विपक्ष के दनदनाते सवाल
सरकारें हमेशा कुछ न कुछ गोपनीय रखती हैं। खास कर युद्ध और आतंकवाद को देखते हुए। कायदे के अनुसार यह उनका हक भी है, लेकिन लगभग तीन महीने या इससे कुछ ज्यादा समय में पहलगाम और ऑपरेशन सिंदूर के मामले पर विपक्ष सरकार को बार-बार कटघरे में खड़ा कर सवालों के बाण चला रहा है। पाकिस्तान को सबक सिखाने के छोटे से युद्ध में भारत का कितना नुकसान हुआ, जैसे सवालों का कोई जवाब नहीं दिया गया, लेकिन जब दुश्मन आपकी प्रत्येक गतिविधि पर चौकस नज़र बनाए हुए है, तब विपक्ष द्वारा ऐसे कुछ प्रश्नों को अनदेखा कर दिया जाना चाहिए। देश के प्रधानमंत्री इस बात की तरफ संकेत भी कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि जो लोग, जो दल सरकार में रह चुके हैं, उन्हें व्यवस्थाओं के बारे में सब पता है। इसके बावजूद जिस तरह के सवाल पूछे जा रहे हैं। क्या उन्हें सवाल के लिए सवाल नहीं कहा जा सकता?
कायदे के अनुसार विपक्ष के पास सवाल बचे कौन से हैं? हम यह नहीं कह रहे कि विपक्ष को कठिन सवाल नहीं पूछने चाहिए। एक लोकतंत्र में विपक्ष की जगह है तो उसके सवालों की भी है, लेकिन विवेक और संतुलन नाम की चीज़ का भी ध्यान रखा जाना चाहिए। अब क्या विपक्ष के पास बिहार मतदाता सूची के सिवा कोई प्रश्न बचा है? विपक्ष को सजग और सचेत रहना चाहिए। विपक्ष के पास पिछले दस वर्ष से ज्यादा समय में, ऐसे कई विवादास्पद मुद्दे रहे हैं, जिनके आधार पर सरकार को घेरा जा सकता था, लेकिन तब इन्होंने कोई आवाज़ बुलंद नहीं की। इससे यह परिणाम निकलता है कि सत्ता पक्ष काफी मजबूत हो चुका है। राजनीति में उसके कुछ अभेद्य दुर्ग हैं जिन्हें विपक्ष तोड़ नहीं पाया। विपक्ष के मजबूत होने के साथ-साथ उसे दूरन्देश, समझदार और कुशल होना चाहिए। जब देश का सवाल हो, देश हित का मामला हो, सारे भेदभाव भुलाकर सरकार की पीठ ठोकनी चाहिए। प्रशंसा नहीं कर पा रहे या आपके राजनीतिक हित आपको इजाज़त नहीं देते तो कम से कम खामोश तो रहा जा सकता है। हां, दिशा भटकने पर आप ज़रूर गाइडलाइन जारी कर सकते हो।
एक बात और चुनाव जब भी करीब आते हैं। कोई भी पार्टी पराजय का मुख नहीं देखना चाहती। कई बार पराजय के डर से या चेतावनी की मुद्रा में राजनीतिक पार्टियां ज़रूरत से ज्यादा सजग और जागरूक होने का दिखावा करती है। आज तक चुनाव हरियाणा में हुए हों या महाराष्ट्र में विपक्ष केवल चिल्लाता रहा है कि मशीनें ठीक काम नहीं कर रहीं, चुनाव आयोग निष्पक्ष भूमिका का निर्वाह करने में असफल रहा है, लेकिन सबूत के तौर पर कुछ भी नहीं। जनता के सामने भी कुछ साबित नहीं किया जा सका। केवल बयान जारी होते रहे हैं कि मतदान चोरी का काम हो रहा है और सत्ताधारी पार्टी लोकतंत्र का हनन कर रही है। आज तक उच्चतम अदालत के सामने भी कोई सबूत नहीं दिया जा सका। कभी कहा गया कि हरियाणा में कुछ वोटिंग मशीनों में बैटरी का परसेंटज कम था। कुछ में नब्बे से ज्यादा, ऐसा कैसे हो सकता है, तो कभी कहा कि महाराष्ट्र में एक प्रत्याशी को अपना ही वोट नहीं मिला, यह कैसे सम्भव है? लेकिन इन सभी आरोपों के पुख्ता सबूत विपक्ष कभी नहीं दे पाया। महाराष्ट्र के मामले तो चुनाव आयोग सिद्ध भी कर चुका है कि उस प्रत्याशी को वोट मिले थे और यह जुबानी नहीं, वोटिंग मशीन द्वारा सिद्ध किया जा चुका है।



