सर्दी-खांसी के मौसम में कफ-सिरप से क्यों मचा है हाहाकार ?

मध्यप्रदेश और राजस्थान में एक दर्जन से अधिक बच्चों की खांसी का सिरप पीने से मौत हो चुकी है। कम से कम दो दर्जन से अधिक लोग सिरप पीने से बीमार होकर उपचार करा रहे हैं और देश में एक प्रकार की सिरप इमरजेंसी लग गई है। राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, दिल्ली, झारखंड, पंजाब, बंगाल, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु, केरल में खांसी के सिरप के मामले को लेकर सरकारें एक्शन मोड में हैं। अभी तक कौन जिम्मेदार है, इस पर कोई ठोस निर्णय नहीं हुआ है। हां, सस्पेंड-सस्पेंस का खेल बच्चों की मौत के साथ ही फिर से सामने आया है। ठोस काम अगर हुआ है, तो बस यह कि सिरप पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। कई कंपनियों से स्पष्टीकरण मांगते हुए दोषियों के खिलाफ जांच आरंभ कर दी गई है।
सस्पेंड-सस्पेंस के खेल के दौरान कायसन कंपनी की सभी दवाओं को रोक दिया गया है। अब स्थिति यह हो गई है कि इसमें फार्मासिस्ट को भी दोषी करार दिया जा रहा है। मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री ने मृतक बच्चों के परिवार वालों को चार-चार लाख रुपए देने की बात कही है। यह बात समझ में नहीं आ रही है कि बच्चों को दवा फर्मासिस्ट ने दी या फिर किसी चिकित्सक ने लिखी। अगर चिकित्सक ने लिखी तो क्या उन्हें मैडीकली नियम पता नहीं थे। अगर फर्मासिस्ट ने दी तो चिकित्सक उस वक्त कहां थे जब बच्चे को उपचार के लिए चिकित्सा केन्द्र में लेकर आया गया था। केन्द्र सरकार ने सभी को स्वास्थ्य सेवा देने की सोच के तहत हाल में जीएसटी से मैडीकल बीमा को मुक्त कर दिया है। इससे पहले उसने आयुष्मान योजना के माध्यम से भी सेहत के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताई थी। राज्यों में भी सरकारें सभी को दवा के अभाव में जीवन न जाए इसलिए मुफ्त दवा योजना चला रही हैं। राजस्थान में गहलोत शासन में प्रशंसा पायी तथा देश के लिए मॉडल योजना बताई जाने वाली मुफ्त दवा योजना खासी चर्चित रही। अब इसके विपरीत यही चर्चित योजना कुचर्चित हो रही है। इस वक्त सबसे अधिक बदनामी खांसी के सिरप की हो रही है। 
नि:शुल्क दवा योजना देश में गरीबों के लिए ही नहीं मध्यम वर्गीय अथवा उन सभी के लिए भी राहतकारी सिद्ध हो रही है, जो सरकारी अस्पतालों से दवा लेते हैं या फिर वहां छोटी-मोटी बीमारी के उपचार के लिए जाते हैं। सर्दी-जुकाम, खांसी, बुखार, पेट दर्द आदि बीमारियों में सीएचसी या पीएचसी में जाकर दवा लेना आम बात है, लेकिन अब यहां पर मिलने वाली मुफ्त की दवाएं जानलेवा साबित हो रही हैं। राजस्थान में खांसी की दवा डेक्साट्रोमेथारपन हाइड्रोब्रोमाइड नामक सिरप जिसे खांसी के उपचार में प्रयोग किया जाता है, से तीन बच्चों की मौत तथा मध्यप्रदेश में 11 बच्चों की मौत हो गई। इतना ही नहीं, खुद राजस्थान में तो सीएचसी प्रभारी, एंबुलेंस कर्मी भी इसके प्रयोग से गंभीर रूप से बीमार हो गए। इधर उत्तराखंड में भी खांसी की दवाओं के प्रति प्रशासन अलर्ट हुआ और उसने अपर आयुक्त एवं औषधि नियंत्रक के माध्यम से पूरे प्रदेश में खांसी की दवा के सैंपल लेने के आदेश दे दिए। इसके बाद लगभग आधे देश में खांसी के सिरप, जो सरकारें मुफ्त में वितरित करती हैं, उनके वितरण पर रोक लगा दी गई है।
