बढ़ती ट्रेन दुर्घटनाओं के बीच रेलगाड़ियों में बिगड़ता सोशल व्यवहार

जिस गति से रेलवे तरक्की कर रहा है, उसी गति से रेलवे की बदनामी भी विकास कर रही है। अगस्त 2027 तक भारत में मुंबई से अहमदाबाद के बीच हाई स्पीड ट्रेन दौड़ने लगेगी। स्पीड होगी 320 किलोमीटर प्रति घंटे। इससे पहले वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेन, जो वर्ष 2019 से लगभग 130 किलोमीटर की स्पीड से दौड़ रही है, का जाल पूरे देश में बिछ गया है। राजधानी, शताब्दी, गरीब रथ, तेजस जैसी रेलें भी हैं। इस वर्ष मिजोरम में भी रेल पहुंच गई तथा भारत का स्वर्ग कश्मीर भी अब इससे सीधा जुड़ गया है। परन्तु शर्मनाक यह है कि जितनी गति इनकी रेल विकास नेटवर्क की है, उससे तेज़ गति यात्रियों के साथ हो रही बदसलूकी तथा बदइंतज़ामी की है। 
पहले जनरल डिब्बों में चोरी, झगड़े आम थे, पर अब यह आरपीएफ के सामने रेलवे स्टेशनों पर हो रहे हैं। सरकार को मुंह मांगे दाम देकर यात्रा करने वाला यात्री सबसे तेज दौड़ने वाली रेलगाड़ी में कब अपनी जान गंवा देगा, नहीं जानता। देश की जीवन रेखा कही जाने वाली रेलवे में जिसके कारण देश को हजारों करोड़ रुपए राजस्व मिलता है में लगने लगा है कि अब हम अपने सामान और सम्मान के प्रति खुद ही जागरूक और सावधान रहें। 
खैर, कोई बड़ी बात नहीं है कि रेल में सीट के आसपास यह लिखा मिले-यात्री अपने सामान के साथ अपने सम्मान की भी खुद ही रक्षा करें। यह जानने के लिए दो उदाहरण देख लीजिए। पहला उदाहरण है जबलपुर का। मध्यप्रदेश के जबलपुर रेलवे स्टेशन पर एक यात्री ने समोसा वेंडर से समोसा खरीदा और उसे यूपीआई से पेमेंट किया लेकिन भुगतान नहीं हो पाया और रेल ने चलने की सीटी दे दी। समोसा विक्रेता ने न सिर्फ अपने पैसे लेने के लिए यात्री का कालर पकड़ा बल्कि उसकी घड़ी उतार ली। अगर इसका वीडियो मोबाइलों पर नहीं दिखता, तो तय था कि यात्री अपनी इज्जत के साथ ही अपनी जान से भी हाथ धो बैठता। यह बात दीगर है कि उस विक्रेता को रेलवे अफसरों ने दंडित किया। एक घटना और है। हरियाणा के रेवाड़ी में एक महिला श्रद्धालु को स्टेशन पर टीसी द्वारा लात मारने, उसके पति को पीटने का मामला भी सुर्खियों में रहा। यहां भी बाद में कार्रवाई होने की बात है। 
जोधपुर से दिल्ली जा रही वंदे भारत में कैटरिंग मैनेजर को हार्ट अटैक आया और वह उसी में गिर पड़े। जब गाड़ी में रखे फर्स्ट एड बाक्स को खोला, तो उसमें सिर्फ वे दवाएं थीं, जो आमतौर पर सर्दी-जुकाम में ही काम आती हैं। इससे बड़ी शर्मसार करने वाली दूसरी बात क्या होती कि उस ट्रेन के एक अफसर की जान चली जाती अगर उसमें चिकित्सा विभाग से जुड़े दो अफसर नहीं बैठे होते। सफर लग्ज़री ज़रूर हुआ है पर जान जोखिम में डालने की कीमत पर क्यों? जब वंदे भारत की यह हालत है, तो सोचिए उस ट्रेन का क्या होगा जिसके शौचालय में भी यात्री सफर करते हैं। 
