बिहार की चुनाव गतिविधियां
बिहार के चुनावों की घोषणा कर दी गई है। पूरे राज्य में दो चरणों भाव 6 नवम्बर और 11 नवम्बर को मतदान होगा और 14 नवम्बर को मतगणना होगी। कई माह पहले इस संबंधी बड़ी हलचल शुरू हो गई थी। विशेषतौर पर चुनाव आयोग द्वारा वोटर सूचियों के गहन संशोधन संबंधी घोषणा के बाद तो कांग्रेस ने इस संबंधी चुनाव आयोग पर अंगुली ही नहीं उठाई थी, बल्कि देशभर में राहुल गांधी के नेतृत्व में इस संशोधन संबंधी एक तरह से ज़िहाद भी खड़ा कर दिया गया था। सरकार पर ‘वोट चोर’ होने का गम्भीर आरोप भी लगाया था। देशभर में अपनी समुची इकाईयों द्वारा भी कांग्रेस ने इसके विरुद्ध जगह-जगह पर प्रदर्शन करने के लिए कहा था। वोटर सूची के इस गहन संशोधन के समय पर भी एतराज़ उठाये गये थे परन्तु चुनाव आयोग ने अपना फैसला नहीं बदला था और वह इन आरोपों के रू-ब-रू अपने स्पष्टीकरण भी देता रहा। यह मामला अलग-अलग अदालतों से होता हुआ सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंचा था, जिसने चुनाव आयोग को इस प्रक्रिया को आसान करने और इसमें सुधार करने के निर्देश भी दिए थे। मतदाताओं संबंधी यह संशोधन 22 साल के बाद किया गया था।
चुनाव तारीखों की घोषणा करने से पहले पटना में मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार के साथ दो अन्य चुनाव आयुक्त सुखबीर सिंह संधू और विवेक जोशी भी शामिल थे, जिन्होंने सभी पार्टियों के साथ विस्तार से बातचीत की थी। चुनाव तारीखों संबंधी उनके सुझाव लिये और स्पष्ट रूप में यह भी कहा कि वोटर सूची को सुनिश्चित किया जाना ज़रूरी है और इस अमल में हर सूरत में पारदर्शिता भी होनी चाहिए। यह भी कि सभी पार्टियों के एजेंट प्रत्येक बूथ पर मतदान के बाद चुनाव अधिकारियों से फार्म 17-सी प्राप्त करने के लिए अवश्य रुकें। इस फार्म में प्रति बूथ कुल मतदाताओं तथा कुल हुए मतदान की संख्या का ब्यौरा दर्ज होता है। चुनाव आयोग ने यह भी कहा कि प्रत्येक मतदान केन्द्र में पार्टियों के एजेंटों का होना आवश्यक हैं, इलैक्ट्रॉनिक मशीनों पर मतदान के समय उम्मीदवार की रंगीन तस्वीर दिखाई देगी और उनका नाम मोटे अक्षरों में लिखा होगा। आयोग ने यह भी दावा किया कि बिहार में नई तकनीकों के माध्यम से पारदर्शिता बढ़ाने के लिए प्रत्येक कदम उठाया जा रहा है। डिजिटल प्लेटफार्म पर मतदाताओं तथा उम्मीदवारों के लिए चुनाव संबंधी सूचनाएं एक ही स्थान पर उपलब्ध होंगी। बिहार के चुनावों को देश भर में बेहद दिलचस्पी से देखा जा रहा है। यह देश का एक बड़ा राज्य है। नितीश कुमार विगत लम्बे समय से अलग-अलग गठबंधन बदल कर यहां प्रशासन चलाते आ रहे हैं। आजकल वह भाजपा के सहयोगी हैं।
कांग्रेस तथा राष्ट्रीय जनता दल ने भी राहुल गांधी तथा तेजस्वी यादव के नेतृत्व में एक प्रकार से अपना सब कुछ दांव पर लगा रखा है। विगत समय में केन्द्र तथा राज्य सरकार ने बिहार के लोगों को लुभाने के लिए अलग-अलग योजनाओं के तहत महिलाओं, बेरोज़गार युवाओं तथा कई अन्य वर्गों के लोगों के लिए एक तरह से अपने खज़ाने का मुंह खोल दिया है, जिससे उन्हें यह उम्मीद है कि ऐसी जन-लुभावन घोषणाओं से वह अपना पलड़ा भारी कर सकेंगे। इसके बावजूद आज भी बिहार की राजनीति अधिकतर जातिवाद पर ही आधारित है, जिसने एक तरह से लोकतांत्रिक भावना को उल्टा घुमाए रखा है। इसी कारण ही कभी जात-पात से ऊपर उठकर राजनीति करती रहीं पार्टियां भी आज जातियों का सहारा लेने के लिए मजबूर हुई दिखाई देती हैं। नि:संदेह बिहार चुनाव के परिणाम दूसरे राज्यों की विधानसभाओं के बाद में होने वाले चुनावों पर कुछ न कुछ प्रभाव अवश्य डालेंगे तथा राष्ट्रीय स्तर पर देश के राजनीतिक माहौल संबंधी भी संकेत देंगे।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द