वनडे क्रिकेट की सरताज बनकर भारत की बेटियों ने रचा इतिहास
कपिल देव (1983), सौरव गांगुली (2002) एमएस धोनी (2007, 2011 व 2013), रोहित शर्मा (2024 व 2025) के बाद अब हरमनप्रीत कौर को भारत के लिए आईसीसी की आठवीं ट्राफी उठाने का गौरव प्राप्त हुआ है, जिनमें से 2002 (श्रीलंका के साथ संयुक्त विजेता, बारिश की वजह से), 2013 व 2025 के खिताब चैंपियंस ट्राफी से संबंधित थे, 2007 व 2024 की जीत टी-20 विश्व कप में थीं और 1983, 2011 व अब 2 नवम्बर 2025 की शानदार कामयाबी ओडीआई वर्ल्ड कप की हैं। ये सभी सफलताएं भारत की क्रिकेट यात्रा में मील का पत्थर साबित हुई हैं। लेकिन जिस प्रकार भारत की बेटियों ने अपना नाम इतिहास में दर्ज कराया है, वह किसी परीकथा से कम नहीं है। लीग स्टेज में तीन मैच हारने पर लग रहा था कि हमारी टीम सेमीफाइनल में भी नहीं पहुंच पायेगी, लेकिन उसके बाद जो टीम ने असाधारण जोश व जज्बे का परिचय दिया, विशेषकर सेमीफाइनल में 7 बार की चैंपियन ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 339 रन की रिकॉर्ड चेज़ के दौरान, उससे यह उम्मीद तो प्रबल हो गई थी कि भारत अपना पहला महिला विश्व कप खिताब उठा लेगा, यही हुआ। फाइनल में भारत ने दक्षिण अफ्रीका को 52 रनों के प्रभावी अंतर से पराजित करके अपने सपने को हकीकत का रूप दिया। 
दरअसल, लीग स्टेज में दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया व इंग्लैंड से लगातार पराजित होने के बाद भारत ने रिकवरी का सिलसिला आरंभ किया अपनी दो सबसे भरोसेमंद बैटर्स- स्मृति मंधाना व प्रतीका रावल की बदौलत, जिन्होंने अपने-अपने व्यक्तिगत शतक लगाते हुए न्यूज़ीलैंड के खिलाफ पहले विकेट के लिए दोहरे शतक की रिकॉर्ड साझेदारी की और उसके बाद भारत ने मुड़कर नहीं देखा, खासकर इसलिए कि उसे हर मैच में कम से कम दो खिलाड़ी उल्लेखनीय व प्रभावी प्रदर्शन करने के लिए मिलते रहे, जैसे सेमीफाइनल में ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध जेमिमा रोड्रिग्स व हरमनप्रीत कौर की शानदार बल्लेबाज़ी। जेमिमा के नाबाद शतक को सुनील गावस्कर ने महिला क्रिकेट का सर्वश्रेष्ठ शतक बताया, जो उन्होंने देखा और फाइनल जीतने पर उनके साथ जैमिंग करने का भी वायदा किया। 
भारत 2005 व 2017 के बाद तीसरी बार महिला ओडीआई विश्व कप के फाइनल में पहुंचा था और दक्षिण अफ्रीका के लिए यह पहला फाइनल था। इस प्रतियोगिता के इतिहास में यह पहला अवसर था, जब ऑस्ट्रेलिया व इंग्लैंड में से कोई भी फाइनल में नहीं पहुंचा था, जबकि ये क्रमश: 7 व 4 बार के विजेता हैं। फाइनल से पहले विश्व कपों में भारत व दक्षिण अफ्रीका की टीमें तीन बार आमने सामने हुई थी और हर बार दक्षिण अफ्रीका ने ही बाज़ी मारी थी लेकिन फाइनल का अलग ही दबाव होता है, विशेषकर जब बोर्ड पर अच्छा स्कोर चेज़ करने के लिए लगा दिया गया हो। गौरतलब है कि ओडीआई व टी-20 के जो पिछले सात विश्व कप हुए हैं (दोनों पुरुष व महिला वर्ग) उनमें छह में (2023 को छोड़कर) पहले बल्लेबाज़ी करने वाली टीम ने जीत दर्ज की थी। इसलिए इसे दक्षिण अफ्रीका की गलती समझना चाहिए कि उसने टॉस जीतकर भारत को पहले खेलने का अवसर दिया, जबकि सेमीफाइनल में उसने इंग्लैंड को पहले बल्लेबाज़ी करने के बाद 123 रन के विशाल अंतर से हराया था।
