बिहार में अब ‘बेचारगी’ के नाम पर वोट की दरकार
बिहार चुनाव की तिथि जैसे-जैसे करीब आती जा रही है, वैसे-वैसे बिहार में हो रहे चुनाव प्रचार में भी तरह-तरह के रंग भरते देखे जा रहे हैं। बिहार की राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की नितीश सरकार ने सत्ता का पूरा लाभ उठाते हुये आदर्श आचार संहिता लागू होने से कुछ ही मिनट पहले कई ऐसी महत्वपूर्ण घोषणाएं और धन वितरण किए जिनसे वहां के मतदाताओं के एक वर्ग विशेषकर महिलाओं को लाभ पहुंचा। जैसे महिला उद्यमी योजना के तहत 10,000 रुपये की पहली किस्त 6 अक्तूबर, 2025 यानी चुनाव की तारीफ की घोषणा होने से कुछ ही मिनट पहले हस्तांतरित की गयी। नितीश सरकार द्वारा यह दावा किया गया कि इससे 21 लाख महिलाएं लाभान्वित होंगी। इसके अतिरिक्त सामाजिक सुरक्षा पेंशन में वृद्धि, मासिक पेंशन 400 से बढ़ाकर 1100 करने की आदि की घोषणा गई। इसी तरह विपक्षी महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव ने भी लोकलुभावन योजनाओं का पिटारा खोल कर रख दिया। राज्य के हर परिवार को एक सरकारी नौकरी सहित महिलाओं को लुभाने के लिए भी बड़े ऐलान किये। उन्होंने वादा किया है कि सत्ता में आने पर आजीविका दीदियों को 30,000 रुपये मासिक वेतन वाली सरकारी नौकरी मिलेगी। साथ ही, ब्याज़-मुक्त लोन और अन्य सुविधाएं भी दी जाएंगी। ऐसी और भी कई लोकलुभावन घोषणाएं विपक्षी गठबंधन की ओर से की गयी हैं। बेशक ऐसी घोषणायें मतदाताओं को आकर्षित करने की एक बड़ी रणनीति का हिस्सा हैं।
परन्तु सत्तारूढ़ राजग के बिहार विधानसभा के सबसे बड़े घटक दल भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेताओं द्वारा चुनाव प्रचार में कुछ अलग ही रंग भरने की कोशिशें की जा रही हैं। बड़ा आश्चर्य है कि लगभग दो दशक से सत्ता में रहने वाला राजग आज भी बिहार वासियों को लालू राज के दौर का कथित जंगल राज याद दिला रहा है? खासकर भाजपा के स्टार प्रचारक शोले फिल्म की तज़र् पर बिहार के मतदताओं को याद करा रहे हैं कि राजग गया तो प्रदेश में गुंडा राज स्थापित हो जायेगा। यह बात तब कही जा रही है जबकि आज भी बिहार में सरे आम अपहरण की घटनाएं हो रही हैं। इसी वर्तमान चुनाव में राजनीतिक लोगों की हत्याएं हो रही हैं। अस्पताल में अपराधियों द्वारा दिन दहाड़े भर्ती मरीज़ की हत्या की गई है। पूरे राज्य में भ्रष्टाचार अपने चरम पर है। शराब बंदी के बावजूद तीन-चार गुणा दरों पर शराब की होम डिलिवरी की जा रही है। परन्तु ऐसी अनेक नाकामियों के बाद भी वोट, लालू के 20 वर्ष पुराने कथित गुंडा राज को याद दिला कर मांगा जा रहा है?
