सभ्यता और संस्कृति से दूर हो रही युवा पीढ़ी

वर्तमान में आधुनिकता की चकाचौंध में हमारी नई पीढ़ी सभ्यता और संस्कृति से भटक रही हैं। आज सभ्यता व संस्कृति को दृष्टिविगत करके युवा अपना जीवन-यापन कर रहे हैं। जीवन से संस्कारों का समाप्त होना दुष्प्रवृतियों में शामिल होना होता है। नैतिकता का पतन जीवन को हिंसा से जोड़ देता है। भौतिक उपलब्धियां कितनी भी महत्वपूर्ण क्यों न हों परन्तु सांस्कृतिक उपलब्धियां प्राचीन में किए गए कार्य से लिए गए अनुभव वर्तमान में सतत् आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त करती हैं । पुरातन उपलब्धियां महत्वहीन और निरर्थक हो गई हैं, यह सोचना सही नहीं है। अपने धर्म, सभ्यता व  संस्कृति के प्रति विमुख होना व्यक्ति को पतन की तरफ ले जाता है। 
धर्म वह है जो दूसरे का हित करते हुए आपको एक इच्छा इन्सान बना देता है।  प्रेम, दया व समानता की भावना  व्यक्ति को उदारवादी व सहिष्णु बना देती है। समय के साथ बहुत कुछ बदलता है पर ये कैसा समय है जहां हमारी युवा पीढ़ी अपनी सभ्यता और संस्कृति से दूर जा रही है। आजकल के बच्चे और माता-पिता के बीच के संबंध एक जटिल मोड़ पर हैं। एक तरफ माता-पिता अपने बच्चों के लिए प्यार और समर्थन का स्रोत होते हैं। वही दूसरी तरफ  बच्चे अपने माता पिता से अलग समझ और अपने दृष्टिकोण रखते हैं। आज की समस्या यह है कि हम अपनी नई पीढ़ी को धर्म, सभ्यता और संस्कृति की वैज्ञानिकता बता पाने में समर्थ नहीं बन पा रहे हैं और आज के बच्चे भी अपने से बड़ों की बातें नहीं सुन रहे हैं। संस्कार, सभ्यता और  संस्कृति उनको बोझ जैसी लग रही है। नई पीढ़ी पुरानी पीढ़ी से यह चाहती है कि उन्हें अपने फैसले लेने की स्वतंत्रता हो। वह अपने तरीके से अपने जीवन को जीना चाहती है। युवा पीढ़ी में नैतिक मूल्यों का स्तर तेज़ी से गिर रहा है जिससे समाज में अपराध और तनाव भी बढ़ रहा है। बड़ों के प्रति सम्मान और आदर की भावनाएं लगातार घट रही हैं। 
घर में रिश्तेदारों का आना उनका सम्मान और उनकी सेवा करना आज के बच्चे बोझ समझ रहे हैं। पहले कोई घर में कोई आ जाता था तो हमारे संस्कार में था, हम उन्हें  अतिथिदेव मानते थे। लोग उनकी सेवा में लग जाते थे। आज घर में कोई बाहर से या सगे रिश्तेदार ही आ जाते हैं तो अधिकांश बच्चे चिढ़ जाते है। वे अपने समय का घंटे भर भी उन्हें नहीं देना चाहते हैं। किसी से कोई मतलब न रखते हुए स्वयं के लिए जीना चाहते हैं। वे चाहते हैं कोई भी उनकी स्वतंत्रता में बाधा न बने। अधिकांश युवा रिश्तेदारों से दूर-दूर तक मतलब नहीं रखना चाहते। रिश्ते प्यार के ऐसे बंधन होते हैं जिसमें प्यार व सम्मान अंतर्मन से जुड़े होते हैं। जब रिश्तों के प्रति ऐसी भावनाएं समाप्त हो जाती हैं तो वह बोझ ही लगने लगते हैं।संस्कार एक जीवनशैली है। यह एक दो दिन की चीज़ नहीं है, निरंतर ग्रहण करके स्वयं को निखारने का एक गुण है। यह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को संस्कारित करने की सतत् प्रक्रिया है। वर्तमान में नैतिक शिक्षा लगातार घट रही है। संस्कार अध्ययन की चीज नहीं बल्कि अनुकरण की एक प्रक्रिया है। (युवराज)

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