बहरहाल, फाइनल में भारत की शानदार जीत का सेहरा एक बार फिर दो खिलाड़ियों के सिर बंधा- शेफाली वर्मा और दीप्ति शर्मा। शेफाली, जो टीम का हिस्सा नहीं थीं, को प्रतीका रावल के चोटिल होकर व्हीलचेयर पर पहुंचने के कारण सेमीफाइनल व फाइनल में खेलने का अवसर मिला। सेमीफाइनल में तो वह कुछ खास न कर सकीं कि 5 गेंदों पर 10 रन बनाकर आउट हो गईं, लेकिन फाइनल की रात को उन्होंने अपने नाम कर लिया, हमेशा के लिए। पहले तो उन्होंने 78 गेंदों पर अपनी चिर परिचित शैली में तेज़तर्रार 87 रन की पारी खेली, जिससे भारत अपना स्कोर 298 तक पहुंचा सका। फिर उन्होंने गेंदबाज़ी करते हुए 36 रन देकर 2 विकेट लिए और मैच का रुख भारत के पक्ष में कर दिया। इस तरह शेफाली ने पांच वर्ष पहले जो एमसीजी में टी-20 विश्व कप के फाइनल में भारतीय खेल प्रेमियों का दिल तोड़ा था, उसे भुला दिया। उस दिन भारत की उम्मीदें शेफाली पर टिकी हुई थीं, लेकिन वह जल्दी आउट हो गई थीं, जिससे भारत की पारी ताश के पत्तों की तरह बिखर गई थी और आखिरकार 85 रन से हमारी हार हो गई थी लेकिन नवी मुंबई के डीवाई पाटिल स्टेडियम में शेफाली ने भारतीय क्रिकेट की महानतम सफलताओं में से एक की पटकथा लिखी और उन्होंने आईसीसी प्रतियोगिता के फाइनल में सबसे कम आयु में अर्द्धशतक लगाने वाली खिलाड़ी बनीं। शेफाली को अपने हरफनमौला खेल के लिए ‘प्लेयर ऑ़फ द मैच’ के पुरस्कार से सम्मानित किया गया और उन्होंने अपना नाम उन भारतीय लीजेंड्स की सूची में दर्ज करा लिया, जो विश्व कपों के फाइनलों में ‘प्लेयर ऑ़फ द मैच’ रहे हैं- मोहिंदर अमरनाथ (1983), इरफान पठान (2007), एमएस धोनी (2011) और विराट कोहली (2024)। 
शेफाली के अतिरिक्त फाइनल की जीत का सेहरा दीप्ति शर्मा के सिर भी बंधा। आलराउंडर दीप्ति ने पहले तो बल्ले से प्रभावी अर्द्धशतक (58 रन) लगाया और फिर उन्होंने अपनी फिरकी गेंदों से जादू करते हुए मात्र 39 रन देकर 5 विकेट लिए। दीप्ति का पूरी प्रतियोगिता में ही प्रभावी प्रदर्शन रहा, उन्होंने सर्वाधिक 20 विकेट लिए और उन्हें एकदम सही प्लेयर ऑ़फ द टूर्नामैंट घोषित किया गया। हालांकि शेफाली व दीप्ति ही विशेषरूप से लाइमलाइट में रहीं, लेकिन व्यक्तिगत प्रदर्शनों के बावजूद क्रिकेट आखिरकार टीम गेम ही है, जो इसके आकर्षण को दोगुना कर देता है। भारत की बेटियां एकजुट होकर टीम की तरह खेलीं, जिसका अंदाज़ा अमनजोत कौर की फील्डिंग से लगाया जा सकता है। लक्ष्य का पीछे करते हुए दक्षिण अफ्रीका ने पहले विकेट के लिए 50 रन की साझेदारी कर ली थी और हरमनप्रीत की समझ में नहीं आ रहा था कि विकेट कहां से आये, तभी अमनजोत ने अकल्पनीय फील्डिंग का प्रदर्शन करते हुए सीधी थ्रो से तज्मिन ब्रिट्ज़ को रन आउट कर दिया और भारत के लिए विजय के द्वार खोल दिये। श्रीचरणी को इस विकेट पर खेलना आसान नहीं था और उन्होंने अन्नेके बाश को शून्य पर आउट करके यह साबित भी किया। हालांकि दक्षिण अफ्रीका की कप्तान ने सेमीफाइनल (169 रन) के बाद फाइनल में भी शानदार शतक (101 रन) लगाया, लेकिन भारत ने जो पहले विकेट की साझेदारी तोड़ने के बाद लगातार झटके दिये, उससे दक्षिण अफ्रीका उबर न सका। 
भारत वर्षों से इसी कामयाबी के लिए प्रयास कर रहा था। 2005, 2017 व 2020 में जीत के मुहाने तक पहुंचने के बावजूद वह विजय रेखा पार न कर सका था। आखिरकार बेटियों का निरंतर संघर्ष रंग लाया। इस तरह विश्व क्रिकेट को एक नया चैंपियन मिला और इस तरह भारतीय महिला क्रिकेट का सुनहरा अध्याय आरंभ हुआ। इस जीत की, कपिल देव के अनुसार, 1983 की जीत से तुलना करना दुरुस्त नहीं है; क्योंकि ये लड़कियां अधिक बेहतर, अधिक स्मार्ट हैं और अगले लेवल का क्रिकेट खेलकर इतिहास रचा है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 



