धान की काश्त कम करने हेतु किसानों को दिए जाएं विकल्प
धान की काश्त का रकबा कम होने की बजाय प्रत्येक वर्ष बढ़ रहा है। हालांकि पंजाब सरकार द्वारा धान की काश्त के रकबे को कम करने के लिए बहुत ज़ोर दिया जा रहा है। सब्ज़ इंकलाब से पहले 1960-61 में धान की काश्त का रकबा 2.27 लाख हेक्टेयर था, जो अब बढ़ कर 32.5 लाख हेक्टेयर हो गया है।
किसान धान की काश्त का रकबा इसलिए भी बढ़ाते हैं क्योंकि यह खरीफ की मुख्य फसल है और कोई अन्य फसल इसके बराबर लाभ नहीं देती। देशभर में भी धान का रकबा भी तेज़ी से बढ़ रहा है। इस वर्ष खरीफ के सीज़न में रकबा बढ़ कर 44.2 मिलियन हेक्टेयर हो गया, जो गत वर्ष 43.6 मिलियन हेक्टेयर था। चावल का ज़खीरा भी सरकारी खरीद एजेंसियों के पास उपभोक्तओं की ज़रूरत से चार गुना अधिक पड़ा है।
इस वर्ष अगस्त से अक्तूबर तक पहले बारिश, फिर बाढ़, फिर चाइना वायरस (पौधे के बौनेपन की बीमारी), हल्दी रोग तथा अन्य बीमारियों ने पैदावार में भारी कमी लाकर धान के उत्पादन को कम कर दिया है। धान की काश्त को कम करके और बासमती की काश्त बढ़ाकर फसली विभिन्नता लाने में कुछ सफलता मिली थी। बासमती की काश्त के अधीन लगभग 7 लाख हेक्टेयर रकबा हो गया था। पंजाब के जी.आई. ज़ोन में होने के कारण यहां उत्पादित बासमती उपभोक्ताओं की पसंद बनी और दूसरे देशों को निर्यात होने लगी। भारत से निर्यात की जा रही कुल बासमती का हरियाणा को मिला कर पंजाब का 40 प्रतिशत योगदान है। इस तरह 40 हज़ार करोड़ रुपये से अधिक की विदेशी मुद्रा अर्जित हो रही है। लेकिन अब इस वर्ष बासमती की फसल बारिश और बीमारियों के कारण प्रभावित होने से इसकी गुणवत्ता कम हो गई है और किसानों को गत वर्ष के मुकाबले मूल्य भी कम मिल रहा है। बासमती का एम.एस.पी. न होने के कारण किसान मंडियों में आढ़तियों और मिल मालिकों के रहम पर हैं। आगामी वर्षों में बासमती विभिन्नता के रूप में कितनी सफलता प्राप्त करती है, यह देखने वाली बात होगी। विदेशों, खाड़ी के देशों और ईरान आदि जहां बासमती का निर्यात किया जाता है, वहां इसकी मांग बढ़ रही है और घरेलू खपत में भी यह अधिक मात्रा में इस्तेमाल हो रही है। किसान इसकी काश्त के लिए रकबे को बढ़ाने के लिए आगामी वर्षों में कितना उत्साहित होते हैं, यह भी देखने वाली बात होगी। आई.सी.ए.आर. द्वारा पूसा बासमती-1121 एवं पूसा बासमती-1509 तथा पंजाब कृषि विश्वविद्यालय द्वारा नई किस्में जैसे पी.बी.-1692, पी.बी.-1885, पी.बी.-1847, पीबी-1979, पी.बी.-1985 आदि विकसित की गई हैं, जिनका उत्पादन अधिक है और समय पर बुवाई करके और अच्छा पालन-पोषण करके गुणवत्तापूर्ण चावल प्राप्त किया जा सकता है, जिसका मूल्य भी अधिक मिलेगा। आल इंडिया राइस एक्सपोटर्स एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष और बासमती के प्रसिद्ध निर्यातक विजय सेतिया का कहना है कि भारत में विशेष रूप से पंजाब और हरियाणा में बासमती की काश्त का भविष्य उज्ज्वल रहने की संभावना है।
भारत चावल निर्यात के मामले में सभी देशों में अग्रणी देश बन गया है। बहुत ज़्यादा मात्रा में यह चावल से विदेशी मुद्रा अर्जित करता है। चावल उत्पादन करने वाले देशों थाईलैंड और वियतनाम को भी भारत ने पीछे छोड़ दिया है। पंजाब केंद्र के चावल भंडार में 30 प्रतिशत तक का योगदान दे रहा है। इस वर्ष बारिश, बाढ़ और बीमारियों से हुए नुकसान और मंडी में किसानों को उचित मूल्य न मिलने के कारण भविष्य में चाहे धान की बजाय कोई अन्य फसल लगाने के लिए किसान अभी से चर्चा कर रहे हैं, परन्तु उन्हें कोई लाभदायक विकल्प नहीं मिल रहा। आवश्यकता है कि अनुसंधान मज़बूत हो और किसानों को कोई धान का लाभदायक विकल्प विकसित करके उपलब्ध किया जाए ताकि धान की काश्त का रकबा कम किया जा सके और प्रदूषण तथा पराली को जलाने की समस्या का भी समाधान हो सके।
भू-जल स्तर में गिरावट की समस्या को नियंत्रित करने के लिए बड़ी सीमा तक बासमती की काश्त और पंजाब प्रीज़रवेश्न आफ सब-स्वाइल वाटर एक्ट-2009 ने भी योगदान दिया है। बासमती की काश्त आमतौर पर जुलाई में की जाती है, जब बारिश शुरू हो जाती है और कई हालतों में तो यह एक बारिश से ही पक जाती है। धान की काश्त के रकबे को कम करने के लिए सरकार द्वारा किसानों को रियायतें देकर, अनुसंधान को मज़बूत करके, बासमती और धान के अलावा अन्य दूसरी फसलों की काश्त के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। सरकार द्वारा खरीफ के मौसम में किसानों को धान की बजाय बासमती, कपास-नरमा, सब्ज़ियों और फलों की काश्त बढ़ाने के लिए उत्साहित करना चाहिए। सब्ज़ियों की काश्त का रकबा बढ़ाने की कुछ सम्भावनाएं हैं, लेकिन इनकी कीमत में काफी उतार-चढ़ाव है।
जो कीमत उपभोक्ता अदा करते हैं, किसानों को उसका बहुत कम हिस्सा ही मिलता है। सब्ज़ियों के मंडीकरण की उचित व्यवस्था करके युवा किसानों द्वारा सब्ज़ियां सीधे उपभोक्ताओं को बेचने का प्रयास किया जाए ताकि उपभोक्ताओं द्वारा अदा गई पूरी कीमत, जो किसानों को नहीं मिलती, वह उन्हें मिले और सब्ज़ियों की फसल लाभदायक सिद्ध हो।



