क्या नकली बारिश से असली समस्या का समाधान हो सकता है ?
वायु प्रदूषण से हताश देश की राजधानी दिल्ली पर नकली बारिश करवा कर हवा साफ करने का प्रयास विफल ही रहा। याद रहे कि लगभग डेढ़ महीने पहले जयपुर (राजस्थान) के निकट बीते दो दशक से पूरी तरह सूखी जमवा रामगढ़ की झील को भरने के लिए कृत्रिम बारिश करवाने का प्रयोग विफल ही रहा था। वहां कई कई बार ड्रोन उड़ाये गए और चार बार असफल रहने के बाद नाममात्र की बूंदें ही गिरी जिसने झील को गीला तक नहीं किया। पहले दिल्ली सरकार दीपावली के ठीक अगले दिन कृत्रिम बादल से पानी बरसाने की बात कर रही थी और यह होता तो तेजाबी बारिश की अधिक संभावना थी। कैसी विडम्बना है कि समाज और सरकार दोनों के स्तर पर वायु प्रदूषण कम करने के कोई प्रयास तो किए नहीं जाती, इसके विपरीत जब आतिशबाज़ी के धुएं से दम घुटने लगा तो तकनीक की बदौलत एक छद्म प्रयास किया गया।
दिवाली के बाद से दिल्ली के लोग जिस हवा में सांस ले रहे हैं, वह न केवल उनकी उम्र कम कर रही है, बल्कि विभिन्न गंभीर बीमारियों के इलाज पर खर्च होने के कारण जेब भी हलकी कर रही है। सालों से चर्चा होती रही हैं कि इस शहर को गैस चैम्बर बनाने में वाहनों, अनियोजित निर्माण कार्यों से उड़ती धूल बड़ा कारण है। पटाखों और आतिशबाज़ी ने इसमें रासायनिक ज़हर को जोड़ दिया। इस तरह से हवा को दूषित होने से रोकने के लिए कोई स्थायी समाधान नहीं ढूंढा जा रहा। ऐसे में नकली बादलों का भ्रम एकबारगी आंकड़ों में चाहे हवा साफ दिखा दे, लेकिन वास्तव में इस समस्या का समाधान कठिन दिखाई दे रहा है। जिस कृत्रिम बारिश का दावा किया जा रहा है, उसकी पूरी तकनीक को समझना ज़रुरी है। इसके लिए हवाई जहाज़ से सिल्वर आयोडाइड और कई अन्य रासायनिक पदार्थों का छिड़काव किया जाता है, जिससे सूखी बर्फ के कण तैयार होते हैं। असल में सूखी बर्फ ठोस कार्बन डाईऑक्साइड ही होती है। सूखी बर्फ की यह खासियत होती है कि इसके पिघलने से पानी नहीं बनता और यह गैस के रूप में ही लुप्त ओ जाती है। यदि परिवेश के बादलों में थोड़ी भी नमी होती है तो यह सूखी बर्फ के कणों पर चिपक जाती है और इस तरह बादल का वजन बढ़ जाता है, जिससे बारिश हो जाती है।
इस तरह की बारशि के लिए ज़रूरी है कि वायुमंडल में कम से कम 40 फीसदी नमी हो तो थोड़ी-सी बारिश हो जाती है। इसके साथ यह खतरा बना रहता है कि वायुमंडल में कुछ उंचाई तक जमा स्मॉग और अन्य छोटे कण फिर धरती पर न आ जायें। साथ ही सिल्वर आयोडाइड, सूखी बर्फ के धरती पर गिरने से उसके सम्पर्क में आने वाले पेड़-पौधे, पक्षी और जीव-जन्तु ही नहीं, नदी-तालाब आदि पर भी रासायनिक खतरे की आशंका बन जाती है। वैसे भी दिल्ली के आसपास जिस तरह सीएनजी वाहन अधिक है, वहां बारिश नया संकट ला सकती हैं। विदित हो सीएनजी दहन से नायट्रोजन ऑक्साइड और नाइट्रोजन का ऑक्सीजन के सम्पर्क में आने से आक्साईड आफ नाइट्रोजन का उत्सर्जन होता है। चिंता की बात यह है कि आक्साईड आफ नाइट्रोजन गैस वातावरण में मौजूद पानी और ऑक्सीजन के साथ मिल कर तेज़ाबी बारिश कर सकती है ।