रेलवे में यात्रियों का सामान तो पहले ही से असुरक्षित था पर अब सम्मान भी इसी श्रेणी में आ गया है। दरअसल रेलवे जिस प्रकार से तरक्की कर रहा है, उसी प्रकार से उस पर आश्रित समाज की सामाजिक सुरक्षा का दायित्व नहीं बढ़ रहा। सरकार ठेका देकर कमाई करना चाहती है और यात्री भी ऑनलाइन सामान रेल में ही मंगाकर अपना सफर पूरा कर रहे हैं। जब यहां पर यह सब नहीं मिल रहे हैं, तो जो भी मिल रहा है, उसे देने के लिए स्थानीय वेंडर अधिकाधिक कमाई कर लेना हैं। परिणाम वह अपना एक रुपया भी नुकसान होते देखकर उग्र हो जाते हैं और जबलपुर समोसा कांड जैसे मजमे स्टेशनों पर नज़र आ जाते हैं। 
रेलगाड़ियों में, स्टेशन पर और उसके आसपास आरपीएफ की माकूल व्यवस्था होने के कारण पहले थोड़ा डर रहता था, मगर अब इनमें मांगने वाले, ट्रांसजेंडर और साधु की आड़ में बदमाश जिस प्रकार से उगाही करते हैं, वह बताता है कि सुरक्षा तो है ही नहीं। साथ ही यात्रा के दौरान कब आपके साथ बदतमीजी हो जाएगी, कहा नहीं जा सकता। इसके पीछे एक कारण यह भी है कि अब टिकट कलेक्टर के पास टिकट चैक करने की भी फुर्सत नहीं होती। साधारण डिब्बे तो जाने दीजिए वह स्लीपर में भी नहीं आता। उसे सिर्फ इस बात का ध्यान रखना होता है कि प्रथम, द्वितीय और थर्ड एसी में कौन सा यात्री अपने स्टेशन के बाद भी सफर कर रहा है। कारण क्या है? सिर्फ यह कि उससे जुर्माना वसूला जाए। 
सामान और सम्मान के साथ यात्रा करने में यात्रियों के साथ एक और जो समस्या आ रही है, वह यह है कि उन्हें इमरजेंसी चिकित्सा भी नहीं मिल पा रही है, जिसके वे हकदार हैं। दरअसल पहले रिजर्वेशन के दौरान चिकित्सक को वरीयता मिलती थी पर अब तो डीआरएम आदि भी उन्हें मांगने पर भी सीट की अनुपलब्धता बताकर मना कर देते हैं। फर्स्ट एड बॉक्स में क्या रखना है, इसकी कोई वरीयता सूची नहीं होने के कारण यात्रियों को मुश्किल वक्त में दिल, दस्त, अस्थमा अटैक, चोट लगने आदि के दौरान या तो अगले स्टेशन आने का इंतजार करना पड़ता है या फिर कोई साथी यात्री उन्हें दवा आदि उपलब्ध करा दे पर निर्भर रहना पड़ता है। 
वर्तमान में जब रेल और आम बजट एक हो गए हैं, तब भारत सरकार का सर्वाधिक ध्यान वंदे भारत रेलों पर है। इनमें सुविधा पर ध्यान कितना है, इसका अंदाज इसी से लग सकता है कि अगर गलती से भी यात्री गेट बंद होने से पहले रेल में नहीं चढ़ पाया, तो उसके लिए मुसीबत आ जाती है। महंगे एसी डिब्बों, महंगी प्रीमियम ट्रेनों में सोशल दुर्घटनाएं बढ़ रही हैं। इन दुर्घटनाओं में चोरी, मारपीट आम बातें हो चुकी हैं। जब हाई स्पीड ट्रेन चलने की तैयारी है, तब आम ट्रेनों की यदि यह हालत है, तो कैसे कह सकते हैं कि हवा से बात करती रेलों में सब कुछ अच्छा होगा?

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

#बढ़ती ट्रेन दुर्घटनाओं के बीच रेलगाड़ियों में बिगड़ता सोशल व्यवहार