चुनावों का पहला चरण

बिहार के विधानसभा चुनावों को बेहद दिलचस्पी के साथ देखा जा रहा है, क्योंकि यहां, जहां दो बड़ी राष्ट्रीय पार्टियां भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस पार्टी चुनाव लड़ रही हैं, वहां लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व वाली पार्टी राष्ट्रीय जनता दल, जिसे इस समय लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी यादव चला रहे हैं और विपक्षी दलों के महागठबंधन द्वारा उन्हें मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में पेश किया जा रहा है, भी मैदान में हैं। दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी के सहयोगी जनता दल (यू) के मौजूदा मुख्यमंत्री नितीश कुमार एक बार फिर चुनाव मैदान में उतरे हैं। वह पिछले 10 वर्ष से प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिराजमान हैं। उनकी छवि अभी तक भ्रष्टाचार वाले पक्ष से विवादाग्रस्त नहीं है, परन्तु मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बने रहने के लिए अलग-अलग पार्टियों के साथ समझौता करने और तोड़ने के कारण इस बार उनकी छवि ज़रूर धूमिल हुई दिखाई दे रही है।
पिछले विधानसभा चुनाव में नितीश कुमार के जनता दल (यू) को चिराग पासवान के नेतृत्व वाली लोक जनशक्ति पार्टी ने बहुत नुक्सान पहुंचाया था, क्योंकि उस समय सीटों के विभाजन को लेकर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के साथ समझौता नहीं हो सका, जिस कारण चिराग पासवान ने नितीश की पार्टी के विरुद्ध अपने ज्यादातर उम्मीदवार खड़े कर दिए थे। इस कारण 2020 में पहले चरण में 121 सीटों पर हुए चुनावों में नितीश कुमार की पार्टी की सीटें कम होकर 23 रह गई थीं जबकि भाजपा को 32 सीटें और राष्ट्रीय जनता दल को 42 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। समूचे रूप से 2020 में कुल 243 सीटों में से जनता दल (यू) ने 45, भाजपा ने 80, हिन्दोस्तानी अवाम मोर्चा (एस.) ने 4, दूसरी तरफ महागठबंधन की पार्टियों में राष्ट्रीय जनता दल ने 77, कांग्रेस ने 19, सी.पी.आई. (एम.एल.) ने 11, सी.पी.आई. (एम.) ने 26, सी.पी.आई. ने 2, ओवैसी की पार्टी ने 5 सीटें जीती थीं। शेष सीटें कुछ छोटी पार्टियों तथा निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीती थीं। इस बार बड़ी कवायद के बाद चिराग पासवान भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के साथ मिलकर चुनाव लड़ रहा है। विधानसभा की कुल 243 सीटों में से भाजपा 101 सीटों पर और जनता दल (यू) भी 101 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। इसलिए इस बार चिराग पासवान को उसकी मांग के अनुसार 29 सीटें दी गई हैं। इस गठबंधन से जीतन राम मांझी के हिन्दोस्तानी अवाम मोर्चा और उपेन्दर पिशवाहा का राष्ट्रीय लोक मोर्चा भी इस गठबंधन में शामिल है।
दूसरी तरफ महागठबंधन में कांग्रेस दूसरी बार पार्टी के रूप में चुनाव लड़ रही है। अधिक सीटों पर लालू प्रसाद की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल ने अपने उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे हैं। इस गठबंधन में कई तरह की पार्टियां, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्कसिस्ट-लैनिनिस्ट), लिबरेशन कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्कसिस्ट) और मुकेश साहनी की विकासशील इन्सान पार्टी आदि शामिल हैं। इस बार ये चुनाव इस कारण भी अधिक दिलचस्प हो गए हैं, क्योंकि विगत लम्बी अवधि से राजनीतिक विश्लेषक के रूप में सक्रिय रहे प्रशांत किशोर भी चुनाव लड़ रहे हैं। उन्होंने पहले अलग-अलग समय में, देश की अलग-अलग पार्टियों के लिए चुनाव रणनीति बनाई थी, जो बड़ी सीमा तक सफल भी रही थी। इस बार प्रशांत किशोर ने वर्ष भर पहले अपनी बनाई जन सुराज पार्टी को मैदान में उतारा है, जिसने बिहार की सभी 243 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं। अभी तक भी इस बात का अनुमान लगाना कठिन प्रतीत होता है कि प्रदेश की राजनीति में यह नया दल किस गठबंधन को नुकसान और किसे लाभ पहुंचा सकता है। 
बिहार विधानसभा चुनाव का पहला चरण सम्पन्न हो गया है। इसमें 121 सीटों पर चुनाव करवाए गए हैं। पहले चरण में 64 प्रतिशत से अधिक मतदान हुआ। दूसरे चरण में 11 नवम्बर को 122 सीटों पर चुनाव करवाए जाएंगे। इस तरह चुनावों से पहले चुनाव मैदान पूरी तरह गर्माया हुआ था। उससे कई महीने पहले कांग्रेस के लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने चुनाव आयोग और भाजपा को वोट चोरी करने के लिए दोषी ठहराया था और देश भर में उसके विरुद्ध इस मामले पर प्रचार भी किया था। एक बार फिर राहुल गांधी ने हरियाणा के हवाले से मुड़ यह मुद्दा उठाया है। चाहे चुनाव आयोग ने उन्हें बार-बार कहा है कि वह लिखित रूप में इस संबंध में उनके समक्ष शिकायत दर्ज करवा सकते हैं या अदालत का दरवाज़ा खटखटा सकते हैं। ऐसा करने की बजाय राहुल गांधी ने राजनीतिक रूप से इस बात को मुद्दा बनाया है और देश भर की गलियों, बाज़ारों में इस संबंध में प्रचार भी किया है जो अभी तक जारी है, परन्तु चुनावों में इस अभियान का क्या प्रभाव होता है, देखने वाली बात होगी।
इन चुनावों में भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने केन्द्र और प्रदेश में अपनी-अपनी सरकारों के होते लोगों को लुभाने के लिए अधिक से अधिक गफ्फे बांटने का यत्न किया है। दूसरी तरफ तेजस्वी यादव ने जो महागठबंधन के नेता बन कर उभरे हैं, ने भी लोगों को लुभाने के लिए बड़े-बड़े वायदे किए हैं। इन चुनावों में भ्रष्टाचार और परिवारवाद के मुद्दे पूरी तरह उभर कर एक बार फिर सामने आए हैं परन्तु दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी पर धर्म के नाम पर राजनीति किए जाने के आरोप लगातार लगते रहे हैं, परन्तु इसके साथ-साथ लालू प्रसाद यादव के 10 वर्ष के जंगल राज कहे जाते प्रशासन को भी बिहार के लोग आज तक नहीं भूले। नि:संदेह नितीश कुमार ने जन-कल्याण योजनाओं के साथ-साथ प्रदेश के मूलभूत ढांचे के विकास के लिए बड़े काम किए हैं, परन्तु बेरोज़गारी का मामला अभी भी मुंह खोले खड़ा है, जिसने युवाओं के एक बड़े वर्ग में निराशा पैदा की है। इन चुनावों में सभी राजनीतिक पार्टियां एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा रही हैं और उन्होंने लोगों को यह भी विश्वास दिलाया है कि उनके सत्ता में आने पर वह बिहार का कायाकल्प करेंगे, जिसकी उम्मीद दशकों तक बिहार वासियों को लगी रही है। आज भी वे अपनी वोट के ज़रिए राजनीतिज्ञों से ऐसी ही मांग करते दिखाई दे रहे हैं।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द 

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