भविष्य की राजनीति की दिशा तय करेंगे बिहार के चुनाव

मौसम बहुत करीब है ‘साहिल’ चुनाव का,
यूं ही नहीं है हम पे इनायत का सिलसिला।
—साहिल कलमनूरी 

इस समय बिहार विधानसभा के चुनाव देश भर में सबसे अधिक चर्चा का विषय हैं और ये चुनाव सचमुच ही इतने महत्वपूर्ण हैं कि इनका परिणाम भारत की भावी राजनीति की ‘दशा तथा दिशा’ निर्धारित करेगा। ये चुनाव आर.एस.एस. तथा भाजपा की अंतरिक राजनीति को भी बहुत प्रभावित करेंगे। हालत यह है कि बिहार चुनाव के तुरंत बाद ही 2026 की पहली छमाही में असम, केरल, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु तथा पुड्डुचेरी के विधानसभा चुनाव होंगे। फिर इसके बाद 2027 में तो उत्तर प्रदेश, गुजरात जैसे बड़े राज्यों के साथ पंजाब, उत्तराखंड, हिमाचल, गोवा तथा मणिपुर विधानसभा के चुनाव भी आ जाएंगे। यह स्पष्ट है कि बिहार चुनाव के परिणाम इस सभी चुनावों को प्रभावित करेंगे तथा एन.डी.ए. या ‘इंडिया’ गठबंधन के हक या विरोध में वृत्तांत बनाने का कार्य करेंगे। शायद यही कारण है कि बिहार चुनाव जीतने के लिए सत्तारूढ़ एन.डी.ए. गठबंधन एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा रहा है। हालांकि चुनाव आयोग का विशेष गहन पुनरीक्षण (एस.आई.आर.) प्रक्रिया को भी विपक्ष ने एन.डी.ए. द्वारा चुनाव जीतने की कोशिश से जोड़ा है। परन्तु चुनावों से बिल्कुल पहले मुख्यमंत्री महिला रोज़गार योजना के नाम पर बिहार की 1 करोड़ 21 लाख महिलाओं के खाते में 10-10 हज़ार रुपये सीधे डाले जाने को तो विपक्ष द्वारा सरकारी पैसे के वोट खरीदने की कोशिश तक करार दे दिया गया है। 
समझा जाता है कि भाजपा की गुजरात लाबी तथा आर.एस.एस. के बीच ‘संगठन पर कब्ज़े’ की लड़ाई का फैसला भी बिहार विधानसभा के चुनाव परिणाम ही करेंगे। यदि भाजपा यह चुनाव फिर जीत गई तो भाजपा का नया अध्यक्ष प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तथा गृह मंत्री अमित शाह की मज़र्ी का बनेगा, नहीं तो आर.एस.एस. की ही चलेगी। बिहार के परिणाम ‘इंडिया’ गठबंधन को मज़बूत या कमज़ोर करने के भी समर्थ होंगे। इसीलिए ही ‘इंडिया’ गठबंधन भी इन चुनावों में कोई कसर नहीं छोड़ रहा। जहां इन चुनावों में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी तथा आम आदमी पार्टी को भाजपा विरोधी वोट बांटने वाली पार्टियां कहा जा रहा है, वहीं प्रशांत किशोर पर भी ‘इंडिया’ तथा एन.डी.ए. दोनों गठबंधन भी यही आरोप लगा रहे हैं।
तरनतारन विधानसभा का उप-चुनाव
नि:संदेह बिहार विधानसभा के चुनाव परिणाम देश की राजनीति की ‘दशा तथा दिशा’ निर्धारित करने वाले होंगे, परन्तु हमारे लिए पंजाब का तरनतारन उप-चुनाव भी बहुत महत्वपूर्ण है, जो कुछ सीमा तक पंजाब की राजनीति तथा स्थानीय राजनीतिक पार्टियों के भविष्य की ‘दशा तथा दिशा’ तय कर सकता है। 
