शिरोमणि कमेटी की कार्यशैली
शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के जनरल अधिवेशन में स. हरजिन्दर सिंह धामी को पुन: प्रधान चुन लिया गया है। इस चुनाव में उनके प्रति पहले से अधिक सदस्यों ने समर्थन देकर उन्हें एक बड़ी जीत दिलाई है। जहां तक स. धामी का संबंध है, उनका जीवन बेहद सादगी भरपूर है और वह प्रत्येक पक्ष से अपने उच्च आचरण के कारण जाने जाते हैं। यह उनका इस पद के लिए पांचवां चयन है। पहले 4 वर्ष उन्हें अनेक चुनौतियों में से गुज़रना पड़ा था। उन पर एक पक्ष के समर्थक होने के आरोप भी लगते रहे परन्तु उनके सदाचार पर किसी ने उंगली नहीं उठाई। विगत लम्बी अवधि में पंथक गलियारों में जो कुछ घटित होता रहा है, उससे निराश होकर एक समय उन्होंने अपने पद से इस्तीफा भी दे दिया था। बाद में यह इस्तीफा वापस लेने पर उन पर उंगलियां भी उठी थीं, परन्तु जिस योग्यता और ठहराव से उन्होंने दरपेश पंथक मामलों के समाधान का यत्न किया, इस कारण पिछले समय में उनकी शख्सियत का प्रभाव ज़रूर बढ़ा है। आज जिस तरह के हालात में से पंथ गुज़र रहा है, उसके दृष्टिगत आगामी समय में उन्हें और भी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, परन्तु इसके साथ ही उनसे और भी अधिक सार्थक भूमिका की भी उम्मीद की जाएगी।
सिख गुरुद्वारा एक्ट ब्रिटिश शासन के समय 1925 में बनाया गया था। समय के व्यतीत होने से इसमें अब बड़े संशोधन करने की ज़रूरत प्रतीत होती है। विशेष रूप से अलग-अलग तख्तों के सिंह साहिबान की नियुक्ति, सेवा और सेवामुक्ति संबंधी कोई पुख्ता विधि विधान बनाया जाना ज़रूरी है। प्रत्येक वर्ष जनरल हाऊस द्वारा प्रधान चुने जाने संबंधी भी पुन: विचार किए जाने की ज़रूरत है। विधान अनुसार शिरोमणि कमेटी का चुनाव 5 वर्ष बाद होना होता है। इसलिए चुने गए प्रधान के दोबारा चुनाव के समय संबंधी भी विचार किए जाने की ज़रूरत है। यह भी हो सकता है पांच वर्ष के आधे कार्यकाल के बाद प्रधान और उनकी टीम एक बार शिरोमणि कमेटी के जनरल हाऊस से पुन: विश्वास हासिल कर ले परन्तु प्रत्येक वर्ष पदाधिकारियों का चुनाव न हो। इस संबंधी कुछ धार्मिक शख्सियतों और बुद्धिजीवियों की एक कमेटी बना कर सुधारों के लिए और अधिक विचार किया जा सकता है, अर्थात पंथक पक्षों के साथ विचार-विमर्श करके एक साझी राय बना कर गुरुद्वारा एक्ट में संशोधन किया जा सकता है। शिरोमणि कमेटी का मौजूदा हाऊस ज्यादा समय पहले ही पूरा कर चुका है। परन्तु लगातार ऐसे हालात पैदा होते रहे, जिनमें कमेटी के चुनाव नहीं करवाए जा सके। विगत काफी समय से अलग-अलग पक्षों द्वारा यह मांग उठाई जाती रही है। इसके लिए सरकारी तौर पर भी कुछ यत्न किए जाते रहे। गुरुद्वारा कमिशन के नवीकरण के बाद वोट बनाने की प्रक्रिया भी शुरू की गई थी परन्तु अभी तक भी यह पूरा कार्य आधा-अधूरा दिखाई देता है, जिससे भाईचारे में व्यापक स्तर पर निराशा पैदा हुई है।
यह बात विगत अवधि में महसूस की जाती रही है कि इस धार्मिक संस्था में राजनीतिक हस्तक्षेप बढ़ता रहा है, जिससे इस संस्था की समूची भावना को ठेस पहुंचती रही है। यही कारण है कि यह लगातार विवादों में भी घिरी रही है। जिससे इसकी समूची गतिविधियों पर बड़ा प्रभाव पड़ा है। नि:संदेह आज की कमेटी समय व्यतीत कर चुकी है। नए चुनावों से ही पंथ का यह पुन: विश्वास हासिल कर सकती है। इसके लिए केन्द्र सरकार पर बड़ा दबाव डालने की ज़रूरत होगी। शिरोमणि कमेटी के नए चुनाव जहां भाईचारे में लोकतांत्रिक भावनाओं को परिपक्व करेंगे, वहीं इसमें नव प्राण डालने में सहायक होंगे। इन सभी चुनौतियों के बावजूद एडवोकेट हरजिन्दर सिंह धामी को इस चुनाव के लिए बहुत शुभकामनाएं देते हैं और उम्मीद करते हैं कि वह समूचे पंथ की भावनाओं के अनुसार इस संस्था को चलाने में ज़रूर सहायक होंगे।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