इसके अलावा क्या प्रधानमंत्री, तो क्या गृह मंत्री जैसे भाजपाई स्टार प्रचारक, सभी अपनी पार्टी का वही सधा सधाया विद्वेषपूर्ण राग अलाप रहे हैं। महागठबंधन पर  ‘तुष्टिकरण’ का आरोप लगा रहे हैं तो कभी उन पर ‘घुसपैठियों’ को संरक्षण देने का इल्ज़ाम लगा रहे हैं। 
बिहार की सत्ता में सबसे बड़ी भागीदारी निभाने के बावजूद आज भी जिस भाजपा के पास अपना कोई भी राज्य स्तरीय नेता तक न हो, जिसने आज तक साफ शब्दों में अपना मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित न किया हो, वह पार्टी कभी नेहरू को कोस कर तो कभी भावनात्मक बातें कर राज्य के लोगों के शिक्षा, बेरोज़गारी, स्वास्थ्य व कानून व्यवस्था जैसे मूल मुद्दों से ध्यान भटकाने का प्रयास कर रही है। स्वयं जिस पार्टी के प्रदेश के सबसे बड़े नेता व बिहार के निवर्तमान उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी की नकली डिग्री, उन पर बार-बार अपना नाम बदलने यहां तक कि उन पर सामूहिक हत्याएं करने जैसे आरोप विरोधियों द्वारा संवाददाता सम्मेलन में लगाये जा रहे हों, उस भाजपा के मंच से स्वयं प्रधानमंत्री मोदी लोगों को यह बता रहे हैं कि राहुल व तेजस्वी ज़मानत पर घूम रहे हैं।
और अब चुनाव करीब आते-आते तो प्रधानमंत्री मोदी ने अपना चिर-परिचित ‘बेचारगी’ दिखाने वाला कार्ड भी खेलना शुरू कर दिया है। विधानसभा चुनाव के दौरान दरभंगा में कांग्रेस के मंच से उनकी दिवंगत मां के विरुद्ध किसी व्यक्ति के द्वारा अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया गया। इसी बात को याद दिला कर मोदी ने बिहार की एक सभा में भावुक होकर कहा कि ‘जो गालियां उनकी मां को दी गई हैं, असल में वो देश की हर मां का अपमान है।’ उन्होंने बार-बार इस अपमान का जिक्र किया और इसे चुनावी मुद्दा बनाते हुये वोट मांगे। इसी तरह मोदी पहले भी विभिन्न राज्यों में अपने अपमानों की पूरी सूची का ब्यौरा जनसभाओं में पेश करते रहे हैं। जैसे कब उन्हें ‘मौत का सौदागर’, बताया गया तो कब उन्हें ‘नीच’, ‘हिटलर’ या ‘गंदी नाली का कीड़ा’ ‘चोर’ या ‘रावण’ कहा गया। और यह अपमान की सूची गिनाने के साथ ही वह कहना नहीं भूलते कि जनता इन अपमानों का जवाब देगी।
उधर विपक्ष खासकर कांग्रेस के पास भी मोदी व अन्य भाजपा नेताओं द्वारा की गयी बदज़ुबानियों की लम्बी सूची है परन्तु कांग्रेस कम से कम वोट भुनाने के लिये जनसभाओं में उन शब्दावलियों को नहीं दोहराती कि कब मोदी ने 50 करोड़ की गर्ल फ्रेंड कहा तो कब ‘कांग्रेस की विधवा’ जैसा अशोभनीय शब्द इस्तेमाल किया। न ही कांग्रेस कभी इंदिरा गांधी व राजीव गांधी की शहादत पर वोट मांगती है, न ही वोट की खातिर जनता को बार-बार यह याद दिलाती है। परन्तु आज भी भाजपा की ओर से इसी तरह की अपमानजनक बातें की जा रही हैं। 
जैसे कि विगत 30 अक्तूबर को ही इसी बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान लखीसराय की एक रैली में गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि ‘इतने गुस्से से बटन दबाना कि करंट ‘इटली’ तक पहुंचे’। यही बात इसी अंदाज़ में अमित शाह पहले भी असम व छत्तीसगढ़ सहित अन्य राज्यों की चुनावी सभाओं में करते रहे हैं। गोया भाजपा के नेताओं के भाषणों में मुख्यत: नफरत, विद्वेष, दूसरों को भयभीत करना जैसे ये (कांग्रेसी) सत्ता में आये तो तुम्हारी भैंस खोलकर ले जायेंगे, तुम्हारा मंगलसूत्र लेकर बेच डालेंगे, दूसरे धर्म के लोगों की जनसंख्या बढ़ जाएगी जैसी बातें करते रहते हैं। परन्तु आश्चर्य तो तब होता है जबकि कभी मंच से ही अपना 56 इंच का सीना बताने वाले मोदी को ‘बेचारगी’ के नाम पर वोट की दरकार होती है। कहना गलत नहीं होगा कि बेचारगी के नाम पर वोट मांगना दरअसल मतदाताओं का ध्यान मूल मुद्दों से भटका कर उनसे वोट झटकने का एक अभिनयपूर्ण तरीका मात्र ही है, इसके सिवा और कुछ भी नहीं।