नि:संदेह आम तौर पर विधानसभा उप-चुनावों में सत्तारूढ़ पार्टी की ही जीत होती है, क्योंकि राजनीतिक, प्रशासनिक दबाव, सरकारी तंत्र, पैसा तथा अन्य बहुत कुछ सत्तारूढ़ पार्टी के पक्ष में होता है। पंजाब में ‘आप’ सरकार बनने के बाद उप-चुनाव के परिणाम हमारे सामने ही हैं। इसलिए यदि तरनतारन उप-चुनाव आम आदमी पार्टी जीत जाती है तो इसका पंजाब की राजनीति पर बहुत व्यापक प्रभाव नहीं पड़ेगा, परन्तु यह चुनाव  ‘आप’ को 2027 के चुनावों के लिए थोड़ा उत्साहित अवश्य करेगा, क्योंकि जीत तो जीत है, परन्तु यदि ‘आप’ यह चुनाव हार जाती है तो यह प्रदेश की राजनीति में तूफान खड़ा कर सकती है। वैसे यह चुनाव अकाली दल बादल तथा अकाली दल (वारिस पंजाब दे) का भविष्य भी तय करेगा, क्योंकि अकाली दल (पुनर-सुरजीत) तो प्रत्यक्ष रूप में चुनाव लड़ ही नहीं रहा। हालांकि शुरुआती रिपोर्टें तो यह प्रभाव ही दे रही हैं कि तरनतारन में मुख्य मुकाबला आम आदमी पार्टी तथा अकाली दल बादल के बीच होने की सम्भावना है, परन्तु कांग्रेस तथा अकाली दल (वारिस पंजाब दे) को मुकाबले से बाहर नहीं माना जा सकता, क्योंकि यहां अकली दल (वारिस पंजाब दे) का प्रभाव कितना ज़्यादा है, यह 2024 के लोकसभा चुनाव में स्पष्ट हो गया था और कांग्रेस भी इस चुनाव में शायद लुधियाना पश्चिमी उप-चुनाव के परिणाम से सबक लेकर इस बार एकजुट होकर चुनाव लड़ने की कोशिश करेगी। समझा जाता है कि यदि अकाली दल (वारिस पंजाब दे) का उम्मीदवार भाई अमृतपाल सिंह की भांति कोई लहर बनाने के समर्थ सिद्ध हुआ तो स्थिति बदल भी सकती है। अभी बहुत समय शेष है। हां, यह चुनाव इस सिख बहुल क्षेत्र में यह फैसला करेगा कि कौन-सा अकाली दल भविष्य में सिखों में स्वीकार्य होगा। वैसे पूर्व मंत्री अनिल जोशी का कांग्रेस में जाना कांग्रेस के लिए लाभदायक हो सकता है। उनका तरनतारन के हिन्दू हलकों में काफी प्रभाव है। इस चुनाव का परिणाम 2027 के आम विधानसभा चुनावों में भाजपा तथा अकाली दल के समझौते की स्थिति भी स्पष्ट कर सकता है। हां, इस चुनाव में भाजपा जीत की दौड़ से काफी पीछे दिखाई दे रही है, परन्तु वह अपना वोट प्रतिशत बढ़ाने तथा नया केडर खड़ा करने की लड़ाई लड़ रही है।
यह बिल्कुल ठीक है कि किसी पार्टी की पिछली कारगुज़ारी उसके आगामी चुनाव में में जीत-हार की कसौटी नहीं हो सकती। इसी तरनतारन विधानसभा क्षेत्र में 2022 के विधानसभा चुनाव के समय का वोट पैट्रन तथा 2024 के लोकसभा चुनावों का वोट पैट्रन कितना तेज़ी से बदला था, को दोखते यही कहा जा सकता है कि जीत-हार वक्ती हालात, उम्मीदवार की विश्वसनीयता, दबाव, लालच, चुनाव लड़ने का सामर्थ्य, तत्काल तथा स्थानीय कारणों के अतिरिक्त अन्य भी कई बातों पर निर्भर करती है। वैसे पाठकों के लिए तरनतारन विधानसभा क्षेत्र में 2022 के विधानसभा चुनाव तथा 2024 के लोकसभा चुनाव के समय की स्थिति को देखता को देखना काफी दिलचस्प हो सकता है। 
2022 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी 52469 वोट लेकर विजयी रही थी, परन्तु यही आम आदमी पार्टी 2024 में इसी क्षेत्र से 18,298 वोट लेकर तीसरे पर पहुंच गई थी जबकि 2022 में 39,232 वोट लेकर दूसरे नम्बर पर रहने वाला अकाली दल 2024 में सिर्फ 10896 वोट से चौधे नम्बर पर पहुंच गया था। हां, कांग्रेस के वोट ‘आप’ तथा अकाली दल के मुकाबले 2024 में कम घटे थे। 