यह वैश्विक रूप से प्रामाणिक तथ्य हैं कि नकली तरीके से बारिश करवाना कई बार बहुत भारी पड़ता है, फिर उस दिल्ली-एनसीआर में, जहां कुछ मिनिट की बारिश से सड़कों पर जाम लग जाता है और यही जाम तो दिल्ली के हवा में सबसे अधिक ज़हर घोलता है।
समझना होगा कि कई बार अधिक कृत्रिम बारिश हो जाने से बाढ़ जैसी स्थिति बन सकती है। गत वर्ष दुबई और पास के अरब देशों में अचानक हुई अधिक बारिश और बाढ़ का कारक वहां कृत्रिम बारिश को भी माना गया। यही नहीं किसी एक क्षेत्र में इस तरह की बारिश से दूसरे क्षेत्रों में सूखा पड़ सकता है। कृत्रिम बारिश हवा के पैटर्न और तापमान में अचानक बदलाव ला सकती है। इससे कई संक्रामक रोगों के वायरस उपजने की संभावना बन सकती है। एक बात और, इस तरह की बारिश से जलवायु परिवर्तन की गति तेज़ होने की प्रबल आशंका है। यह जल-चक्र में बदलाव का कारण भी बन सकता है ।
देश की राजधानी के गैस चैंबर बनने में 43 प्रतिशत हिस्सेदारी धूल-मिट्टी की है। दिल्ली में हवा की सेहत को खराब करने में वाहनों से निकलने वाले धुंए से 17 फीसदी, पैटकॉक जैसे पेट्रो-इंधन की 16 प्रतिशत भागीदारी है। इसके अलावा भी कई कारण हैं जैसे कूड़ा जलाना व परागण आदि। वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) और केंद्रीय सड़क अनुसंधन संस्थान द्वारा हाल ही में दिल्ली की सड़कों पर किए गए एक गहन सर्वे से पता चला है कि दिल्ली की सड़कों पर लगातार जाम व वाहनों के रेंगने से वाहन डेढ़ गुना ज्यादा इंधन की खपत कर रहे हैं। ज़ाहिर है कि उतना ही अधिक ज़हरीला धुआं यहां की हवा में शामिल हो रहा है।
वायुमंडल में ओज़ोन का स्तर 100 एक्यूआई (एयर क्वालिटी इंडेक्स) होना चाहिए। लेकिन जाम के कारण दिल्ली में यह आंकड़ा 190 तो सामान्य ही रहता है। वाहनों के धुएं में भारी मात्रा में हाईड्रो-कार्बन होते हैं और तापमान 40 के पार होते ही यह हवा में मिल कर ओज़ोन का निर्माण करने लगते हैं। यह ओज़ोन इंसान के शरीर, दिल और दिमाग के लिए हानिकारक होती है। इसके साथ ही वाहनों के उत्सर्जन में 2.5 माइक्रो मीटर व्यास वाले पार्टिकल और गैस नाइट्रोजन ऑक्साइड होते हैं, जिसके कारण वायु प्रदूषण से हुई मौतों का आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है।
एक बात और, वायु प्रदूषण अकेले दिल्ली की समस्या नहीं हैं, देश के सभी महानगर और राजधानियां सर्दी आते ही ज़हरीले धुएं से घुटने लगते हैं। दिल्ली में जो भी तरीका अपनाया, वह सारा देश बिना दूरगामी परिणाम जाने अपनाने लगता है। कोई भी का उठाने से पहले इसके व्यापक प्रभाव पर गहन अध्ययन करना ज़रूरी है। सबको मिल कर ही वायु प्रदूषण को नियंत्रित करना होगा।