यहां प्रश्न यह है कि आखिर ऐसी दवाएं जो प्राणघातक हैं, किस प्रकार से मरीजों को दी जा रही हैं? साथ ही ड्रग कंट्रोलर, चिकित्सा विभाग तथा दवा कंपनियों की जांच करने वाले जिम्मेदार कहां हैं जो मानकों पर खरा उतरने के बाद, कई जांच प्रक्रिया से गुजरने के बाद ही किसी दवा को अस्पतालों में वितरण के लिए कहते हैं? राजस्थान, मध्यप्रदेश में संबंधित विभागीय मंत्री-मुख्यमंत्री ने जो कार्रवाई आरंभ की है, वह बस यह कि दो साल से छोटे बच्चों को दवा न दी जाए, चार साल के बच्चों को बिना चिकित्सक के लिखे सिरप नहीं दिये जाएं। डॉक्टर को एपीओ करने, ड्रग कंट्रोलर को निलंबित करने का काम त्वरित गति से करते हुए यह बताया जा रहा है कि दोनों सिरप किस आधार पर वितरित हो रहे थे, इसकी जांच हो रही है। शर्मनाक यह है कि इस माह में सर्वाधिक पर्व हैं और आतिशबाजी के साथ ही हानिकारक धुएं से खांसी के मरीजों की संख्या बढ़नी तय है। ठंडक भी आरंभ हो गई है और कोहरे के कारण पर्यावरण प्रदूषण भी खांसी के मरीजों की संख्या बढ़ायेगा। 
कहने का तात्पर्य यह है कि जब खांसी के मरीज एकदम से अस्पतालों में आएंगे तो उन्हें खांसी की ही दवा नहीं मिलेगी, और अगर मिलेगी तो कौन सी? यह बात सभी जानते हैं कि इन दिनों में बच्चों को सबसे अधिक खांसी होती है। कई बच्चे तो कूकर या काली खांसी से परेशान रहते हैं और ऐसे में जब दवाएं नहीं मिलेंगी, तब क्या होगा। ऐसा लगने लगा है कि खांसी और खांसी की दवा के मामले में अब सिरप इमरजेंसी जैसा माहौल हो जाएगा। सवाल है आखिर क्यों? दरअसल खांसी का सिरप बनाने वाली कंपनी केयसंस की जो दवाएं मुफ्त में सरकारें देती हैं, उनके कई सैंपल पहले ही से फेल थे। विशेषज्ञ बताते हैं कि अब तक कम से कम तीन दर्जन सैंपल फेल हो चुके हैं और ऐसा पहली बार हुआ हो, ऐसा नहीं है। जब से राज्य सरकारें मुफ्त दवाओं का वितरण कर रही हैं, तब से अकेले राजस्थान में ही करीब सात सौ सैंपल फेल हो चुके हैं। फिर किसके कहने पर दवाएं वितरित हो रही हैं, यह समझ से परे है। एक खास बात यह है कि नकली, घटिया, हानिकारक श्रेणी की दवाओं के लिए मानक भी तय नहीं है। राजस्थान के ड्रग कंट्रोलर राजाराम ने शून्य घटक दवा को नकली नहीं माना। यह बात और है कि बाद में राजाराम को सिर्फ इसी बात को लेकर सस्पेंड किया गया है; क्योंकि उन्होंने शून्य घटक दवा को नकली नहीं माना था। 
आखिर यह कफ-सिरप जानलेवा हो क्यों रहे हैं, और इनके बनाने में क्या घटक काम आते हैं? अफीम, मॉर्फिन आदि से बनने वाले सिरप में अब डेक्सट्रोमेथोरफान का प्रयोग किया जाता है। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह बहुत अधिक टॉक्सिक होता है। इसके प्रयोग से सर्वाधिक किडनी और ब्रेन प्रभावित होते हैं। इसके बाद यह किडनी की नसों को नष्ट करना आरंभ करता है और नतीजा है-मृत्यु। जहां तक बच्चों की मौत का सवाल है, तो बचाव करने के लिए प्रचारित किया जा रहा है कि बच्चों में से कुछ को निमोनिया था या दिमागी बुखार। अगर सिरप के इतिहास में जाएं तो पहले भी विभिन्न सिरपों ने भारत के दवा उद्योग को बदनाम किया है। जाम्बिया, उज्बेकिस्तान, वियतनाम में बच्चों की मौत के बाद सिरप को रोक दिया गया था और अब फिर से दम निकालने वाली खांसी का दुश्मन सिरप बच्चों की जान ले रहा है। ओवर द काउंटर दवाओं के प्रयोग का खतरनाक रूप और समस्या की विकरालता सिरप की कमी के कारण होने वाली मैडीकल इमरजेंसी के रूप में सामने आती है, तो उनसे किस तरह निजात पायी जाएगी, यह एक नई समस्या है?
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर

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