2022 में तरनतारन विधानसभा क्षेत्र से 26,460 वोट लेकर तीसरे स्थान पर रहने वाली कांग्रेस 2024 के लोकसभा चुनाव में चाहे लगभग 6 हज़ार वोट कम ले सकी थी, परन्तु इस बार वह तीसरे से दूसरे स्थान पर आ गई थी। 2024 में खडूर साहिब लोकसभा सीट जीतने वाले आज़ाद उम्मीदवार भाई अमृतपाल सिंह इस विधानसभा सीट से भी 44,703 वोट लेकर पहले नम्बर पर रहे थे। हां, यह दिलचस्प है कि चाहे भाजपा ने 2022 में तरनतारन से सिर्फ 1132 वोट लिए थे और वह नोटा से भी पिछे 6वें स्थान पर ही थी, परन्तु 2024 को लोकसभा चुनाव में तरनतारन क्षेत्र से भाजपा ने 8105 वोट प्राप्त किए और वह 5वें स्थान पर थी। अत: यह बात तो साफ एवं स्पष्ट है कि पहले प्राप्त किए गये वोट नये चुनाव में जीत-हार का स्पष्ट आधार नहीं माने जा सकते। लोग हालात, वृत्तांत तथा उम्मीदवार की विश्वसनीयता से भी प्रभावित होते हैं। अब इस चुनाव में तो बाढ़ से हुए नुकसान तथा इसमें लोगों की मदद करने वाले लोगों के प्रभाव के भी असर-अंदाज़ होने के आसार हैं। यह देखनेयोग्य होगा कि सत्तारूढ़ पार्टी कितनी शिद्दत से चुनाव लड़ती है और किस-किस तरह के हथकंडे अपनाती है और यह भी देखने की बात होगी कि कौन-सी पार्टी सत्तारूढ़ पार्टी का दबाव झेलने तथा जवाब में सफल रणनीति अपनाने के समर्थ होगी।    वैसे विगत कई चुनावों से देश भर में एक बात सिद्ध हो रही है कि यहां चुनाव जीतने के लिए अब सिदक, शराफत तथा ईमानदारी की ज़रूरत कम है,अपितु मक्कारी, झूठ, फरेब, लालच तथा दबाव के साथ-साथ पैसे की अधिक ज़रूरत है जो कि अफसोसजनक है। अब्दुल हमीद अदम के शब्दों में :
सिदक-ओ-व़फा ने मुझ को किया है बहुत खराब
मकर-ओ-रिया ज़रूर सिखा दीजिये मुझे।
इस तरह प्रतीत होता है कि चुनावी राजनीति का सिर्फ एक ही सिद्धांत रह गया है कि हमारा कोई सिद्धांत नहीं है।
जवंदा की मौत, सरकार तथा लावारिस पशु
पंजाबी के प्रसिद्ध गायक राजवीर सिंह जवंदा की युवावस्था में हुई मौत ने लगभग प्रत्येक पंजाबी को झिंझोड़ा भी है और ़गम़गीन भी किया है, परन्तु जिस प्रकार वह लावारिस पशुओं के समूह का शिकार हुआ और सड़क दुर्घटना में जान गंवा बैठा, इस स्थिति ने इस मामले पर एक बहस शुरू कर दी है कि सड़कों पर घूमते लावारिस पशु किसानों की फसलों का नुकसान ही नहीं करते, अपितु प्रतिदिन हादसों का कारण भी बनते हैं। लोग सवाल करने लगे हैं कि सरकार इन पशुओं जिनमें कुत्तों तथा बंदरों के समूह भी शामिल हैं, का कोई समाधान क्यों नहीं करती, जबकि सरकार वर्षों से इनकी सम्भाल के नाम पर ‘काऊ सैस’ भी ले रही है।  मुख्यमंत्री भगवंत मान जो स्वयं एक कलाकार रहे हैं, यदि वह अपने कलाकार साथियों के प्रति ईमानदार हैं तो वह स्वर्गीय जवंदा को सच्ची श्रद्धांजलि सिर्फ लावारिस पशुओं का स्थायी समाधान करके ही दे सकते हैं, परन्तु यदि सरकार अब भी ऐसा नहीं करती तो लोगों को भी शांतिपूर्ण तथा लोकतांत्रिक तरीकों से इसके लिए आवाज़ उठाने के लिए स्थानीय सभा सोसायटियां बनानी चाहिएं। इस अवसर पर राजवीर सिंह जवंदा को साकिब लखनवी का यह शे’अर समर्पित है : 
बड़े शौक से सुन रहा था ज़माना,
तुम्हीं सो गए दास्तां कहते कहते। 

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