरों की गिनती भर नहीं है, बल्कि पूरे आर्थिक और सामाजिक ढांचे पर सवाल खड़ा करता है।
अवसरों और जीवनशैली में भारी अंतर : आज एक ही देश में दो बिल्कुल अलग दुनिया मौजूद हैं। एक ओर हैं वे उद्योगपति जिनके पास अरबों-खरबों की सम्पत्ति, विदेशी हवेलियां और निजी जेट हैं। दूसरी ओर करोड़ों लोग हैं जो प्रतिदिन 200-300 रुपये की दिहाड़ी पर काम करते हैं, जिनके पास स्थायी नौकरी या पक्की छत तक नहीं है। करोड़ों किसान कज़र् के बोझ तले दबे हैं, मज़दूर शहरों की फैक्ट्रियों और निर्माण स्थलों पर पसीना बहाते हैं और युवा बेरोज़गारी से जूझ रहे हैं। महिलाओं को शिक्षा और रोज़गार के लिए अतिरिक्त संघर्ष करना पड़ता है। यह केवल आय का अंतर नहीं, बल्कि अवसरों और जीवन की गुणवत्ता का अंतर है।
लोकतंत्र पर असर : असमानता का असर पीढ़ी दर पीढ़ी चलता है। गरीब माता-पिता अपने बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं दिला पाते, नतीजा यह होता है कि अगली पीढ़ी भी गरीबी में जीवन व्यतीत करती है। युवाओं में निराशा और हताशा पैदा होती है और यही माहौल अपराध, नशाखोरी और हिंसा को जन्म देता है। शहरों में झुग्गी-झोपड़़ियों और अपराध दर का बढ़ना इसकी सीधी मिसाल है।
लोकतंत्र पर भी असमानता का असर गहरा है। राजनीति में पैसे की ताकत सबसे अहम बन चुकी है। चुनावी चंदा बड़े कॉरपोरेट्स से आता है और नीतियां अक्सर उनके हितों के हिसाब से बनती हैं। आम नागरिक का वोट बराबर है, लेकिन उसकी आवाज़ और असर लगातार कम होता जा रहा है। धीरे-धीरे लोकतंत्र ‘जनता का, जनता द्वारा, जनता के लिए,’ का नारा बदल कर ‘धनवानों का, धनवानों द्वारा, धनवानों के लिए’ हो रहा है। अगर यह असंतुलन बढ़ता गया तो लोकतंत्र पर भरोसा कमज़ोर हो सकता है।
विकास की गति पर असर : कुछ लोग मानते हैं कि अमीरों की सम्पत्ति से निवेश बढ़ेगा और रोज़गार पैदा होंगे, लेकिन सच्चाई यह है कि जब आम आदमी की जेब खाली होगी तो उसकी खरीद शक्ति कैसे बढ़ेगी?  खपत घटने पर उद्योगों पर भी विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। निवेश उन्हीं क्षेत्रों में होता है जहां अमीरों को मुनाफा दिखता है, न कि उन क्षेत्रों में जहां गरीब और मध्यमवर्ग की ज़रूरतें पूरी हों। यही कारण है कि विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) तक मान चुके हैं कि असमानता आर्थिक विकास की गति को धीमा कर देती है।
आंकड़े क्या कहते हैं : वर्ल्ड इनइक्वैलिटी लैब की 2024 रिपोर्ट के अनुसार भारत के शीर्ष 1 प्रतिशत लोगों के पास देश की 40.1 प्रतिशत सम्पत्ति है और उनकी आय हिस्सेदारी 22.6 प्रतिशत है। जबकि निचले 50 प्रतिशत वर्ग के पास केवल 6.4 प्रतिशत सम्पत्ति है यानी असमानता ऐतिहासिक उच्च स्तर पर पहुंच चुकी है। यह स्थिति केवल आंकड़ों तक सीमित नहीं, बल्कि सड़कों, गांवों और कस्बों में साफ देखी जा सकती है, जहां आलीशान मॉल और हाई-राइज़़ टावरों के बगल में झुगी-झोपड़ियां हैं।
नॉर्डिक देशों से सीखें : दुनिया के कई देशों ने साबित किया है कि असमानता को कम करना संभव है। नॉर्डिक देश—स्वीडन, नॉर्वे और डेनमार्क ने उच्च कर व्यवस्था और कल्याणकारी नीतियों से सभी नागरिकों को समान अवसर दिए। वहां शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं लगभग मुफ्त हैं और रोज़गार के समान अवसर उपलब्ध हैं।
समाधान : इस खाई को पाटने के लिए सबसे ज़रूरी है आम आदमी का सशक्तिकरण। हर बच्चे को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिले, इसके लिए सरकारी स्कूलों और कॉलेजों पुख्त प्रबंध किए जाएं। सस्ती और सुलभ स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराई जाएं, ताकि गरीब को इलाज के लिए कज़र् न लेना पड़े। छोटे उद्योगों, स्टार्टअप और स्वरोज़गार को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। महिलाओं को शिक्षा और रोज़गार के समान अवसर उपलब्ध हों। इंटरनेट और डिजिटल सेवाओं को गांव-गांव तक पहुंचाया जाना ज़रूरी है। अमीरों से उचित टैक्स लेकर उसका उपयोग गरीबों की शिक्षा और स्वास्थ्य पर किया जाना चाहिए। (अदिति)

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