दो चेहरे वाले लोगों की दुनिया
जिनके बाप ने आज तक कभी मेडंकी भी नहीं मारी, उनके बेटे आज तीरन्दाज हो गए। लगता है लोग आजकल चेहरे पर चेहरा ओढ़ कर चलते हैं, और बाद में उनके लिए भी यह पहचान करना कठिन हो जाता है, कि उनका असल चेहरा कौन-सा है। अपने परिचय में वे अपनी नकली डिग्रियां लगाने के इतने अभ्यस्त हो जाते हैं, कि बाद में उनके लिए यह मानना भी कठिन हो जाता है कि उनकी डिग्री नकली है। लगता है जैसे वे इस डिग्री के साथ ही पैदा हुए थे।
दिलेरी के साथ इतना झूठ बोल दिया जाता है, कि बाद में उनके लिए यह साबित करना ही कठिन हो जाता है कि यह सच नहीं था। शायद ‘प्रामाणिक’ उन्हें बहुत सुविधाजनक होता है, और वे अपने सच को ही प्रामाणिक बनाने में पूरा ज़ोर लगाते हैं। जो फिर भी नहीं मानता, उसे झूठा करार दे देते हैं।
बिल्कुल यही बात उनके साहित्यकार बनने के दुस्साहस की है। अचानक एक दिन उन्हें लगता है कि वे उपन्यासकार या कवि हैं। कविता पर कविता या उपन्यास पर उपन्यास लिखे जाते हैं। जो उन्हें स्वीकार नहीं करता, उसे नासमझ या बदलाखोर कह कर अपनी विलक्षणता से वे एक कदम भी नहीं टलते। बल्कि इस विलक्ष्णता का एक प्रमाण यह है कि वे अपने सिवा किसी और को लेखक स्वीकार नहीं करते। उन्होंने इस प्रसिद्ध संवाद को सुधार दिया है, कि हम जहां खड़े हो जाते हैं, तो कतार वहीं से शुरू हो जाती है, बल्कि अब उनका नया संवाद यह है कि हम जहां से खड़े होते हैं, कतार वहां से ही खड़ी होती है, और वहां पर ही खत्म हो जाती है। आगे नाव न पीछे पगहा।
स्थापना, मंज़िल और सफलता का धृष्टता के साथ आज चोली-दामन का साथ हो गया है। क्षेत्र कोई भी हो, सफलता धृष्टता से ही मिलती है। इस धृष्टता में अपनी शान में खुद ही कसीदे पढ़ना शामिल हो जाता है। राजनीति का क्षेत्र है तो उनसे बड़ा दबंग और कोई नहीं। इसमें उनके भाषण लेखक, देसी बम्बइया फिल्मों का बहुत सहारा लेते हैं। उनके भाषण धमकी भरे संवादों से घिरे रहते हैं। आप लाख कहें कि आपने यह संवाद फलां फिल्म में सुने थे, लेकिन वे उसकी आमद को नकारते हुए अपने संवादों को मौलिक और नई ज़मीन तोड़ने वाला बताते हैं। बड़े नेता की पहचान ही यह है कि वह जनता के लिए जो भी अच्छा हुआ है, उसका तारणहार अपने आपको बना ले, और अपने भाषणों में इसका कर्त्ता अपने आप को कई बार बना दे।
जो सच नहीं है, जो कभी किसी ने पाया नहीं, उसे किसी हवाई घोड़े पर सवार करके आपके घर के द्वार के बाहर बांध दे, और फिर सबको इसका उत्सव मनाने की बात करे। भ्रष्टाचार को खत्म कर देना उसका प्रिय दावा है। प्राय: कह जाता है कि भ्रष्टाचार को शून्य स्तर पर भी सहन नहीं किया जाएगा, चाहे उसके अपने कारिन्दों के पास करोड़ों रुपये और उससे बरामद मूल्य की सम्पदा बरामद हुई हो।
यह सम्पदा कहां से आयी, इसका उसके पास एक ही जवाब है कि हम खानदानी रईस हैं। यह तो हमसे जलने वालों ने ऐसा चमत्कार किया कि बदलाखोरी करते हुए उन्होंने हमें कटघरे में खड़ा कर दिया।
लेकिन ये कटघरे भी बहुत दिन तक नहीं चलते। उनका केस तो उनके प्रशासन ने ही पेश करना है। नौसिखियों की तरह देर लगा कर केस पेश होता है, आधा-अधूरा या इतने विलम्ब से कि अदालत को उन्हें ज़मानत पर रिहा करना ही बन जाता है। बस, फिर तारीख पर तारीख का खेल चलने लगता है, और वे जमानत पाये हुए क्रांतिवारी हो जाते हैं।
आरोपित अभियुक्त नहीं होता, का स्वर्णिम सिद्धांत यहां चलता है, और वे अपने द़ागी दामन लेकर क्रांति के प्रांगण में और चुनावों में देश की प्रतिनिधि संस्थाओं को अपने द़ागीपन से भर देते हैं, यह कहते हुए कि यह तो उनके राजनीतिक विरोधियों का कारनामा है, जिसका उचित समय पर जवाब दे दिया जाएगा अर्थात जब उनकी बारी कुर्सी पर बैठने की आएगी।
फिलहाल तो आप महंगाई नियंत्रण के सूचकांक पढ़िये, इस उम्मीद के साथ कि महंगाई नियंत्रित हो गई है, और अब अगली मौद्रिक नीति में धन्ना सेठों के निवेश को प्रोत्साहन देंगे। नीतियां आती हैं, जाती हैं, लेकिन सड़क का आदमी सौ दो सौ रुपये किलो मटर खरीदते हुए सोचता है, कि क्या उसके पूर्वजों ने भी ऐसे मटर खाये थे, जो इस दौर में कभी सोने के भाव बिकेंगे।



