गैर-ज़िम्मेदारी वाला घटनाक्रम

गेहूं और धान की फसलों की कटाई के बाद ज़मीन में अवशेष जलाने की घटनाएं पिछले कई दशकों से लगातार होती रही हैं। इनके बारे में निरंतर चर्चा भी होती रही है। समय-समय पर पूर्व सरकारों और संबंधित महत्वपूर्ण संस्थाओं द्वारा इस गम्भीर समस्या का हल निकालने के यत्न भी किये जाते रहे हैं। केन्द्र सरकार ने भी प्रदेश सरकारों को इस समस्या के हल के लिए किसानों को आवश्यक मशीनरी उपलब्ध कराने के लिए कई योजनाएं दी गई हैं। प्रदेश सरकार ने भी इस सिलसिले को रोकने के लिए अनेक योजनाएं बनाई हैं। इसके साथ-साथ किसान वर्ग को पूरी तरह जागरूक करने के लिए लगातार सूचनाएं भी प्रदान की गई हैं। यह भी कहा गया है कि पराली या नाड़ को जलाना प्रदेश और पूरे उत्तरी क्षेत्र को वातावरण के पक्ष से एक बेहद खतरनाक और गम्भीर स्थिति में ले जाता है। जिन स्थानों पर नाड़ और पराली जलाई जाती है, वहां आस-पास का वातावरण पूरी तरह दूषित हो जाता है, जिससे उन (उस क्षेत्र में रहने वाले लोगों) के परिवार और बच्चे बुरी तरह प्रभावित होते हैं।
इस बार भी पंजाब सरकार ने पराली न जलाने के लिए हर पक्ष से अपनी पूरी ताकत लगाई है। सैंकड़ों ही अधिकारियों और कर्मचारियों की इसको रोकने के लिए टीमें बनाई गईं और उनके द्वारा सैटेलाइटों द्वारा प्रभावित इलाकों और क्षेत्रों पर नज़र भी रखी गई परन्तु इस फैलती बीमारी पर काबू नहीं पाया जा सका। इस बारे में किसान वर्ग ने हर तरह के अनुशासन का पालन न करके पराली जलाने को प्राथमिकता दी और गैर ज़िम्मेदारी वाला ऐसा क्रम जारी रखा। समाचारों के अनुसार दो नवम्बर तक पंजाब में पराली जलाने के 2262 केस दर्ज किये गये। पंजाब में पराली जलाने के साथ समूचे प्रदेश में प्रदूषण फैल गया है। इसकी ज़द में गांव, कस्बे तो आए ही हैं, परन्तु मंडी गोबिन्दगढ़, पटियाला, जालन्धर, लुधियाना तथा अमृतसर जैसे महानगर भी इस धुएं में पूरी तरह घिर गए हैं। डाक्टरों ने तो यह परामर्श भी दे दिया है कि ‘स्मॉग’ (धुएं तथा हवा का मिश्रण) के कारण लोगों को सुबह की सैर से भी बचना चाहिए। मरीज़ों, बच्चों तथा बुज़ुर्गों को ऐसे हालात में घरों से बाहर निकलने से परहेज़ करने के लिए भी कहा गया है। प्रसिद्ध अस्पतालों के डाक्टरों ने भी यह दावा किया है कि पिछले दिनों में अस्थमा (दमा) तथा एलर्जी के मरीज़ों की संख्या में 25 प्रतिशत वृद्धि हुई है। दो नवम्बर को जालन्धर में प्रदूषण की मात्रा 319 दर्ज की गई थी, जो बेहद खराब श्रेणी में आती है। यही हाल लुधियाना, अमृतसर का है, जहां लोगों को दिन तथा रात दोनों समय बाहर न निकलने के लिए कहा गया है। उनकी ओर से इस प्रदूषण को लोगों के स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक बताया जा रहा है। 
पंजाब सरकार चाहे विगत वर्ष के मुकाबले पंजाब में आनुपातिक रूप में घटनाएं कम होने का दावा करती है, परन्तु हम प्रशासन को इस संबंधी पूरी तरह विफल ही मानते हैं। यह सुनिश्चित है कि यदि प्रत्येक वर्ग इसी प्रकार गैर-ज़िम्मेदारी से विचरण करता रहा तो समूचा राज्य स्वास्थ्य के पक्ष से और भी अधिक पिछड़ जाएगा। इसके मुकाबले हरियाणा सरकार की प्रशंसा की जानी चाहिए, जिसने बड़ी सीमा तक इस दुर्भाग्यपूर्ण रुझान को रोकने में सफलता हासिल की है। पंजाब के मुकाबले हरियाणा में पराली जलाने के मामलों में बेहद कमी आई है। ऐसा घटनाक्रम इस राज्य की छवि को और भी धूमिल कर देगा, जो कभी अपने स्वच्छ पर्यावरण तथा स्वस्थ लोगों के लिए जाना जाता था और जिस पर कभी पंजाबी गर्व भी करते थे। 

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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